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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    डॉ. शर्मा, एक प्रसिद्ध जैव प्रौद्योगिकी कंपनी की वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो एक नए विषाणु संक्रामक रोग के तेज़ी से प्रसारित हो रहे प्रकार के उपचार हेतु एक दवा विकसित करने वाले अनुसंधान दल का नेतृत्व कर रही हैं। विश्वभर में और भारत में मामलों में वृद्धि के साथ, डॉ. शर्मा के दल पर दवा परीक्षणों में तेज़ी लाने का बहुत दबाव है। कंपनी महत्त्वपूर्ण बाज़ार क्षमता का लाभ उठाना चाहती है और प्रथम-प्रवर्तक का लाभ प्राप्त करना चाहती है।

    टीम मीटिंग के दौरान, वरिष्ठ सदस्य क्लिनिकल ट्रायल में तीव्रता लाने और त्वरित मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये लघु पथन का प्रस्ताव देते हैं। इनमें नकारात्मक प्रतिफलों को निष्कर्षित करने और चुनिंदा रूप से सकारात्मक प्रतिफलों की रिपोर्ट करने के लिये डेटा का छलसाधन, सूचित सहमति प्रक्रियाओं को उपपथन और स्वयं के द्वारा विकसित करने के बजाय प्रतिद्वंद्वी कंपनी के पेटेंट यौगिकों का उपयोग करना शामिल है। डॉ. शर्मा इन लघुपथन मार्गों से असहज महसूस करती हैं, परंतु उन्हें अनुभव होता है कि ऐसे साधनों का उपयोग किये बिना लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव है। अब उन्हें एक कठिन निर्णय का सामना करना पड़ रहा है जो बाज़ार के दबावों और उपचार की तत्काल आवश्यकता के विरुद्ध वैज्ञानिक सत्यनिष्ठता और रोगी सुरक्षा को चुनौती देता है।

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
    2. डॉ. शर्मा को किन नीतिपरक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?
    3. इस परिदृश्य में डॉ. शर्मा को क्या कदम उठाना चाहिये?

    11 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:  

    डॉ. शर्मा, एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो तेज़ी से फैल रहे वायरल रोग के लिये दवा विकसित करने वाली टीम का नेतृत्व कर रही हैं। परीक्षणों में तेज़ी लाने और अनुमोदन प्राप्त करने के भारी दबाव में, उनके सहकर्मियों ने डेटा हेरफेर व सूचित सहमति को दरकिनार करने सहित अनैतिक शॉर्टकट का प्रस्ताव दिया है। 

    • डॉ. शर्मा वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखने और उपचार के लिये तत्काल बाज़ार की मांग को पूरा करने के बीच दुविधा में हैं। उन्हें यह तय करना होगा कि नैतिकता को प्राथमिकता देनी है या व्यावसायिक दबावों के आगे झुकना है।

    मुख्य भाग: 

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?

    हितधारक

    स्थिति में भूमिका/रुचि

    डॉ. शर्मा (वरिष्ठ वैज्ञानिक)

    वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखने और दवा विकास में तीव्रता लाने के दबाव में समझौता करने के बीच एक नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

    खोजी दल

    व्यावसायिक उपलब्धि और बाज़ार लाभ दोनों से प्रेरित होकर, समय-सीमा को पूरा करने के लिये डॉ. शर्मा पर अनैतिक शॉर्टकट अपनाने का दबाव डाला गया।

    जैव प्रौद्योगिकी कंपनी

    इसका उद्देश्य दवा की क्षमता का लाभ उठाना, शीघ्र बाज़ार अनुमोदन प्राप्त करना तथा लाभ बढ़ाने के लिये प्रथम प्रस्तावक का लाभ प्राप्त करना है।

    मरीज़ (विश्वभर में और भारत में)

    सुरक्षित और प्रभावी दवा के विकास पर निर्भर हैं तथा यदि नैदानिक ​​अध्ययनों के साथ छेड़छाड़ की जाती है या आँकड़ों में हेराफेरी की जाती है, तो उन्हें हानि पहुँचने का खतरा है।

    नियामक निकाय

    औषधि परीक्षणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और नैतिक मानकों को सुनिश्चित करने का कार्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये ज़िम्मेदार।

