प्रश्न. भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के महत्त्व और उससे संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। भारत में CSR की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये कौन-कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में CSR गतिविधियों के महत्त्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- CSR प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) एक ऐसा व्यवसाय मॉडल है, जिसमें कंपनियाँ स्वेच्छा से सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक विचारों को अपने संचालन एवं हितधारकों के साथ संबंधों में शामिल करती हैं। भारत में, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत CSR के अनिवार्य प्रावधान 1 अप्रैल, 2014 से लागू हुए।
मुख्य भाग:
भारत में CSR गतिविधियों का महत्त्व:
- शैक्षिक अवसर और कौशल विकास: कंपनियों के CSR व्यय के तहत शिक्षा तथा कौशल विकास पर 10,085 करोड़ रुपए खर्च किये गए, जिससे यह प्रभाव का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है।
- सामुदायिक बुनियादी ढाँचे में वृद्धि: वेदांता के CSR प्रयासों, 'स्वस्थ गाँव अभियान' के माध्यम से 1,000 गाँवों में संपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं, जिससे स्वच्छता में वृद्धि हो रही है और स्वास्थ्य जोखिम कम हो रहे हैं।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता और आजीविका कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: हिंदुस्तान यूनिलीवर की 'प्रभात' पहल ग्रामीण महिलाओं को उद्यमीता कौशल प्रशिक्षण देकर उनके सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करती है।
- पर्यावरणीय स्थिरता और जलवायु कार्रवाई: महिंद्रा समूह हर साल दस लाख पेड़ लगा रहा है, जिससे एक सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार निगम के रूप में इसके ब्रांड मूल्य में वृद्धि हुई है तथा निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
- सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण: वर्ष 2023 तक, भारत में लगभग 60% CSR परियोजनाएँ सीधे सतत् विकास लक्ष्यों (स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण) को लक्षित करती हैं, जो वैश्विक विकास लक्ष्यों को स्थानीय कार्रवाई के साथ एकीकृत करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
भारत में CSR से संबंधित प्रमुख मुद्दे:
- कार्यान्वयन अंतराल और परियोजना समय-सीमा का कुप्रबंधन: बोर्ड अनुमोदन और बजट आवंटन में देरी के कारण, कंपनियाँ CSR परियोजनाओं को एक सीमित समय-सीमा के अंदर पूरा करने में जल्दबाज़ी करती हैं।
- असमान भौगोलिक वितरण: वर्ष 2023 के आँकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक को कुल CSR फंड का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त हुआ।
- सरकार द्वारा आकांक्षी ज़िलों में CSR निवेश का समर्थन करने के बावजूद, वर्ष 2014-22 के दौरान कुल CSR का केवल 2.15% ही इन ज़िलों में निवेश किया गया है।
- निगरानी एवं मूल्यांकन चुनौतियाँ: वर्तमान ढाँचा गुणात्मक प्रभाव आकलन की तुलना में मात्रात्मक मैट्रिक्स पर ज़ोर देता है।
- प्रभाव से अधिक अनुपालन: नवीन समाधानों की अपेक्षा सुरक्षित और स्थापित परियोजनाओं को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति है, जिसमें CSR परियोजनाओं का एक छोटा हिस्सा नवीन दृष्टिकोण या जोखिम उठाने से संबंधित होता है।
- यह अनुपालन-केंद्रित दृष्टिकोण CSR के परिवर्तनकारी सामाजिक प्रभाव की क्षमता को सीमित करता है।
भारत में CSR की प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय:
- रणनीतिक दीर्घकालिक योजना ढाँचा: CSR परियोजनाओं को वार्षिक चक्र से अनिवार्य 3-5 वर्ष की प्रतिबद्धताओं में बदलना होगा, ताकि सतत् प्रभाव और उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।
- डिजिटल एकीकरण और स्मार्ट निगरानी प्रणाली: सभी हितधारकों - कंपनियों, गैर-सरकारी संगठनों, लाभार्थियों और सरकारी एजेंसियों - को एक ही इंटरफेस के माध्यम से जोड़ने के लिये एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म का कार्यान्वयन।
- व्यावसायिक प्रबंधन एवं क्षमता निर्माण: क्षेत्र के विशेषज्ञों के नेतृत्व में समर्पित CSR विभाग स्थापित करना तथा डोमेन विशेषज्ञता वाले पेशेवर परियोजना प्रबंधकों द्वारा समर्थित होना।
- भौगोलिक एकीकरण और सामुदायिक स्वामित्व: बिखरे हुए हस्तक्षेपों के बजाय विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के व्यापक परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्लस्टर-आधारित विकास दृष्टिकोण को अपनाना।
- प्रभाव मापन एवं स्थिरता ढाँचा: सामाजिक परिवर्तन के गुणात्मक आकलन को मात्रात्मक मीट्रिक्स के साथ मिलाकर व्यापक प्रभाव मापन प्रणालियाँ विकसित करें।
निष्कर्ष:
CSR के प्रभाव को बढ़ाने के लिये भारत को दीर्घकालिक योजना, डिजिटल एकीकरण, पेशेवर प्रबंधन, सहयोगात्मक कार्यान्वयन, भौगोलिक फोकस और मज़बूत प्रभाव मापन की आवश्यकता है। इन मुद्दों को संबोधित करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि CSR सतत् विकास में सार्थक योगदान दे।