प्रश्न: 'उत्पादन आधारित प्रोत्साहन' पहल से संबंधित भारत के विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन का मूल्यांकन कीजिये। विनिर्माण विकास को बढ़ावा देने हेतु किन चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में 'उत्पादन आधारित प्रोत्साहन' पहल की भूमिका का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
- PLI के अंतर्गत भारत के विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन मूल्यांकन कीजिये।
- उन चुनौतियों का उल्लेख कीजिये जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करना और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में भारत की क्षमता को बढ़ाना है।
- विभिन्न क्षेत्रों में विनिर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके, PLI का उद्देश्य निवेश आकर्षित करना, रोज़गार सृजन करना और प्रौद्योगिकी समावेश को बढ़ावा देना है।
मुख्य भाग:
PLI के अंतर्गत भारत के विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन मूल्यांकन:
- निवेश में वृद्धि: PLI योजना ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश आकर्षित किया है।
- मोबाइल विनिर्माण क्षेत्र में इस योजना ने एप्पल और सैमसंग जैसी प्रमुख वैश्विक कंपनियों से निवेश प्राप्त किया है।
- फॉक्सकॉन जैसी एप्पल की अनुबंध निर्माता कंपनियों ने भारत में अरबों डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- रोज़गार सृजन: इस योजना से अनेक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गारों का सृजन हुआ है।
- टेक्सटाइल क्षेत्र के लिये PLI योजना से आगामी पाँच वर्षों में 7.5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होने की उम्मीद है।
- निर्यात संवर्द्धन: इस योजना से कई क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा मिला है।
- भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात तेज़ी से वृद्धि कर रहा है, जो अब देश का पाँचवाँ सबसे बड़ा निर्यात वस्तु है, जो 23% वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
- विनिर्माण आधार का विविधीकरण: PLI योजना ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं में विविधता लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- जून 2024 में, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) ने 4.2% की साल-दर-साल वृद्धि का संकेत दिया, जिसमें विनिर्माण क्षेत्र में विशेष रूप से 2.6% की वृद्धि हुई।
- तकनीकी उन्नति: इस योजना ने विनिर्माण में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के समावेश को बढ़ावा दिया है।
- ऑटोमोटिव क्षेत्र में, PLI योजना ने इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया है, जिससे निर्माता उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिये प्रेरित हुए हैं।
चुनौतियाँ जिनका समाधान आवश्यक है:
- बुनियादी अवसंरचना की बाधाएँ: अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना विनिर्माण विकास के लिये एक बहुत बड़ी बाधा बनी हुई है।
- विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति की कमी और खराब लॉजिस्टिक्स अवसंरचना (लॉजिस्टिक्स लागत वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 13-14 प्रतिशत है) के कारण उत्पादन लागत और विलंब दोनों बढ़ जाते हैं।
- कौशल अंतर: उद्योग द्वारा अपेक्षित कौशल और कार्यबल द्वारा प्राप्त कौशल के बीच असंतुलित स्थिति बनी हुई है, जिससे वित्त वर्ष 2025 के अंत तक 30-32 मिलियन लोगों में संभावित रूप से कौशल कमी हो सकती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में उन्नत विनिर्माण प्रक्रियाओं के लिये कुशल श्रमिकों की कमी है, जिससे संभावित रूप से PLI से जुड़े लाभों की पूर्ण प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- विनियामक बाधाएँ: जटिल विनियमन और नौकरशाही प्रक्रियाएँ निवेश को बाधित कर सकती हैं तथा विनिर्माण विकास को धीमा कर सकती हैं।
- विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिये विभिन्न विभागों से कई अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जिससे विलंब हो सकता है तथा लागत बढ़ सकती है।
- कच्चे माल की उपलब्धता: कुछ क्षेत्रों के लिये आयातित कच्चे माल पर निर्भरता विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण सेमीकंडक्टर उद्योग को घरेलू चिप विनिर्माण क्षमताओं की कमी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है (भारत ने 5.38 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सेमीकंडक्टर उपकरणों का आयात किया)
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय निर्माताओं को अन्य विनिर्माण केंद्रों, विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशिया से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है।
- वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश इलेक्ट्रॉनिक्स तथा टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में श्रम लागत एवं स्थापित आपूर्ति शृंखलाओं के संदर्भ में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करते हैं।
- प्रौद्योगिकी को अपनाना: कई लघु और मध्यम उद्योग (SME) वित्तीय बाधाओं के कारण नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने में संघर्ष करते हैं।
- ऑटो कम्पोनेंट क्षेत्र में, कई SME को इंडस्ट्री 4.0 प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चुनौतीपूर्ण लगता है, जिससे संभवतः वे बड़ी कंपनियों की तुलना में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाते हैं।
विनिर्माण विकास को बढ़ावा देने के लिये सिफारिशें:
- बुनियादी अवसंरचना के विकास में निवेश की आवश्यकता है, विशेष रूप से औद्योगिक कॉरिडोर और लॉजिस्टिक्स में।
- आयरलैंड मॉडल के आधार पर उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- सिंगल विंडो निकासी प्रणाली के माध्यम से विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
- भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की अधिसूचना के साथ आवश्यक कच्चे माल और घटकों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना सही दिशा में उठाया गया कदम है।
निष्कर्ष:
उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना ने भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। हालाँकि देश में विनिर्माण विकास को बनाए रखने और इसको गति देने के लिये बुनियादी अवसंरचना, कच्चे माल, कौशल विकास, विनियमन तथा वैश्विक व्यापार से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।