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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के कई भाग में भूजल की कमी एक बढ़ती हुई चिंता है। इस समस्या में योगदान देने वाले कारकों का मूल्यांकन कीजिये और इस समस्या के समाधान हेतु संवहनीय जल प्रबंधन प्रथाओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    09 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में भूजल की कमी की सीमा पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये
    • भूजल ह्रास में योगदान देने वाले कारक बताइए
    • प्रमुख संवहनीय जल प्रबंधन प्रथाओं पर प्रकाश डालिये
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये

    परिचय:

    भारत में भूजल ह्रास एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौती बनकर उभरी है, जिससे जल सुरक्षा, कृषि संवहनीयता और समग्र आर्थिक विकास के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है।

    • भारत में कुल अनुमानित भूजल ह्रास 122-199 बिलियन मीटर क्यूब की सीमा में है।

    मुख्य भाग:

    भूजल ह्रास में योगदान देने वाले कारक:

    • सिंचाई के लिये अत्यधिक दोहन: भारत में ताज़े पानी के उपयोग में कृषि का योगदान लगभग 80-90% है, जबकि सिंचाई की 60% आवश्यकता की पूर्ति भूजल से होती है।
      • पंजाब में चावल-गेहूँ की गहन खेती के कारण जल स्तर प्रति वर्ष 0.7-1.2 मीटर की दर से घट रहा है।
      • केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मूल्यांकित 6,881 इकाइयों में से 1,186 का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसका मुख्य कारण कृषि उपयोग है।
    • जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों के तीव्र वर्द्धन के कारण घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिये जल की मांग में वृद्धि हुई है।
      • दिल्ली में जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण के कारण वर्ष 2011-2020 के दौरान भूजल स्तर 24 मीटर तक गिर गया है।
      • अनुमान है कि वर्ष 2036 तक भारत की शहरी जनसंख्या 600 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जिससे भूजल संसाधनों पर और अधिक दबाव पड़ेगा।
    • अकुशल जल उपयोग और वितरण: च्यवन, अकुशल सिंचाई पद्धतियों और पुरानी आधारिक संरचना के कारण जल का ह्रास अधिक होता है।
      • मुंबई नगर में लगभग 30-35% जल आपूर्ति च्यवन और चोरी के कारण नष्ट हो जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन: परिवर्तित वर्षा प्रारूप और वर्द्धित वाष्पीकरण दर भूजल पुनर्भरण को प्रभावित करती है।
      • वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ और उसके बाद अनावृष्टि की स्थिति ने जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को प्रकट किया है।
      • भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 1950 के दशक से औसत वार्षिक वर्षा में 6% की कमी आई है।
    • विनियमन एवं प्रवर्तन का अभाव: कमज़ोर भूजल कानून और निष्कर्षण दरों की अपर्याप्त निगरानी।
      • कई राज्यों में भूजल विनियमन के लिये मॉडल विधेयक के कार्यान्वयन के बावजूद , इसका प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है।
      • वर्ष 2021 तक, केवल 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने भूजल प्रबंधन के लिये विधि का निर्माण किया है और उन्हें केवल चार राज्यों में आंशिक रूप से कार्यान्वित किया गया है।

    संवहनीय जल प्रबंधन संबंधी प्रथाएँ

    • उन्नत कृषि पद्धतियाँ: जल-कुशल फसलों और सिंचाई विधियों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
      • तमिलनाडु में चावल गहनीकरण प्रणाली (SRI) से जल का उपयोग 40% तक कम हो गया है, जबकि पैदावार में वृद्धि हुई है।
    • वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण: बड़े पैमाने पर वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जा सकता है।
      • "जल शक्ति अभियान" का उद्देश्य 256 जल-संकटग्रस्त ज़िलों में वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना है, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • मांग प्रबंधन और जल संरक्षण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल-बचत प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
      • बेंगलूरू शहर ने 2,400 वर्ग फुट या उससे अधिक छत वाले सभी भवनों के लिये वर्षा जल संचयन अनिवार्य कर दिया है, जिसे अन्य शहरों में भी कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) पृष्ठीय और भूजल संसाधनों पर विचार करते हुए जल प्रबंधन के लिये समग्र दृष्टिकोण को अंगीकृत किया जा सकता है।
      • राष्ट्रीय जल नीति 2012 में रेखांकित एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के सिद्धांतों को अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किये जाने की आवश्यकता है।
    • नियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: भूजल विधि और प्रवर्तन प्रणाली को संवर्द्धित किया जा सकता है।
      • जल प्रबंधन हेतु एक समान राष्ट्रीय विधिक ढाँचा स्थापित करने हेतु प्रस्तावित राष्ट्रीय जल रूपरेखा विधेयक पर शीघ्रता से कार्य किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारत में भूजल की कमी को दूर करने के लिये संशोधित कृषि पद्धतियों, कुशल जल उपयोग, कृत्रिम पुनर्भरण, मांग प्रबंधन और सुदृढ़ विनियमों को संयोजित करके बहुआयामी उपागमों की आवश्यकता है। इन संवहनीय जल प्रबंधन प्रथाओं को कार्यान्वित करके, भारत अपनी बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था के लिये जल सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य कर सकता है, साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिये इस महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित कर सकता है।

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