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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "परिवार नैतिकता की पहली पाठशाला बना हुआ है, लेकिन अन्य सामाजिक संस्थाएँ इसकी भूमिका को निरंतर चुनौती दे रही हैं।" समकालीन समाज में नैतिक शिक्षा की बदलती प्रवृत्तियों का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    24 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    दृष्टिकोण: 

    • नैतिकता और बदलती गतिशीलता की पहली पाठशाला के रूप में परिवार की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • अन्य सामाजिक संस्थाओं के उत्थान पर गहन अध्ययन कीजिये। 
    • नैतिक शिक्षा की बदलती गतिशीलता में योगदान देने वाले कारक बताइये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    सदियों से, परिवार नैतिक मार्गदर्शन और समाजीकरण का प्राथमिक स्रोत रहा है। माता-पिता आमतौर पर बच्चों को नैतिक सिद्धांतों से परिचित कराने वाले पहले व्यक्ति होते हैं, उन्हें सही और गलत, करुणा, ईमानदारी तथा सम्मान के बारे में सिखाते हैं। हालाँकि समकालीन समाज में नैतिक शिक्षा में परिवार की भूमिका को अन्य सामाजिक संस्थाओं द्वारा चुनौती दी जा रही है। 

    शरीर: 

    अन्य सामाजिक संस्थाओं का उदय

    • स्कूल: स्कूल छात्रों को नैतिकता, नागरिकता और सामाजिक ज़िम्मेदारी के बारे में सिखाकर नैतिक शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • सहकर्मी समूह: सहकर्मी समूह युवा लोगों के नैतिक विकास पर शक्तिशाली प्रभाव डाल सकते हैं। 
      • बच्चे और किशोर प्रायः मार्गदर्शन व अनुमोदन के लिये अपने साथियों की ओर रुख करते हैं और इससे उनके मूल्य उनके सामाजिक समूह के मानदंडों एवं अपेक्षाओं से प्रभावित हो सकते हैं।
    • मीडिया: टेलीविज़न, फिल्में और सोशल मीडिया सहित मीडिया बच्चों को नैतिक दुविधाओं तथा नैतिक मुद्दों की एक विस्तृत शृंखला से अवगत कराता है। 
      • यद्यपि मीडिया सूचना और शिक्षा का एक मूल्यवान स्रोत हो सकता है, लेकिन यह हानिकारक रूढ़िवादिता को भी प्रबल कर सकता है तथा नकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा दे सकता है।

    नैतिक शिक्षा की बदलती गतिशीलता में योगदान देने वाले कारक

    नैतिक शिक्षा पर सामाजिक संस्थाओं के बढ़ते प्रभाव में कई कारकों ने योगदान दिया है:

    • वैश्वीकरण और सांस्कृतिक विविधता: समाजों के बढ़ते अंतर्संबंध ने विभिन्न संस्कृतियों और मूल्यों के प्रति अधिक जागरूकता उत्पन्न की है। इससे परिवारों को अपने बच्चों के लिये एक सुसंगत नैतिक ढाँचा प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • पारिवारिक संरचना में परिवर्तन: पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं, जैसे कि एकल परिवार, के पतन के कारण बच्चों द्वारा अपने माता-पिता के साथ व्यतीत किये जाने वाले समय में कमी आई है। 
      • परिणामस्वरूप, माता-पिता को अपने बच्चों में अपने आदर्शों को स्थापित करने के अवसर कम होते जाएंगे।
    • उपभोक्ता संस्कृति का उदय: उपभोक्तावाद और भौतिक सफलता पर ज़ोर, परोपकारिता, उदारता एवं सामुदायिक भावना जैसे पारंपरिक मूल्यों को कमज़ोर कर सकता है।
    • तकनीकी उन्नति: तकनीक के व्यापक उपयोग, विशेष रूप से सोशल मीडिया ने बच्चों को एक-दूसरे के साथ और उनके आस-पास की दुनिया के साथ समन्वय के तरीके को परिवर्तित कर दिया है। नैतिक विकास के लिये इसका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव हो सकता है।

    निष्कर्ष: 

    नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये परिवार और सामाजिक संस्थाएँ मिलकर काम कर सकती हैं। परिवार नैतिक विकास के लिये आधार प्रदान कर सकते हैं, जबकि सामाजिक संस्थाएँ अभिगम और विकास के लिये पूरक अवसर प्रदान कर सकती हैं। सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर, हम यह सुनिश्चित करने में सहयोग कर सकते हैं कि युवा लोग न्यायपूर्ण और दयालु समाज के लिये आवश्यक नैतिक मूल्यों एवं चरित्र लक्षणों का विकास करें।

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