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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "प्राचीन भारत की स्तूप स्थापत्यकला न केवल धार्मिक विश्वासों का प्रतिबिंब है, बल्कि यह अपने समय की राजनीतिक और सामाजिक गतिशीलता को भी उजागर करती है।" साँची के स्तूपों के संदर्भ में विशेष चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    21 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    दृष्टिकोण: 

    • स्तूप वास्तुकला के महत्त्व का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • प्राचीन भारत की धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिशीलता को समझने में इसकी भूमिका बताइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    प्राचीन भारत की स्तूप वास्तुकला उस समय के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के लिये एक गहन प्रमाण के रूप में कार्य करती है। ये स्मारकीय संरचनाएँ, विशेष रूप से जिनका उदहारण साँची के स्तूप हैं, बौद्ध धर्मशास्त्र, राजसी संरक्षण और सामाजिक मानदंडों के बीच जटिल अंतर्संबंध में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

    मुख्य भाग: 

    स्तूप- प्राचीन भारत की धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिशीलता की झलक: 

    • धार्मिक महत्त्व: इसका विकास बौद्ध प्रथाओं और विश्वासों के विकास को दर्शाता है:
      • अनिकोनिक निरूपण: मौर्य काल की साँची की प्राचीनतम कला में बुद्ध को मानव रूप के बजाय प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है। 
        • यह बुद्ध को आलंकारिक रूप में चित्रित करने के प्रति प्रारंभिक बौद्धों की अरुचि को दर्शाता है।
      • जातक कथाएँ: प्रवेशद्वार (तोरण) बुद्ध के जीवन के दृश्यों और जातक कथाओं से सुसज्जित हैं, जो बौद्ध धर्म में कथात्मक परंपराओं के बढ़ते महत्त्व को दर्शाते हैं।
      • अवशेष: साँची के स्तूप 3 में बुद्ध के प्रमुख शिष्यों सारिपुत्र और मौद्गल्यायन के अवशेष हैं।
        • इससे पता चलता है कि प्रारंभिक बौद्ध धर्म में अवशेष पूजा कितनी महत्त्वपूर्ण थी।
    • राजनीतिक गतिशीलता: सदियों से साँची का विकास बदलते राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है:
      • मौर्य संरक्षण: सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इस स्थल की स्थापना बौद्ध धर्म के प्रसार में मौर्य साम्राज्य की भूमिका को दर्शाती है।
        • साँची स्थित अशोक स्तंभ बौद्ध मूल्यों से जुड़ी शाही शक्ति का प्रतीक है।
      • शुंग विस्तार: शुंग राजवंश (दूसरी-पहली शताब्दी ईसा पूर्व) के दौरान स्तूप 1 का विस्तार, शुंगों की ब्राह्मणवाद के पक्षधर होने के बावजूद, निरंतर शाही संरक्षण को दर्शाता है।
      • सातवाहन योगदान: सातवाहन काल (प्रथम शताब्दी ई.) के दौरान बनाए गए अलंकृत प्रवेशद्वार इस राजवंश की बढ़ती हुई संपदा और कलात्मक परिष्कार को दर्शाते हैं।
    • सामाजिक गतिशीलता: साँची की कला और वास्तुकला प्राचीन भारतीय समाज की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है:
      • साँची के शिलालेखों से भिक्षुओं, भिक्षुणियों, आम लोगों और संघों सहित विभिन्न सामाजिक समूहों से दान का पता चलता है। यह बौद्ध धर्म के व्यापक सामाजिक आधार और स्तूप निर्माण की सहभागितापूर्ण प्रकृति को दर्शाता है।
      • प्रवेशद्वारों पर बनी नक्काशी में शहरी जीवन के दृश्य दर्शाए गए हैं, जो प्राचीन भारत में बढ़ते शहरीकरण और शहरी आबादी के लिये बौद्ध धर्म के आकर्षण को दर्शाते हैं।
      • गैर-स्थानीय कलात्मक प्रभावों (जैसे कि अकेमेनिड-प्रेरित सिंह शीर्ष) की उपस्थिति, साँची के व्यापक व्यापार नेटवर्क से संबंध का सुझाव देती है।

    निष्कर्ष: 

    प्राचीन भारत की स्तूप वास्तुकला, जिसका विशेष उदाहरण साँची का परिसर है, एक बहुआयामी सांस्कृतिक कलाकृति का रूप है। यह न केवल मूल बौद्ध सिद्धांतों को दर्शाता है, बल्कि शासकों की राजनीतिक आकांक्षाओं, समुदायों की सामाजिक गतिशीलता और उस समय की कलात्मक व तकनीकी उपलब्धियों को भी दर्शाता है।

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