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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल के दशकों में शासन में नागरिक समाज की भूमिका काफी विकसित हुई है। लोकतांत्रिक प्रणालियों में नीति निर्माण और कार्यान्वयन पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    08 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शासन में नागरिक समाज की उभरती भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये
    • लोकतांत्रिक प्रणालियों में नीति निर्माण और कार्यान्वयन में नागरिक समाज की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
    • इससे संबंधित चुनौतियों और विचारों पर प्रकाश डालिये
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये

    परिचय:

    हाल के दशकों में शासन में नागरिक समाज की भूमिका काफी विकसित हुई है। स्वतंत्रता के बाद के दौर में राष्ट्र निर्माण और अधिकार-आधारित वकालत पर ध्यान केंद्रित करने वाले नागरिक समाज संगठन 1990 और 2000 के दशक में सेवा वितरण अंतराल को भरने और उत्तरदायित्व प्रोत्साहन की दिशा में प्रवृत्त हुए।

    • हाल ही में, उनकी भूमिका का विस्तार डिजिटल सहभागिता, सहयोगात्मक शासन और डेटा-संचालित वकालत को सम्मिलित करने के लिये किया गया है, जो लोकतांत्रिक भागीदारी और तकनीकी प्रगति के परिवर्तित होते परिदृश्य को प्रदर्शित करता है।

    मुख्य भाग:

    लोकतांत्रिक प्रणालियों में नीति निर्माण और कार्यान्वयन में नागरिक समाज की भूमिका

    • नीति निर्माण में जनता की भागीदारी में वृद्धि: नागरिक समाज संगठनों (CSO) ने नीति निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि की है, जिससे जनता और सरकार के बीच के अंतराल को कम करने में सहायता मिली है।
      • भारत में, मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) जैसे नागरिक समाज समूहों के नेतृत्व में सूचना का अधिकार (RTI) आंदोलन के परिणामस्वरूप वर्ष 2005 में RTI अधिनियम पारित हुआ।
    • वकालत और एजेंडा-निर्धारण: नागरिक समाज संगठन महत्त्वपूर्ण मुद्दों को सार्वजनिक चर्चा और राजनीतिक एजेंडा में अग्रेषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
      • मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने बड़े बांध परियोजनाओं के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
    • नीति अनुसंधान और विशेषज्ञता: नागरिक समाज प्रायः नीतिगत निर्णयन हेतु मूल्यवान अनुसंधान और विशेषज्ञ ज्ञान प्रदान करता है।
      • नई दिल्ली स्थित नीति अनुसंधान केंद्र (CPR) नियमित रूप से नीति दस्तावेज़ और सिफारिशें तैयार करता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में विधायी बहसों और नीति निर्माताओं को जानकारी प्रदान करते हैं।
    • निगरानी कार्य: नागरिक समाज संगठन निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं, सरकारी कार्यों की निगरानी करते हैं तथा सार्वजनिक अधिकारियों को उत्तरदायी बनाते हैं।
      • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) भारत में चुनावी प्रक्रियाओं के लिये एक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करता है (उदाहरण के लिये, हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य का चुनावी बांड पर मामला)।
    • सेवा वितरण: कई मामलों में, नागरिक समाज संगठन सेवा वितरण में सरकारी प्रयासों की पूर्ति करते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ राज्य की पहुँच सीमित है।
      • भारत में अक्षय पात्र फाउंडेशन सरकार के साथ साझेदारी में मध्याह्न भोजन योजना को कार्यान्वित करने के लिये कार्य करता है तथा लाखों स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराता है।
    • हाशिये पर स्थित समूहों का प्रतिनिधित्व: नागरिक समाज प्रायः नीति प्रक्रिया में हाशिये पर स्थित या निम्न प्रतिनिधित्व वाले समुदायों के हितों की वकालत करता है और उनका प्रतिनिधित्व करता है।
      • दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान (NCDHR) दलित अधिकारों की वकालत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • नीति कार्यान्वयन और प्रतिपुष्टि: नागरिक समाज संगठन प्रायः नीति कार्यान्वयन में भाग लेते हैं और नीतियों की प्रभावशीलता पर मूल्यवान प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं।
      • शिक्षा पर केंद्रित एक गैर सरकारी संगठन प्रथम, वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) तैयार करता है, जो ग्रामीण भारत में शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने और उसे सुधारने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया है।
    • जनमत संग्रह: नागरिक समाज संगठन महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जनमत संग्रह कर सकते हैं तथा जमीनी स्तर पर आंदोलनों के माध्यम से नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
      • भारत में अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को व्यापक जन समर्थन प्राप्त हुआ, जिसके परिणामस्वरूप लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 पारित हुआ।
    • सहयोगात्मक शासन: सहयोगात्मक शासन की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है, जहाँ नागरिक समाज संगठन नीतियों के सह-निर्माण और कार्यान्वयन के लिये सरकारी निकायों के साथ साझेदारी में कार्य करते हैं।
      • स्वच्छता ही सेवा अभियान के तहत देश भर में स्वच्छता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सरकार और सुलभ इंटरनेशनल जैसे नागरिक समाज संगठनों के बीच व्यापक सहयोग देखा गया।

    चुनौतियाँ और विचार:

    • यद्यपि नागरिक समाज ने लोकतांत्रिक शासन को काफी हद तक विस्तारित किया है, तथापि कुछ नागरिक समाज संगठनों की प्रतिनिधित्व क्षमता और उत्तरदायित्व को लेकर चिंताएँ हैं।
    • कुछ संदर्भों में, NGO के विदेशी निधियन और घरेलू नीतियों पर उनके संभावित प्रभाव के विषय में चिंताएँ हैं। (वर्ष 2020 में, विदेशी निधियन नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए, सरकार द्वारा अपने बैंक खातों को फ्रीज किये जाने के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने परिचालन बंद कर दिया था)
    • डिजिटल विभाजन (केवल 24% ग्रामीण भारतीय परिवारों के पास इंटरनेट तक पहुँच है) नागरिक सहभागिता के नए रूपों में समाज के कुछ वर्गों की भागीदारी को सीमित कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    शासन में नागरिक समाज की भूमिका के विकास ने निस्संदेह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को और गहन किया है, जिससे नीति निर्माण और कार्यान्वयन अधिक सहभागी, पारदर्शी और जनता की ज़रूरतों के प्रति उत्तरदायी बन गया है। जैसे-जैसे लोकतंत्र विकसित होगा, सरकार तथा नागरिक समाज के बीच सही संतुलन स्थापित करना और उत्पादक भागीदारी को प्रोत्साहित करना प्रभावी एवं समावेशी शासन के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

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