    प्रतिद्वंद्वी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी

    बौद्धिक संपदा अधिकार खतरे में हैं तथा उसके पास ऐसे प्रस्तावित यौगिकों के पेटेंट हैं, जिनका अनधिकृत प्रयोग करने का सुझाव दिया गया है।

    वैज्ञानिक समुदाय

    अनुसंधान और डेटा की अखंडता के लिये वैज्ञानिक समुदाय पर भरोसा किया जाता है, क्योंकि किसी भी प्रकार की हेराफेरी से वैज्ञानिक प्रगति में जनता का विश्वास कम होता है।  

    स्वास्थ्य रक्षक सुविधाएँ प्रदान करने वाले

    यदि दवा सुरक्षा से समझौता किया जाता है तो मरीज़ों के उपचार के लिये ज़िम्मेदार स्वास्थ्य सेवा प्रदाता भी संभावित रूप से संकट में पड़ सकते हैं।

    निवेशक/शेयरधारक

    कंपनी की वित्तीय सफलता में रुचि लेने वाले निवेशक संभवतः दवा के शीघ्र जारी होने के लिये शॉर्टकट को प्रोत्साहित कर सकते हैं।   

    वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरण

    वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों ने बायोटेक कंपनियों की सही रिपोर्टिंग पर विश्वास करते हुए, सुरक्षित और प्रभावी उपचारों के साथ महामारी से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया।

    2. डॉ. शर्मा को कौन-सी नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है?

    • वैज्ञानिक अखंडता बनाम शीघ्र परिणाम: डॉ. शर्मा को वैज्ञानिक दृढ़ता और अखंडता बनाए रखने या औषधि विकास प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये शॉर्टकट अपनाने के मध्य चयन करना चाहिये।
    • डेटा/आँकड़ों में हेरफेर करना तथा चुनिंदा परिणामों की रिपोर्टिंग करना वैज्ञानिक अनुसंधान के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन है तथा इससे अविश्वसनीय या खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकते हैं।
    • रोगी सुरक्षा बनाम त्वरित औषधि वितरण: संपूर्ण सुरक्षा परीक्षण सुनिश्चित करना तथा संभावित जीवनरक्षक औषधि को बाज़ार में शीघ्रता से जारी करना, दोनों ही बातें एक दूसरे से भिन्न हैं।
    • सूचित सहमति प्रक्रियाओं को दरकिनार करने से मरीज़ों को उनके उपचार और परीक्षणों में भागीदारी के बारे में सूचित निर्णय लेने के अधिकार से वंचित किया जाता है।
    • व्यावसायिक नैतिकता बनाम संगठनात्मक दबाव: एक वैज्ञानिक के रूप में डॉ. शर्मा पर शोध में नैतिक मानकों को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है। हालाँकि लक्ष्य और समय-सीमा को पूरा करने के लिये उन पर अपने संगठन का दबाव है।
    • इससे उसकी व्यावसायिक निष्ठा और एक कर्मचारी व टीम लीडर के रूप में उसकी भूमिका के बीच तनाव उत्पन्न होता है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार बनाम सुविधा: प्रतिद्वंद्वी कंपनी के पेटेंट यौगिकों का उपयोग करने का प्रस्ताव बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन है और अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दे को उठाता है।
    • इससे अनुसंधान में वैधानिक और नैतिक सीमाओं का सम्मान करने तथा द्रुत परिणाम प्राप्त करने के बीच दुविधा उत्पन्न होती है।

    3. इस परिदृश्य में डॉ. शर्मा को क्या कदम उठाना चाहिये?

