प्रश्न: 'वसुधैव कुटुंबकम्' का सिद्धांत भारतीय दर्शन की गहन और मूलभूत अवधारणा है। बढ़ते वैश्विक ध्रुवीकरण के युग में, भारत की विदेश नीति को आयाम देने में इसकी प्रासंगिकता और नैतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- वसुधैव कुटुंबकम् वाक्यांश के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए परिचय दीजिये।
- भारत की विदेश नीति में 'वसुधैव कुटुंबकम्' की प्रासंगिकता और नैतिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
'वसुधैव कुटुंबकम्' वाक्यांश महोपनिषद् जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथ से लिया गया है, "जो अंतर्संबंध, पारस्परिक सम्मान और सामूहिक कल्याण पर बल देते हुए एक समग्र विश्वदृष्टिकोण को समाहित करता है।"
- जैसे-जैसे वैश्विक ध्रुवीकरण तीव्र होता जा रहा है, यह सिद्धांत अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग, शांति और सतत् विकास को बढ़ावा देने में भारत की विदेश नीति की रूपरेखा को आयाम दे रहा है।
मुख्य भाग:
भारत की विदेश नीति में 'वसुधैव कुटुंबकम्' की प्रासंगिकता और नैतिक निहितार्थ:
- सार्वभौमिक बंधुत्व और वैश्विक सहयोग: 'वसुधैव कुटुंबकम्' (विश्व एक परिवार है) का सिद्धांत सार्वभौमिक बंधुत्व पर ज़ोर देता है, जो नैतिक रूप से भारत को वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बाध्य करता है।
- यह सिद्धांत राष्ट्रीय हितों की संकीर्ण धारणा को चुनौती देता है और विदेश नीति के प्रति अधिक समावेशी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण: भारत की कोविड-19 वैक्सीन कूटनीति, जिसमें उसने ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के तहत कई देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की, इस नैतिक रुख का उदाहरण है।
- संघर्ष समाधान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: यह अवधारणा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और संघर्ष के अहिंसक समाधान को बढ़ावा देती है, जो बढ़ते ध्रुवीकरण के युग में विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- उदाहरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख, जहाँ उसने शांतिपूर्ण वार्ता का आह्वान करते हुए दोनों पक्षों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखे हैं, इस सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है।
- रूस की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के मतदान के प्रति भारत का तटस्थ रहना, जबकि इसके साथ ही यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान करना, रिश्तों में संतुलन लाने और शांति को बढ़ावा देने के प्रयास को दर्शाता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर: 'वसुधैव कुटुंबकम्' अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में हार्ड पावर के नैतिक विकल्प के रूप में सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर के प्रयोग को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को बढ़ावा देना इस सिद्धांत की अभिव्यक्ति है।
- पर्यावरण संरक्षण: यह सिद्धांत 'वसुधैव कुटुंबकम्' के विचार को वास्तविक दुनिया तक विस्तारित करता है तथा वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति नैतिक दायित्व को दर्शाता है।
- उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भारत का नेतृत्व और उसकी ‘पंचामृत प्रतिबद्धता’ इस नैतिक रुख को प्रदर्शित करती है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्रिय भूमिका निभाकर भारत वैश्विक 'परिवार' के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार करता है।
- मानवीय सहायता और आपदा राहत: यह सिद्धांत नैतिक रूप से भारत को अपनी सीमाओं से परे मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रदान करने के लिये बाध्य करता है।
- उदाहरण: वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के प्रति भारत की त्वरित प्रतिक्रिया तथा वर्ष 2022 में आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका को दी गई सहायता इस नैतिक दृष्टिकोण का उदाहरण है।
- आर्थिक सहयोग और विकास: 'वसुधैव कुटुंबकम्' नैतिक रूप से समावेशी आर्थिक नीतियों का समर्थन करता है जो अन्य देशों, विशेष रूप से कम विकसित देशों की विकास-आवश्यकताओं पर विचार करती हैं।
- उदाहरण: ग्लोबल साउथ के समर्थक के रूप में भारत की भूमिका इस सिद्धांत को दर्शाती है। ये साझेदारियाँ शोषणकारी संबंधों के बजाय आपसी लाभ पर केंद्रित हैं।
निष्कर्ष:
यद्यपि 'वसुधैव कुटुंबकम्' भारत की विदेश नीति के लिये एक मज़बूत नैतिक आधार प्रदान करता है, बढ़ते वैश्विक ध्रुवीकरण के युग में इसका अनुप्रयोग कई नैतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय हितों और वैश्विक शक्ति गतिशीलता की वास्तविकताओं के साथ इस समावेशी, सहकारी सिद्धांत को संतुलित करने के लिये सावधानीपूर्वक नैतिक विचार की आवश्यकता है।