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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    नैतिक विवेकशून्यता की अवधारणा और लोक सेवा परिदान पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिये। इस तरह की विवेकशून्यता के समाधान हेतु संगठनों द्वारा नीतिपरक जागरूकता का संवर्द्धन कैसे किया जा सकता है? (150 शब्द)

    10 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • नैतिक विवेकशून्यता को परिभाषित करके अपने उत्तर की भूमिका लिखिये।
    • जन (नागरिक) सेवा प्रदायगी पर नैतिक विवेकशून्यता के संभावित प्रभाव बताइए।
    • नैतिक विवेकशून्यता को रोकने के लिये नीतिपरक जागरूकता को संवर्द्धित करने के मार्ग सुझाइए।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    नैतिक विवेकशून्यता एक ऐसी मानसिक स्थिति को संदर्भित करता है, जिसमें व्यक्ति या संगठन नीतिपरक दुविधाओं या नैतिक दोषों को पहचानने या स्वीकार करने में विफल हो जाते हैं। इस घटना के जन (नागरिक) सेवा प्रदायगी पर महत्त्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे भ्रष्टाचार, अदक्षता और जनता के विश्वास में कमी आ सकती है।

    मुख्य भाग: 

    जन (नागरिक) सेवा प्रदायगी पर नैतिक विवेकशून्यता के संभावित प्रभाव: 

    • भ्रष्टाचार और अदक्षता: जब व्यक्ति या संगठन नैतिक रूप से विवेकशून्य होते हैं, तो वे रिश्वतखोरी, गबन और भाई-भतीजावाद जैसे  भ्रष्ट आचरण में संलिप्त होने के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
      • इससे जन (नागरिक) सेवाओं की गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है, क्योंकि संसाधनों का कुप्रबंधन होता है और प्राथमिकताएँ विकृत हो जाती हैं।
    • लोक विश्वास की हानि: नैतिक विवेकशून्यता सरकारी संस्थाओं और लोक सेवकों में जनता के विश्वास को समाप्त कर सकती है।
      • जब लोगों को यह अनुभव होता है कि सत्ता में बैठे लोग नैतिक रूप से कार्य नहीं कर रहे हैं, तो वे भ्रमित हो सकते हैं और राजनीतिक प्रक्रिया से विमुख हो सकते हैं।
    • नकारात्मक सामाजिक और आर्थिक परिणाम: नैतिक विवेकशून्यता के नकारात्मक सामाजिक और आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे असमानता, निर्धनता और सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है। 
      • उदाहरण के लिये, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कारण सुभेद्य आबादी को चिकित्सा देखभाल तक अपर्याप्त पहुँच मिल सकती है, जबकि शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कारण बच्चों के लिये शिक्षा के अवसरों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

    नैतिक विवेकशून्यता को रोकने के लिये नीतिपरक जागरूकता का संवर्द्धन

    नैतिक विवेकशून्यता को रोकने और नैतिक सिद्धांतों पर आधारित  जन (नागरिक) सेवा प्रदायिता सुनिश्चित करने के लिये संगठन कई कदम उठा सकते हैं:

    • नीतिपरक प्रशिक्षण और शिक्षा: कर्मचारियों को नीतिपरक सिद्धांतों, मूल्यों और निर्णयन पर प्रशिक्षण प्रदान करने से उन्हें एक सुदृढ़ नीतिपरक दिशा-निर्देश विकसित करने में सहायता मिल सकती है। 
      • यह प्रशिक्षण अविरत होना चाहिये तथा संगठन की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये।
    • नीतिपरक नेतृत्व: सत्यनिष्ठता और उत्तरदायित्व की संस्कृति का निर्माण करने के लिये नीतिपरक नेतृत्व आवश्यक है। 
      • नेताओं को नीतिपरक व्यवहार का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये तथा अपने कर्मचारियों के बीच नीतिपरक आचरण के लिये स्पष्ट अपेक्षाएँ निर्धारित करनी चाहिये।
    • नैतिक संहिता और नीतियाँ: स्पष्ट नैतिक संहिताओं और नीतियों का विकास और कार्यान्वयन कर्मचारियों को नीतिपरक दुविधाओं से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है। 
      • इन संहिताओं की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिये तथा संगठन और उसके वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिये उन्हें अद्यतन किया जाना चाहिये।
    • नीतिपरक सूचना प्रणाली: गुप्त सूचना प्रणाली स्थापित करने से कर्मचारियों को प्रतिफल के भय के बिना अनैतिक व्यवहार की सूचना देने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
      • ये प्रणाली सुलभ और पारदर्शी होने चाहिये तथा अन्वेषण शीघ्रता और निष्पक्षता से किया जाना चाहिये।
    • नीतिपरक संपरीक्षा और मूल्यांकन: नियमित नीतिपरक संपरीक्षा और मूल्यांकन संगठनों को संभावित नैतिक जोखिमों की पहचान करने और उनका समाधान करने में सहायता कर सकते हैं। 
      • निष्पक्षता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये ये संपरीक्षण स्वतंत्र तृतीय पक्षों द्वारा किये जाने चाहिये।
    • नीतिपरक चिंतन और चर्चा: कर्मचारियों के लिये नीतिपरक चिंतन और चर्चा में सम्मिलित होने के अवसर उत्पन्न करने से नैतिक जागरूकता और उत्तरदायित्व की संस्कृति को संवर्द्धित किया जा सकता है। 
      • यह कार्यशालाओं, सेमिनारों या अनौपचारिक चर्चाओं के माध्यम से किया जा सकता है।

    निष्कर्ष: 

    इन कार्यनीतियों को कार्यान्वित करके, संगठन नैतिक जागरूकता की संस्कृति को संवर्द्धित कर सकते हैं और नैतिक विवेकशून्यता को जन (नागरिक) सेवा प्रदायिता को कमज़ोर करने से रोक सकते हैं। जब लोक सेवक नैतिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं और सत्यनिष्ठता के साथ कार्य करते हैं, तो वे जनता का विश्वास और सम्मान अर्जित कर सकते हैं तथा अधिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज में योगदान दे सकते हैं।

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