प्रश्न. संसद की प्रभावी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने में अध्यक्ष की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इस संस्था को सशक्त बनाने के लिये आप कौन-कौन से सुधार सुझाएंगे? (150 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- अध्यक्ष के कार्यालय का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए उसका परिचय दीजिये।
- संसद की कार्यप्रणाली को सुचारु और प्रभावी बनाने में अध्यक्ष की क्या भूमिका है?
- स्पीकर की संस्था को सशक्त बनाने हेतु सुधार बताइये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
भारत के निचले सदन के पीठासीन अधिकारी के रूप में लोकसभा अध्यक्ष संसदीय लोकतंत्र की स्थिरता बनाए रखने और प्रभावी विधायी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ब्रिटिश वेस्टमिंस्टर मॉडल से व्युत्पन्न यह स्थिति संवैधानिक और प्रक्रियात्मक दोनों कार्यों को शामिल करता है जो विधायी प्रभावशीलता और लोकतांत्रिक शासन को प्रभावित करती है।
मुख्य भाग:
प्रभावी संसदीय कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने में अध्यक्ष की भूमिका
- संसदीय कार्य का संचालन: अध्यक्ष का प्राथमिक कर्त्तव्य संसदीय कार्यवाही की अध्यक्षता करना और सदन में व्यवस्था बनाए रखना है।
- सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों को समान अवसर प्रदान करके, अध्यक्ष संवेदनशील चर्चा को प्रोत्साहित कर सकते हैं और व्यवधान को कम कर सकते हैं।
- धन विधेयक का प्रमाणन: संविधान के अनुच्छेद 110 के अंतर्गत किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रामाणित करने का विशेष अधिकार अध्यक्ष के पास होता है, जो वित्तीय विधान पर राज्यसभा के प्रभाव को सीमित करता है।
- हालाँकि इस शक्ति के दुरुपयोग की संभावनाओं (जैसे, आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में पारित करना) को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप तटस्थता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- दलबदल पर निर्णय (दसवीं अनुसूची): अध्यक्ष दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता से संबंधित मामलों पर निर्णय लेता है, जो पार्टी अनुशासन बनाए रखने और राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के लिये आवश्यक है।
- विधेयकों को संसदीय समितियों को भेजना: विधेयकों को विस्तृत जाँच के लिये स्थायी या प्रवर समितियों को भेजने में अध्यक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- हालाँकि हाल के वर्षों में समितियों को भेजे जाने वाले विधेयकों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2009-2014 के बीच लगभग 71% विधेयक समितियों को भेजे गए; हालाँकि, वर्ष 2019-2024 में यह आँकड़ा घटकर केवल 16% रह गया।
- अनुशासन बनाए रखना और सदस्यों का निलंबन: अध्यक्ष सदन में व्यवस्था बनाए रखने के लिये अनियंत्रित व्यवहार के लिये सदस्यों को निलंबित कर सकता है।
- हालाँकि वर्ष 2023 के शीतकालीन सत्र के दौरान बड़े पैमाने पर निलंबन ने इस शक्ति के मनमाने उपयोग पर चिंता व्यक्त की है।
स्पीकर की संस्था को सशक्त करने हेतु सुधार
- तटस्थता और स्वतंत्रता को संस्थागत बनाना: निष्पक्षता को सुनिश्चित करने हेतु, एक ऐसी परंपरा स्थापित की जा सकती है, जिसमें अध्यक्ष का पद ग्रहण करने के बाद वे अपनी पार्टी से इस्तीफा दे दें, ताकि उनका कार्य पूरी तरह से तटस्थ और निष्पक्ष हो सके।
- यह प्रथा ब्रिटेन सहित कुछ देशों में अपनाई जाती है और इससे अध्यक्ष के कार्यों पर राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है।
- दलबदल विरोधी मामलों के लिये पारदर्शी तंत्र: दलबदल मामलों पर निर्णय लेने के लिये एक समयबद्ध तंत्र दसवीं अनुसूची की पवित्रता को बनाए रखने में मदद करेगा।
- एक स्वतंत्र पैनल या समिति दलबदल के मामलों का आकलन करने में अध्यक्ष की सहायता कर सकती है, जिससे पक्षपात की धारणा कम हो जाएगी।
- संसदीय समितियों की भूमिका को पुनर्जीवित करना: विधायी जाँच को सशक्त करने हेतु, अध्यक्ष के लिये कुछ श्रेणियों के विधेयकों को संसदीय समितियों को भेजना अनिवार्य किया जाना चाहिये, जैसे कि जो मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं या महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रतिबद्धताओं से जुड़े होते हैं।
- इस कदम से विधायी प्रक्रियाओं में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।
- धन विधेयक के प्रमाणन की शक्ति को सीमित करना: एक स्वतंत्र पैनल धन विधेयक के अध्यक्ष के प्रमाणन की समीक्षा कर सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस शक्ति का दुरुपयोग राज्यसभा की जाँच को दरकिनार करने के लिये न किया जाए।
- यह सुधार द्विसदनीय विधायी प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा करेगा।
- निलंबन शक्तियों पर स्पष्ट दिशा-निर्देश: अव्यवस्थित आचरण के लिये सदस्यों को निलंबित करने की अध्यक्ष की शक्ति का प्रयोग संयम और निरंतरता के साथ किया जाना चाहिये।
- निलंबन पर पारदर्शी दिशा-निर्देश स्थापित करने से सदस्यों के अधिकारों के साथ अनुशासन को संतुलित करने में मदद मिलेगी तथा सदन में विपक्ष की आवाज़ को संरक्षित किया जा सकेगा।
निष्कर्ष:
भारत की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में अध्यक्ष की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों वाली विधानसभा का प्रबंधन करने और प्रतिद्वंद्वी हितों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है। तटस्थता सुनिश्चित करने, विधायी समीक्षा को सशक्त बनाने और अनुशासन बनाए रखने के लिये सुधार लागू करने से इस संस्था को महत्त्वपूर्ण मज़बूती मिल सकती है, जिससे संसदीय प्रक्रिया अधिक प्रभावी और सशक्त बन सकती है।