प्रश्न: आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की भूमिका का परिक्षण कीजिये। विशेष रूप से, डिजिटल बाज़ारों को विनियमित करने में आयोग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में CCI की भूमिका बताइये।
- डिजिटल बाज़ारों को विनियमित करने में चुनौतियों पर गहन विचार कीजिये।
- आगे का रास्ता सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत स्थापित भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) भारत में आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका कार्य निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना, उपभोक्ता हितों की रक्षा करना और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना है।
मुख्य भाग:
आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में CCI की भूमिका:
- प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना: CCI सक्रिय रूप से प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों, जैसे कार्टेल, मूल्य-निर्धारण और बोली-धाँधली की जाँच करता है तथा उन्हें प्रतिबंधित करता है। ये प्रथाएँ प्रतिस्पर्द्धा को बाधित कर सकती हैं, उपभोक्ता विकल्प को कम कर सकती हैं और कीमतों को बढ़ा सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं व छोटे व्यवसायों के हितों को नुकसान पहुँच सकता है।
- वर्ष 2022 में, राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण ने बीयर निर्माताओं पर CCI द्वारा लगाए गए 873 करोड़ रुपए के ज़ुर्माने को बरकरार रखा।
- विलय और अधिग्रहण का विनियमन: CCI प्रतिस्पर्द्धा पर उनके संभावित प्रभाव का आकलन करने के लिये विलय और अधिग्रहण की समीक्षा करता है।
- प्रतिस्पर्धा-विरोधी विलयों को रोककर, CCI यह सुनिश्चित करता है कि बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा योग्य बने रहें और उपभोक्ताओं को विभिन्न विकल्पों से लाभ मिले।
- वर्ष 2023 में, CCI ने कुछ शर्तों के साथ एयर इंडिया द्वारा ‘विस्तारा’ के अधिग्रहण को मंज़ूरी दी।
- प्रभुत्वशाली स्थिति के दुरुपयोग को रोकना: CCI प्रभुत्वशाली फर्मों के व्यवहार पर नज़र रखता है, ताकि उन्हें अपनी बाज़ार शक्ति का दुरुपयोग करने से रोका जा सके।
- ऐसी प्रथाओं में प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण, अनुबद्ध और बंडलिंग शामिल हो सकते हैं, जो छोटे प्रतिस्पर्द्धियों को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा उपभोक्ता के विकल्प सीमित कर सकते हैं।
- उदाहरण: गूगल के प्ले स्टोर बिलिंग नीतियों में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम की धारा 4 के उल्लंघन की जाँच।
डिजिटल बाज़ारों को विनियमित करने में चुनौतियाँ:
- डिजिटल बाज़ारों की वैश्विक प्रकृति: डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रायः वैश्विक स्तर पर काम करते हैं, जिससे राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा प्रतिषेध प्राधिकरणों के लिये उन्हें प्रभावी रूप से विनियमित करना कठिन हो जाता है।
- सीमा पार प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों को सुलझाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय नियामकों के साथ समन्वय और सहयोग आवश्यक है।
- तीव्र तकनीकी प्रगति: डिजिटल अर्थव्यवस्था में तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति के कारण CCI के लिये नवीनतम विकास के साथ तालमेल बनाए रखना और संभावित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- डेटा गोपनीयता चिंताएँ: व्हाट्सएप की गोपनीयता नीति जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा व्यक्तिगत डेटा का संग्रह और प्रयोग, गोपनीयता संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है तथा छोटे प्रतिस्पर्द्धियों के लिये बाज़ार में प्रवेश में बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है। गोपनीयता हितों के साथ प्रतिस्पर्द्धा संबंधी चिंताओं को संतुलित करना एक जटिल कार्य है।
- नेटवर्क प्रभाव: डिजिटल बाज़ार प्रायः नेटवर्क प्रभाव प्रदर्शित करते हैं, जहाँ उपयोगकर्त्ताओं की संख्या के साथ प्लेटफॉर्म का मूल्य बढ़ता है। यह प्रवेश में बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है और प्रमुख प्लेटफॉर्म को महत्त्वपूर्ण बाज़ार शक्ति का उपयोग करने की अनुमति दे सकता है।
- बाज़ार-शक्ति का आकलन: डिजिटल बाज़ारों में, बाज़ार की शक्ति के पारंपरिक उपाय, जैसे कि बाज़ार में हिस्सेदारी, उतने प्रभावी नहीं हो सकते हैं। CCI को डिजिटल संदर्भ में बाज़ार की शक्ति का आकलन करने के लिये नए उपकरण और कार्यप्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
CCI समान अवसर सुनिश्चित करके और उपभोक्ता हितों की रक्षा करके आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करके, तकनीकी विशेषज्ञता में निवेश करके और डिजिटल युग में बाज़ार की शक्ति का आकलन हेतु नए उपकरण विकसित करके, CCI भारतीय उपभोक्ताओं एवं व्यवसायों के लाभ के लिये प्रतिस्पर्द्धी व समावेशी बाज़ार वातावरण को बढ़ावा देना जारी रख सकता है।