नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में सामाजिक असमानताओं को दूर करने में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण कीजिये? क्या शिक्षा का अधिकार अधिनियम अपने उद्देश्यों को पूर्णतः प्राप्त कर सका है? (150 शब्द)

    14 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • सामाजिक असमानताओं को दूर करने में शिक्षा की भूमिका के समर्थन में तर्क दीजिये। 
    • शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सामाजिक समावेशन के उद्देश्यों का मूल्यांकन कीजिये।  
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम की सीमाओं की चर्चा कीजिये।  
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    शिक्षा सामाजिक विषमताओं को समाप्त करने में एक परिवर्तनकारी साधन है, विशेषकर भारत में जहाँ जाति, वर्ग और लैंगिक असमानताएँ आवश्यक हैं। बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE अधिनियम) का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना तथा सामाजिक समावेश को बढ़ावा देना है।

    मुख्य भाग: 

    सामाजिक असमानताओं को दूर करने में शिक्षा की भूमिका:

    • आर्थिक सशक्तीकरण: शिक्षा व्यक्तियों को बेहतर रोज़गार के अवसरों और आर्थिक स्वतंत्रता के लिये आवश्यक कौशल एवं ज्ञान से समृद्ध करती है।
      • उदाहरण: कल्पना सरोज की सफलता की कहानी ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ से मिलती जुलती है, क्योंकि वह एक दलित बालिका वधू से करोड़पति बन गई है।
    • सामाजिक गतिशीलता: शिक्षा ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता के अवसर प्रदान करती है, जिससे वंचित पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने का अवसर मिलता है।
      • उदाहरण: डॉ. बी.आर. अंबेडकर की कहानी, जो दलित पृष्ठभूमि से संबंधित थे, आगे चलकर भारत के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक और भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार बन गए, एक उदाहरण है कि शिक्षा कैसे सामाजिक गतिशीलता को सुगम बना सकती है।
    • लैंगिक समानता: महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
      • उदाहरण: कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना ने हाशिये के समुदायों की लड़कियों के लिये आवासीय विद्यालय स्थापित किये हैं, जिससे उनकी शिक्षा तक पहुँच में सुधार हुआ है।
    • जातिगत बाधाओं को पार करना: शिक्षा विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच समन्वय और समझ को बढ़ावा देकर जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने में मदद करती है। 
      • उदाहरण: स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना जातिगत बाधाओं को समाप्त करने में सफल रही है, क्योंकि विभिन्न जातियों के बच्चे एक साथ भोजन करते हैं।
    • जागरूकता और सशक्तीकरण: शिक्षा अधिकारों, सामाजिक मुद्दों और सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाती है तथा हाशिये पर पड़े समुदायों को अपने अधिकारों का दावा करने के लिये सशक्त बनाती है। 
      • उदाहरण: सूचना का अधिकार अधिनियम आंशिक रूप से शिक्षा के माध्यम से बढ़ी जागरूकता का परिणाम है।

    शिक्षा का अधिकार अधिनियम के सामाजिक समावेशन के उद्देश्यों का मूल्यांकन:

    • नामांकन में वृद्धि: RTE अधिनियम ने स्कूल नामांकन दरों में उल्लेखनीय सुधार (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्कूलों में 26.52 करोड़ छात्र और उच्च शिक्षा में 4.33 करोड़ छात्र) किया है, विशेष रूप से वंचित समूहों के लिये।
    • बुनियादी अवसंरचना का विकास: इस अधिनियम के कारण स्कूल के बुनियादी अवसंरचना में सुधार (90% से अधिक स्कूलों में पीने योग्य नल-जल उपलब्ध है, 95.5% सरकारी स्कूलों में लड़कों के लिये शौचालय हैं और 97.4% स्कूलों में लड़कियों के लिये शौचालय हैं) हुआ है, जिससे शिक्षा अधिक सुलभ हो गई है। 
    • वंचित समूहों का समावेशन: निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों और वंचित समूहों के लिये 25% आरक्षण ने सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दिया है।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान: अधिनियम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के महत्त्व पर ज़ोर देता है, जिसमें छात्र-शिक्षक अनुपात और शिक्षक योग्यता के मानदंड शामिल हैं। (UDISEPlus 2021-22 के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत का छात्र-शिक्षक अनुपात प्राथमिक स्तर के लिये औसतन 26:1, उच्च प्राथमिक के लिये 19:1, माध्यमिक के लिये  17:1 और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिये 27:1 है)

    सीमाएँ:

    • गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: यद्यपि नामांकन में सुधार हुआ है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता अभी भी, विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में चिंता का विषय बनी हुई है। (ASER रिपोर्ट- 2023 से पता चलता है कि 14-18 आयु वर्ग के लगभग 25% युवा अभी भी अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर की पाठ्य सामग्री को धाराप्रवाह ढंग से नहीं पढ़ सकते हैं)
    • कार्यान्वयन में अंतराल: राज्यों में अधिनियम के असमान कार्यान्वयन के कारण इसकी प्रभावशीलता में असमानताएँ आई हैं। (जबकि केरल जैसे राज्यों ने लगभग सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर ली है, बिहार जैसे अन्य राज्य अभी भी उच्च ड्रॉपआउट दरों से जूझ रहे हैं)।
    • शिक्षकों की कमी: कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। (शिक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश भर के सरकारी स्कूलों में 10 लाख से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं)।
    • कुछ समूहों का बहिष्कार: सुधारों के बावजूद, दिव्यांग बच्चों और प्रवासी बच्चों जैसे कुछ समूहों को बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। (भारत में दिव्यांग बच्चों में से 75% स्कूल नहीं जाते हैं: यूनेस्को)
      • इसके अलावा, माध्यमिक विद्यालय (कक्षा 9 और 10) में लैंगिक असमानता बढ़ती जा रही है, जहाँ नामांकित बच्चों में लड़कियों की संख्या घटकर 47.9% रह गई है। 
    • निजी स्कूलों का विरोध: कुछ निजी स्कूलों ने वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए 25% आरक्षण खंड का विरोध किया है। (वर्ष 2020 में, दिल्ली के कई निजी स्कूलों ने EWS छात्रों की फीस की प्रतिपूर्ति न होने के कारण बंद होने की धमकी दी थी)

    निष्कर्ष: 

    सामाजिक असमानताओं को दूर करने में शिक्षा की क्षमता का सही अर्थ में उपयोग करने के लिये भारत को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने, सभी राज्यों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अनुरूप RTE अधिनियम, 2009 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और सबसे वंचित समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। तभी शिक्षा भारतीय समाज में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अंतर को समाप्त करते हुए एक वास्तविक समानता लाने वाला घटक बन सकती है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow