प्रश्न: "करुणा के अभाव में सहिष्णुता, उदासीनता का कारण बनती है।" समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति लोक सेवकों की ज़िम्मेदारी के परिप्रेक्ष्य में, इस कथन की विस्तृत समीक्षा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- कथन का औचित्य सिद्ध करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- समाज के कमजोर वर्गों के प्रति लोक सेवकों की भूमिका बताइये।
- शासन में करुणा के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- उदासीनता के परिणाम की चर्चा कीजिये।
- करुणामय शासन को बढ़ावा देने के लिये आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
"करुणा के अभाव में सहिष्णुता उदासीनता को जन्म दे सकती है" यह कथन मानवीय अंतःक्रिया के एक महत्त्वपूर्ण पहलू को रेखांकित करता है, विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति लोक सेवकों की ज़िम्मेदारियों के संदर्भ में।
- यद्यपि सहिष्णुता एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण के लिये आवश्यक है, लेकिन यह करुणा के गुण के बिना अपर्याप्त है।
मुख्य भाग:
समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति लोक सेवकों की भूमिका:
- नीति कार्यान्वयन: लोक सेवक मनरेगा जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जो ग्रामीण परिवारों को 100 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की गारंटी देता है।
- अधिकारों का प्रवर्तन: उन्हें सीमांत समूहों की रक्षा करने वाले कानूनों का प्रवर्तन सुनिश्चित करना चाहिये जैसे कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, जो कठिन परिस्थितियों में बच्चों की रक्षा करता है।
- संसाधन आवंटन: लोक सेवकों को संसाधनों के उचित वितरण का कार्य सौंपा गया है, जैसे कि प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), जिसका उद्देश्य गरीब वर्ग को किफायती आवास उपलब्ध कराना है।
- इस कार्यक्रम में, लोक सेवक यह सुनिश्चित करने के लिये काम करते हैं कि सबसे कमज़ोर समुदायों को आवास लाभ मिले।
- निगरानी और मूल्यांकन: उन्हें सरकारी कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की निगरानी करनी चाहिये। उदाहरण के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और विशेष रूप से आयुष्मान भारत योजना में, लोक सेवक स्वास्थ्य सेवा वितरण का मूल्यांकन करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जनजातीय आबादी जैसे सीमांत समूहों को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त हो सकें।
लोक शासन में करुणा की भावना का महत्त्व:
- निर्णय लेने में सहानुभूति: दयालु लोक सेवक सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर विचार करते हैं। उदाहरण के लिये, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, कई राज्य अधिकारियों ने शहरों में फँसे प्रवासी श्रमिकों को भोजन वितरण जैसे राहत उपाय शुरू किये, जो उनके संघर्षों के प्रति मात्र सहिष्णुता से परे सहानुभूति प्रदर्शित करते हैं।
- समुदायों के साथ जुड़ाव: वे निर्णय लेने में समुदायों को सक्रिय रूप से शामिल करते हैं। उदाहरण के लिये, स्वच्छ भारत मिशन में भागीदारी उपागम ने स्थानीय समुदायों को स्वच्छता आवश्यकताओं की पहचान करने के लिये शामिल किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि ऐसे कार्यक्रम विशिष्ट स्थानीय चुनौतियों का समाधान करते हैं।
- विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करना: करुणा की भावना लोक सेवकों को सीमांत वर्गों के लिये कार्यक्रम तैयार करने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिये, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना का उद्देश्य लैंगिक अनुपात में सुधार करना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों के सामने आने वाली लिंग-विशिष्ट चुनौतियों का समाधान हो सके।
- समावेशिता को बढ़ावा देना: दयालु शासन समावेशिता को बढ़ावा देता है, जैसा कि दिव्यांग जनों का अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन में देखा गया है, जहाँ लोक सेवकों ने सुलभता प्रदान करने और समान अवसरों के प्रावधान सुनिश्चित करने के लिये निःशक्तता अधिकार कार्यकर्त्ताओं के साथ मिलकर काम किया।
- गरिमा को बढ़ावा देना: कमज़ोर वर्गों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करके, लोक सेवक गरिमा को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिये, मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन के दौरान अधिकारियों ने यह सुनिश्चित किया कि सभी बच्चों को, चाहे वे किसी भी जाति या पृष्ठभूमि के हों, भोजन मिले, जिससे समुदाय और अपनेपन की भावना को बढ़ावा मिलता है।
उदासीनता के परिणाम:
- बढ़ती असमानताएँ: उदासीनता मौजूदा असमानताओं को और बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिये, अगर सरकारी कर्मचारी अनावृष्टि के दौरान सीमांत किसानों की दुर्दशा को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो हस्तक्षेप की कमी के कारण गरीबी और किसानों की आत्महत्याएँ बढ़ सकती हैं।
- भागीदारी में कमी: जब सीमांत समुदायों को लगता है कि उनकी अनदेखी की जा रही है, तो उनकी भागीदारी कम हो जाती है। उदाहरण के लिये, चुनावों में सीमांत समुदायों की कम भागीदारी प्रायः वंचितता और लोक सेवकों द्वारा उपेक्षा की भावना का ही परिणाम है।
- सामाजिक अशांति: उदासीनता सामाजिक अशांति को उत्पन्न कर सकती है, जैसा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में देखा गया, जहाँ सीमांत वर्गों ने महसूस किया कि सरकार द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जा रही है, जिसके कारण पूरे देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
- कार्यक्रमों की विफलता: करुणामाय भावना के बिना, कल्याणकारी कार्यक्रम विफल हो सकते हैं। नौकरशाही की उदासीनता के कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण ऐसे मामले सामने आए जहाँ पात्र परिवारों को उनके अधिकार नहीं मिले, जिससे भूख और गरीबी और बढ़ गई।
करुणामय शासन को बढ़ावा देना
- संवेदनशीलता प्रशिक्षण: मिशन कर्मयोगी के एक भाग के रूप में सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करना चाहिये।
- सामुदायिक सहभागिता पहल: संवाद के लिये अनिवार्य मंच विकसित किये जाने चाहिये, जैसे कि 'जन सुनवाई' (सार्वजनिक सुनवाई) जहाँ नागरिक अपनी शिकायतें सीधे लोक सेवकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें, जिससे जवाबदेही को बढ़ावा मिले। इन पहलों ने स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने में मदद की है।
- फीडबैक तंत्र: फीडबैक सिस्टम स्थापित किये जाने चाहिये जिससे वंचित समूहों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का मौका मिले। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 'शिकायत निवारण तंत्र' लाभार्थियों को सीधे अधिकारियों को अपनी समस्याओं की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है, जिससे जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
- सहयोगात्मक भागीदारी: गैर सरकारी संगठनों के साथ भागीदारी को प्रोत्साहित किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, सरकार और गूंज जैसे संगठनों के बीच सहयोग से सीमांत समुदायों को संसाधनों के वितरण में सुविधा होती है, जिससे प्रभावी कार्यान्वयन के लिये स्थानीय अंतर्दृष्टि का लाभ उठाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
करुणा के बिना सहिष्णुता प्रभावी शासन और सामाजिक न्याय के लिये अपर्याप्त आधार है। लोक सेवकों को न केवल विविधता को स्वीकार करना चाहिये बल्कि सीमांत समूहों की ज़रूरतों को समझने और उनका समाधान करने के लिये भी सक्रिय रूप से प्रयास करना चाहिये। करुणा और सहानुभूति की संस्कृति को बढ़ावा देकर, लोक सेवक सभी के लिये अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी समाज की स्थापना में मदद कर सकते हैं।