प्रश्न: "भारत की साइबर सुरक्षा संरचना को सुदृढ़ करने हेतु निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।" हाल की पहलों और चुनौतियों के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- साइबर सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकता है तथा इसमें निजी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- भारत की साइबर सुरक्षा संरचना को सुदृढ़ करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी को महत्त्व को बताइये।
- निजी भागीदारी को बढ़ावा देने वाली हालिया सरकारी पहलों पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत की अर्थव्यवस्था के तेज़ी से डिजिटलीकरण ने साइबर सुरक्षा को एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकता बना दिया है। जबकि सरकारी एजेंसियाँ केंद्रीय भूमिका निभाती हैं, एक सुदृढ़ साइबर सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होती जा रही है।
मुख्य भाग:
भारत की साइबर सुरक्षा संरचना को सुदृढ़ करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी का महत्त्व:
- तकनीकी विशेषज्ञता और नवाचार: निजी कंपनियों के पास अत्याधुनिक तकनीकी क्षमताएँ और विशिष्ट प्रतिभाएँ होती हैं।
- टेक महिंद्रा जैसी कंपनियों ने विशेष रूप से भारतीय संदर्भों के अनुरूप जोखिम पहचान की उन्नत प्रणालियाँ और सुरक्षा समाधान विकसित किये हैं।
- निजी कंपनियाँ सरकारी एजेंसियों की तुलना में उभरते खतरों के प्रति अधिक तेज़ी से अनुकूलन कर सकती हैं।
- निवेश क्षमता: निजी क्षेत्र साइबर सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना में बहुत आवश्यक पूंजी निवेश प्रदान कर सकता है।
- निजी निवेश परिष्कृत सुरक्षा प्रणालियों के निर्माण में वित्तपोषण की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।
- वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास: निजी कंपनियाँ, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय अनुभव वाली कंपनियाँ, वैश्विक साइबर सुरक्षा मानकों और अभ्यासों को अपनाती हैं।
- बंगलुरु स्थित IBM का सुरक्षा कमांड सेंटर वैश्विक साइबर खतरे के परिदृश्यों पर आधारित प्रशिक्षण और सिमुलेशन अभ्यास प्रदान करता है।
निजी भागीदारी को बढ़ावा देने वाली हालिया सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC) महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की सुरक्षा के लिये निजी क्षेत्र के साथ मिलकर कार्य करता है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के अनुसार व्यवसायों को डेटा संरक्षण बोर्ड और प्रभावित पक्षों को किसी भी डेटा उल्लंघन की सूचना देना आवश्यक है।
- बोर्ड अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के लिये सुधारात्मक उपाय भी निर्देशित कर सकता है तथा भारी ज़ुर्माना (250 करोड़ रुपए तक) लगा सकता है।
- संगठनों में मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों (CISO) की अनिवार्य नियुक्ति।
चुनौतियाँ:
- विश्वास और सूचना साझाकरण: सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच संवेदनशील सुरक्षा जानकारी साझा करने में अनिच्छा।
- विनियामक अनुपालन बोझ: जटिल विनियामक आवश्यकताएँ छोटे निजी भागीदारों को हतोत्साहित कर सकती हैं। अनुपालन की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर रही है।
- कौशल अंतर: योग्य साइबर सुरक्षा पेशेवरों की कमी। मई 2023 में, प्रतिभा की कमी के कारण भारत में लगभग 40000 साइबर सुरक्षा पेशेवर नौकरी रिक्तियाँ नहीं भरी गईं।
- तेज़ी से विकसित हो रहा खतरा परिदृश्य: कई संगठन तकनीकी प्रगति विकास और उससे संबंधित साइबर खतरों के विकास के साथ तालमेल नहीं रख पा रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, परिष्कृत रैनसमवेयर हमलों के बढ़ने से कई व्यवसाय बिना तैयारी के फँस गए हैं (जैसे- हाल ही में कैसियो रैनसमवेयर हमला), जिसके परिणामस्वरूप बहुत बड़े वित्तीय नुकसान और परिचालन संबंधी व्यवधान हुए हैं।
निष्कर्ष:
भारत के साइबर सुरक्षा अवसंरचना के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी न केवल महत्त्वपूर्ण है, बल्कि अपरिहार्य भी है। जबकि चुनौतियाँ विद्यमान हैं, सरकारी पहलों और निजी क्षेत्र की क्षमताओं का संयोजन एक सुदृढ़ साइबर सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकता है। डेटा संरक्षण और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में वैध चिंताओं को दूर करते हुए, एक सहयोगी परिवेश को प्रोत्साहित करने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।