    • अनैतिक शॉर्टकट की अवमानना: डॉ. शर्मा को डेटा में हेरफेर करने, चुनिंदा परिणामों की रिपोर्ट करने, या सूचित सहमति प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के किसी भी प्रस्ताव को दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिये। 
      • ये कार्य मूलतः अनैतिक हैं और मरीजों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये नैतिक तरीकों का पता लगाना: सुरक्षा मानकों पर समझौता किये बिना, तत्काल उपचार के लिये त्वरित समीक्षा प्रक्रिया स्थापित करने हेतु नियामक निकायों के साथ सहयोग करना चाहिये।
      • परियोजना के लिये आवंटित संसाधनों में वृद्धि करना चाहिये, जैसे अधिक शोधकर्त्ताओं को नियुक्त करना या प्रयोगशाला क्षमता का विस्तार करना।
      • जहाँ संभव और सुरक्षित हो, वहाँ विभिन्न अनुसंधान चरणों का समानांतर प्रसंस्करण क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
    • पारदर्शिता को प्राथमिकता: सभी परीक्षण परिणामों, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक, का पूर्ण रूप से प्रकट करने के लिये प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। इससे वैज्ञानिक अखंडता और सार्वजनिक विश्वास बना रहता है।
    • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: अनुसंधान और नैदानिक ​​परीक्षणों को अनुकूलित करने के लिये उन्नत AI और डेटा एनालिटिक्स टूल को लागू करने की सिफारिश की जानी चाहिये। 
    • ये प्रौद्योगिकियाँ डेटा संग्रहण को स्वचालित कर पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग को बढ़ा सकती हैं तथा प्रवृत्तियों की पहचान कर सकती हैं, जिससे अंततः अनुसंधान प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
    • मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके, टीम विशाल डेटासेट का कुशलतापूर्वक विश्लेषण कर सकती है तथा कठोर गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए समय पर जानकारी सुनिश्चित कर सकती है।
      • बौद्धिक संपदा अधिकारों का सम्मान करना: प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के पेटेंट प्राप्त यौगिकों को बिना अनुमति के उपयोग करने की किसी भी योजना से बचना चाहिये। 
        • इसके बजाय, यदि ये यौगिक महत्त्वपूर्ण हों तो कानूनी सहयोग या लाइसेंसिंग समझौतों पर विचार करने की आवश्यकता है।
      • हितधारकों के साथ स्पष्ट रूप से संवाद: कंपनी के नेतृत्वकर्त्ताओं को दाँव पर लगे नैतिक मुद्दों और शॉर्टकट अपनाने के संभावित दीर्घकालिक परिणामों के बारे में समझाने की आवश्यकता है।
        • इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिये कि ईमानदारी बनाए रखना “कंपनी की प्रतिष्ठा और दीर्घकालिक सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण” है।
    • मुखबिरी: यदि कंपनी की ओर से दबाव असहनीय हो जाए, तो डॉ. शर्मा को संभावित प्रतिशोध से बचाव के लिये मुखबिर सुरक्षा पर विचार करना चाहिये।
    • बाह्य नैतिकता समितियों या कानूनी सलाहकारों से सलाह लेने से बहुमूल्य मार्गदर्शन और सहायता मिल सकती है। 
    • यह उपाय नैतिक मानदंडों के संरक्षण की गारंटी देता है और डॉ. शर्मा को अपने करियर या ईमानदारी से समझौता किये बिना किसी भी अनैतिक व्यवहार या सुरक्षा चिंताओं की रिपोर्ट करने की अनुमति देता है।
    • रोगी सुरक्षा और सहमति पर ध्यान देना: यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सभी परीक्षण प्रतिभागियों को पूरी जानकारी दी गई है और उन्होंने इसपर अपनी सहमति दी है। इस दिशा में सुदृढ़ सुरक्षा निगरानी प्रोटोकॉल लागू करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष: 

    उपरोक्त दृष्टिकोण का पालन करके, डॉ. शर्मा नैतिक विचारों, वैज्ञानिक अखंडता और दीर्घकालिक सोच के साथ उपचार की तत्काल आवश्यकता को संतुलित कर सकती हैं। इस कार्यवाही का उद्देश्य रोगी सुरक्षा या वैज्ञानिक मानकों से समझौता किये बिना, नैतिक रूप से अनुसंधान प्रक्रिया को गति देना है। यह केवल इस एक मामले को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि यह एक मिसाल कायम कर सकता है कि उनकी टीम और कंपनी भविष्य के नैतिक मुद्दों को किस प्रकार संभालती है। यह दृष्टिकोण डॉ. शर्मा की पेशेवर अखंडता, कंपनी की प्रतिष्ठा की भी रक्षा करता है और अंततः एक सुरक्षित तथा प्रभावी उपचार के विकास को सुनिश्चित करके सार्वजनिक हित में काम करता है।

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