प्रश्न: "प्रथम विश्व युद्ध ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ भारत के संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण त्वरित बदलाव ला दिया, जिसने आर्थिक और राजनीतिक गतिशीलता दोनों को मौलिक रूप से परिवर्तित कर दिया।" चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- प्रथम विश्व युद्ध की अवधि और इसके व्यापक प्रभावों पर चर्चा करते हुए परिचय प्रस्तुत कीजिये।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य और भारत के संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों का गहन अध्ययनकीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ भारत के संबंधों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये, जिसके परिणामस्वरूप गहन आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए, जिसने अंततः देश की स्वतंत्रता के लिये आधार तैयार किया।
मुख्य भाग:
प्रथम विश्व युद्ध का ब्रिटिश साम्राज्य और भारत के संबंधों पर प्रभाव:
- आर्थिक प्रभाव:
- युद्ध व्यय में वृद्धि: युद्ध प्रयासों को समर्थन देने के लिये, ब्रिटिश सरकार ने करों में वृद्धि की और नए शुल्क लगाए, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ गई।
- युद्ध व्यय के कारण भारतीय करदाताओं पर दबाव बढ़ गया और जीवन-यापन की लागत में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप आम जनता में गरीबी और बढ़ गई।
- आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: युद्ध ने व्यापार मार्गों और कृषि उत्पादन को बाधित कर दिया, जिससे खाद्यान्न की कमी और अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिससे औपनिवेशिक नीतियों से संबंधित अर्थव्यवस्था की कमज़ोरियाँ उजागर हुईं।
- भारतीय उद्योगों का उदय: युद्ध प्रयासों के कारण युद्ध सामग्री के उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता पड़ी, जिसके फलस्वरूप भारतीय उद्योगों, विशेष रूप से वस्त्र और युद्ध सामग्री के क्षेत्र में विकास हुआ।
- इस औद्योगिक विस्तार ने मुख्यतः कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में बदलाव को चिह्नित किया और एक नवजात पूंजीवादी वर्ग के उदय की शुरुआत की, जिसने बाद में राष्ट्रवादी आंदोलनों का समर्थन किया।
- आर्थिक राष्ट्रवाद: युद्ध के अनुभव और आर्थिक कठिनाइयों ने आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया।
- भारतीय व्यापारिक समुदायों को आत्मनिर्भरता के महत्त्व का अहसास होने लगा और उन्होंने भारत में निर्मित वस्तुओं का समर्थन करना शुरू किया, जिससे स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई।
- राजनीतिक जागृति:
- सैन्य भर्ती और अपेक्षाएँ: युद्ध के दौरान 1.3 मिलियन से अधिक भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सेना में सेवा की।
- उनके योगदान ने उनकी सेवा के बदले में राजनीतिक रियायतों की अपेक्षाएँ उत्पन्न कीं। हालाँकि युद्ध के बाद की अवधि में निराशा का सामना करना पड़ा जब ब्रिटिश सरकार ने वादे के अनुसार सुधार करने में विफलता दिखाई।
- मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919): बढ़ते असंतोष के जवाब में ब्रिटिश सरकार ने ऐसे सुधारों को प्रस्तुत किया, जिनका उद्देश्य शासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाना था।
- हालाँकि सुधारों की सीमित प्रकृति के कारण व्यापक मोहभंग हुआ, जिससे अधिक स्वशासन की इच्छा और अधिक बढ़ गई।
- जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919): अमृतसर में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों का क्रूर दमन भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था।
- इसने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनमत को प्रेरित किया तथा औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध भारतीय समाज के विभिन्न गुटों को एकजुट किया।
- राष्ट्रवादी आंदोलनों का उदय:
- नए राजनीतिक गठबंधनों का गठन: भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC), जिस पर पहले उदारवादी नेताओं का प्रभुत्व था, ने अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया।
- जागरूकता और सक्रियता में वृद्धि: युद्ध के वर्षों में राजनीतिक रूप से जागरूक मध्यम वर्ग और छात्र आंदोलनों का उदय हुआ, जिन्होंने अधिकारों के लिये विरोध प्रदर्शन और समर्थन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- महिलाएँ भी अधिकाधिक अधिकारों और भागीदारी की मांग करते हुए राष्ट्रवादी आंदोलन में तेज़ी से शामिल होने लगीं।
- वर्ष 1915 में गांधीजी की दक्षिण अफ्रीका से वापसी और असहयोग आंदोलन (1920-1922) के दौरान उनका नेतृत्व कुछ हद तक युद्ध के प्रभाव से प्रभावित था।
निष्कर्ष:
प्रथम विश्व युद्ध वास्तव में भारत की स्वतंत्रता के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षण था, जिसमें आर्थिक तनाव, राजनीतिक जागृति और राष्ट्रवादी आंदोलनों का उदय हुआ, जिसने न केवल औपनिवेशिक शासन की कमियों को उजागर किया, बल्कि एक सामूहिक चेतना को भी बढ़ावा दिया, जो अंततः स्वतंत्रता की खोज में परिणत हुई।