- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास में बंगाल चित्रकला शैली के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
14 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
दृष्टिकोण:
- बंगाल चित्रकला शैली के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए उत्तर दीजिये।
- आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास पर बंगाल चित्रकला शाखा के प्रभाव का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
बंगाल चित्रकला शैली का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू पश्चिमी कलात्मक शैलियों के प्रभुत्व के प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ। अबनिंद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों के नेतृत्व में, इसका उद्देश्य स्वदेशी कलात्मक परंपराओं को पुनर्जीवित करना और आधुनिक कला में एक विशिष्ट भारतीय पहचान स्थापित करना था।
मुख्य भाग:
आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास पर बंगाल चित्रकला शैली का प्रमुख प्रभाव:
- भारतीय कलात्मक परंपराओं का पुनरुद्धार: बंगाल चित्रकला शैली ने पारंपरिक भारतीय कला रूपों, विशेषकर मुगल और राजपूत लघु चित्रकला में रुचि को पुनर्जीवित किया।
- इसमें स्वदेशी तकनीकों, कंटेंट और विषयों के उपयोग पर ज़ोर दिया गया।
- उदाहरण: अबनिंद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध पेंटिंग ‘भारत माता’ (वर्ष 1905) में अजंता गुफा चित्रकला और मुगल लघुचित्रों के तत्त्व शामिल थे।
- एक विशिष्ट भारतीय शैली का विकास: कला की इस शाखा ने पूर्वी और पश्चिमी कलात्मक तत्त्वों का एक अनूठा मिश्रण बनाया, जिससे एक नई भारतीय कलात्मक पहचान स्थापित हुई।
- इसने यूरोपीय तैल चित्रकला परंपराओं से हटकर जलरंगों में वॉश तकनीक के प्रयोग को बढ़ावा दिया।
- उदाहरण: नंदलाल बोस की पेंटिंग्स, जैसे ‘सती’ (1907), शैलियों के इस सम्मिश्रण का उदाहरण हैं।
- राष्ट्रवादी विषय-वस्तु और कल्पना: बंगाल चित्रकला शैली के कलाकार प्रायः भारतीय पौराणिक कथाओं, इतिहास और रोज़मर्रा की जीवन के विषयों को चित्रित करते थे, जिससे राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा मिला।
- इस दृष्टिकोण ने व्यापक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया।
- कला शिक्षा पर प्रभाव: वर्ष 1919 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में कला भवन की स्थापना ने कला शिक्षा के प्रति बंगाल चित्रकला शैली के दृष्टिकोण को संस्थागत रूप दिया।
- इस मॉडल ने पूरे भारत में कला पाठ्यक्रमों को प्रभावित किया तथा भारतीय कलात्मक परंपराओं के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- उदाहरण: कलकत्ता (अब कोलकाता) स्थित गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट ने ई.बी. हैवेल के नेतृत्व में बंगाल चित्रकला शैली के कई सिद्धांतों को अपनाया।
- अखिल एशियाई कलात्मक आदान-प्रदान: बंगाल चित्रकला शैली ने अन्य एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान के साथ कलात्मक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया, जिससे एशियाई सांस्कृतिक एकता की भावना को भी प्रोत्साहन मिला।
- इससे भारतीय चित्रकला में पूर्वी एशियाई कलात्मक तकनीकों का समावेश हुआ।
- उदाहरण: जापानी कलाकार अराई काम्पो ने नंदलाल बोस जैसे कलाकारों को प्रभावित किया।
- पश्चिमी शैक्षणिक यथार्थवाद की आलोचना: इस कला शाखा ने भारतीय कला संस्थानों में पश्चिमी शैक्षणिक यथार्थवाद के प्रभुत्व को चुनौती दी।
- इसने प्रतिनिधित्व के लिये अधिक शैलीगत, प्रतीकात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया।
- उदाहरण: अबनिंद्रनाथ टैगोर की ‘द पासिंग ऑफ शाहजहाँ’ (1902) ने अधिक भावनात्मक, शैलीगत चित्रण के पक्ष में फोटोग्राफिक यथार्थवाद का खंडन किया।
- पारंपरिक शिल्प का संरक्षण और संवर्द्धन: बंगाल कला शाखा का ज़ोर स्वदेशी कला रूपों पर था, जो पारंपरिक शिल्प तक विस्तारित था, जिससे इन प्रथाओं को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में मदद मिली।
- उदाहरण: बंगाल में परंपरागत अल्पोना डिज़ाइन को पुनर्जीवित करने के लिये नंदलाल बोस का प्रयास।
- इंद्र दुगर की कृतियाँ ग्रामीण बंगाली दृश्यों और भारतीय पौराणिक कथाओं को दर्शाती हैं। उनकी कुछ सबसे उल्लेखनीय कृतियाँ ‘द फेरी’ और ‘विलेज सीन’ हैं।
- उदाहरण: बंगाल में परंपरागत अल्पोना डिज़ाइन को पुनर्जीवित करने के लिये नंदलाल बोस का प्रयास।
निष्कर्ष:
बंगाल चित्रकला शैली का आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा। इसने पश्चिमी कलात्मक प्रभुत्व को सफलतापूर्वक चुनौती देते हुए स्वदेशी कला रूपों में रुचि को पुनर्जीवित किया और एक विशिष्ट भारतीय कलात्मक पहचान बनाई। हालाँकि इसका प्रत्यक्ष शैलीगत प्रभाव कम हो गया है, लेकिन आधुनिकता को अपनाते हुए परंपरा से जुड़ने के इसके व्यापक सिद्धांत भारतीय कला को आयाम देना जारी रखते हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print