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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की एक रूपरेखा और उनके समक्ष चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (250)

    30 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख चालकों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • भारत में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को बढ़ाने के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष बताइये।

    परिचय :

    भारत का नवाचार परिदृश्य उल्लेखनीय रूप से ऊपर की ओर बढ़ रहा है, जैसा कि वर्ष 2015 और 2022 के बीच वैश्विक नवाचार सूचकांक में 81वें स्थान से 40वें स्थान पर पहुँचने से स्पष्ट है।

    शरीर :

    भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख विकास चालक:

    • सरकारी पहल और नीतिगत समर्थन: 'डिजिटल इंडिया' और 'स्टार्टअप इंडिया' जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने तकनीकी नवाचार तथा उद्यमिता के लिये अनुकूल वातावरण तैयार किया है।
    • संपन्न स्टार्टअप इकोसिस्टम: भारत में प्रौद्योगिकी स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2014 में लगभग 2,000 से बढ़कर वर्ष 2023 में लगभग 31,000 तक पहुँच जाएगी।
    • अकादमिक-उद्योग सहयोग: आईआईटी में अनुसंधान पार्कों और उद्योग प्रायोजित प्रयोगशालाओं की स्थापना, अकादमिक अनुसंधान और व्यावसायिक अनुप्रयोग के बीच की खाई को कम कर रही है।
      • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम के लिये सरकार के प्रयासों से इस सहयोग को और अधिक मज़बूती मिलने की संभावना है।
    • नवप्रवर्तन केंद्रों का भौगोलिक विविधीकरण: यद्यपि बेंगलूरू भारत की सिलिकॉन वैली बना हुआ है, फिर भी टियर-2 और टियर-3 शहरों में नवप्रवर्तन केंद्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
      • इंदौर, जयपुर और कोच्चि जैसे शहर स्टार्टअप्स तथा अनुसंधान एवं विकास केंद्रों के लिये नए केंद्र के रूप में उभर रहे हैं।
    • मितव्ययी नवाचार और प्रतिवर्ती नवाचार: भारत की अनूठी बाज़ार स्थितियाँ मितव्ययी नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाले और कम लागत वाले समाधान तैयार हो रहे हैं, जिनका वैश्विक स्तर पर तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है।

    भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ: पेटेंटों का सीमित उपयोग और व्यावसायीकरण वर्ष 2023 में 100,000 से अधिक पेटेंट जारी होने के बावजूद, पेटेंटों का व्यावसायीकरण अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

    • पेटेंटों का अल्प उपयोग और व्यावसायीकरण: पेटेंट दाखिलों में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2023 में 100,000 से अधिक पेटेंट प्रदान किये जाने के बावजूद, इन पेटेंटों का व्यावसायीकरण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास व्यय: सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय मात्र 0.65% है, जो दक्षिण कोरिया (4.8%) और चीन (2.4%) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
    • कमज़ोर शैक्षणिक-उद्योग संबंध: भारत में शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग अभी भी अपर्याप्त है, जिससे ज्ञान और नवाचार के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो रही है।
    • कौशल अंतराल और प्रतिभा प्रतिधारण: बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद, भारत को उभरती प्रौद्योगिकियों में महत्त्वपूर्ण कौशल अंतराल का सामना करना पड़ रहा है।
      • जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का विकास और उसका उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है, विश्व आर्थिक मंच का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक 50% कर्मचारियों को प्रासंगिक बने रहने के लिये पुनः कौशल हासिल करने की आवश्यकता होगी।
    • जोखिम पूंजी तक सीमित पहुँच: भारत के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, डीप-टेक और हार्डवेयर स्टार्टअप के लिये जोखिम पूंजी तक पहुँच एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
    • विनियामक बाधाएँ और व्यापार करने में आसानी: हालाँकि भारत की व्यापार करने में आसानी की रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन विनियामक जटिलताएँ और बाधाएँ नवाचार के विकास में, विशेष रूप से उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में, रुकावट उत्पन्न कर रही हैं।

    भारत में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को बढ़ाने के लिये सुझाए गए उपाय:

    • पेटेंट व्यावसायीकरण को मज़बूत करना: इसमें डेनमार्क के आईपी मार्केटप्लेस के समान एक राष्ट्रीय पेटेंट बाज़ार का निर्माण करना शामिल हो सकता है, जिसने अपनी स्थापना के बाद से कई प्रौद्योगिकी हस्तांतरणों को सुविधाजनक बनाया है।
    • अनुसंधान एवं विकास व्यय को बढ़ावा देना: सरकार को 2% लक्ष्य तक पहुँचने के लिये स्पष्ट रोडमैप के साथ सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास व्यय को बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • अकादमिक-उद्योग सहयोग को बढ़ावा देना: अकादमिक-उद्योग अंतर को पाटने के लिये, भारत को यह अनिवार्य करना चाहिये कि सभी केंद्रीय वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थान अपने बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा उद्योग-सहयोगी परियोजनाओं के लिये आवंटित करें।
    • कौशल अंतर को संबोधित करना: कौशल अंतर को दूर करने के लिये, भारत को कौशल भारत के तहत एक अलग राष्ट्रीय डिजिटल कौशल मिशन शुरू करना चाहिये, जिसका उद्देश्य उभरती प्रौद्योगिकियों में पेशेवरों को कुशल बनाना है।
    • जोखिम पूंजी तक पहुँच बढ़ाना: जोखिम पूंजी तक पहुँच में सुधार करने के लिये, भारत को अग्रणी प्रौद्योगिकियों में निवेश को उत्प्रेरित करने के लिये डीप टेक फंड ऑफ फंड्स की स्थापना करनी चाहिये।
    • विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: विनियामक बाधाओं को दूर करने के लिये भारत को सभी क्षेत्रों में "विनियामक सैंडबॉक्स" दृष्टिकोण को लागू करना चाहिये।

    निष्कर्ष

    भारत के नवाचार परिदृश्य ने सक्रिय सरकारी पहलों, एक जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और बढ़ते अकादमिक-उद्योग सहयोग के चलते उल्लेखनीय प्रगति की है। लक्षित सुधारों, मज़बूत साझेदारियों तथा उन्नत कौशल विकास के माध्यम से स्थायी चुनौतियों का समाधान कर, भारत वैश्विक नवाचार नेता के रूप में अपनी स्थिति को और मज़बूत कर सकता है।

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