'सामाजिक उद्यमिता' की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। यह भारत में सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने में कैसे योगदान दे सकती है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक उद्यमिता को परिभाषित करते हुए परिचय लिखिये।
- सामाजिक उद्यमिता के प्रमुख पक्ष बताइए।
- भारत में सामाजिक चुनौतियों से निपटने में इसके योगदान पर प्रकाश डालिये।
- इससे संबंधित चुनौतियों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
सामाजिक उद्यमिता एक ऐसा दृष्टिकोण है जो सामाजिक उद्देश्यों के साथ व्यावसायिक सिद्धांतों को संबद्ध करता है ताकि सामाजिक मुद्दों के लिये अभिनव समाधान निर्मित किये जा सकें। इसका उद्देश्य वित्तीय व्यवहार्यता बनाए रखते हुए स्थायी सामाजिक प्रभाव प्राप्त करना है।
मुख्य भाग:
सामाजिक उद्यमिता के प्रमुख पक्ष:
- मिशन-संचालित दृष्टिकोण: सामाजिक उद्यमी लाभ अर्जित करने से अधिक सामाजिक मूल्य निर्मित करने को प्राथमिकता देते हैं। उनका प्राथमिक लक्ष्य सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना और व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाना है।
- डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी द्वारा स्थापित अरविंद आई केयर सिस्टम का उद्देश्य अनावश्यक अंधेपन को समाप्त करना है।
- नवप्रवर्तन: सामाजिक उद्यमी प्रायः दीर्घकालिक समस्याओं से निपटने के लिये नवीन दृष्टिकोण विकसित करते हैं एवं प्रौद्योगिकी, नए व्यापार मॉडल या रचनात्मक साझेदारी का लाभ उठाते हैं।
- बंकर रॉय द्वारा स्थापित बेयरफुट कॉलेज़, ग्रामीण महिलाओं को सौर अभियंता बनने के लिये प्रशिक्षण देता है।
- यह नवोन्मेषी दृष्टिकोण दूरदराज़ के गाँवों में ऊर्जा निर्धनता और महिला सशक्तीकरण दोनों को संबोधित करता है।
- मापनीयता और संवहनीयता: सफल सामाजिक उद्यमों का लक्ष्य प्रायः अर्जित आय कार्यनीतियों के माध्यम से वित्तीय संवहनीयता सुनिश्चित करते हुए अपने प्रभाव को बढ़ाना होता है।
- सहकारी डेयरी उद्यम अमूल ने पूरे भारत में अपने मॉडल का विस्तार किया है तथा एक सफल ब्रांड का निर्माण करते हुए लाखों छोटे डेयरी किसानों को सशक्त बनाया है।
- हितधारक सहभागिता: सामाजिक उद्यमी समाधानों की अभिकल्पना और कार्यान्वयन में अपने लाभार्थियों और अन्य हितधारकों को सक्रिय रूप से सम्मिलित करते हैं।
- SEWA (स्व-रोज़गार महिला एसोसिएशन) अपने सदस्यों-निर्धन, स्व-रोज़गार महिलाओं- को निर्णयन की प्रक्रियाओं में सम्मिलित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि हस्तक्षेप उनकी वास्तविक ज़रूरतों को पूर्ण करे।
भारत में सामाजिक चुनौतियों से निपटने में योगदान:
सामाजिक उद्यमिता भारत में विभिन्न सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है:
- निर्धनता उन्मूलन: आर्थिक अवसर उत्पन्न करके और वंचित समुदायों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करके।
- रंग दे, अ पीर-टू-पीर लेंडिंग प्लेटफार्म, ग्रामीण उद्यमियों को कम लागत पर सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है, जिससे उन्हें लघु व्यवसाय शुरू करने या विस्तार करने और निर्धनता से बाहर निकलने में सहायता मिलती है।
- शिक्षा: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अभिगम्यता में सुधार, विशेष रूप से हाशिये पर अवस्थित समूहों के लिये।
- एक गैर सरकारी संगठन (NGO) से सामाजिक उद्यम बने प्रथम ने भारत भर के सरकारी स्कूलों में अधिगम के परिणामों को बेहतर बनाने के लिये नवीन, कम लागत वाली शिक्षण पद्धतियाँ विकसित की हैं।
- महिला सशक्तीकरण: महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण के लिये अवसर सृजित करना।
- महिलाओं की सहकारी संस्था लिज्जत पापड़ ने पापड़ उत्पादन और वितरण में रोज़गार के अवसर प्रदान करके हज़ारों महिलाओं को सशक्त बनाया है।
- वित्तीय समावेशन: बैंकिंग सेवाओं से वंचित और अल्प बैंकिंग सुविधा वाले लोगों तक वित्तीय सेवाओं का विस्तार करना।
- ईको इंडिया फाइनेंशियल सर्विसेज शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिये छोटे दुकानदारों के नेटवर्क का उपयोग करती है, जिससे वंचित समुदायों को वित्तीय रूप से समावेशित किया जा सके।
- कृषि एवं ग्रामीण विकास: कृषि उत्पादकता एवं ग्रामीण आजीविका में सुधार।
- डिजिटल ग्रीन छोटे और सीमांत किसानों के बीच कृषि संबंधी सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रसार करने के लिये वीडियो-आधारित उपागम का उपयोग करता है, जिससे फसल की पैदावार और आय में सुधार होता है।
- कौशल विकास एवं रोज़गार: कौशल अंतर को कम करना तथा रोज़गार के अवसर सृजित करना।
- लेबरनेट अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को कौशल प्रशिक्षण और नौकरी की सेवाएँ प्रदान करता है, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता और आय क्षमता में सुधार होता है।
- आपदा प्रबंधन एवं समुत्थानशीलता: आपदा तत्परता एवं प्रतिक्रिया के लिये नवीन समाधान विकसित करना।
- गूंज की "क्लॉथ फॉर वर्क" पहल सामुदायिक विकास कार्यों के लिये दान की गई सामग्रियों के विनिमय के माध्यम से आपदा प्रभावित समुदायों को सम्मानजनक पुनर्वास प्रदान करती है।
यद्यपि सामाजिक उद्यमिता में अपार संभावनाएँ हैं, फिर भी भारत में इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:
- सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: वित्तपोषण, मार्गदर्शन और विनियामक सहायता तक सीमित अभिगम्यता।
- सामाजिक प्रभाव और वित्तीय स्थिरता में संतुलन: सामाजिक मिशन और वित्तीय व्यवहार्यता पर दोहरा ध्यान बनाए रखना।
- प्रभाव संवर्द्धन: गुणवत्ता और प्रभाव को संधारित करते हुए विकास की बाधाओं पर नियंत्रण।
- प्रभाव का मापन और संप्रेषण: सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन और प्रदर्शन करने के लिये सुदृढ़ मीट्रिक का विकास
निष्कर्ष:
भारत की सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने में सामाजिक उद्यमिता की पूरी क्षमता को प्रकट करने के लिये, प्रमुख कदमों में सहायक नीतियाँ स्थापित करना, पूंजी तक अभिगम्यता सुनिश्चित करना तथा प्रशिक्षण और परामर्श के माध्यम से क्षमता निर्माण करना सम्मिलित है। सामाजिक उद्यमों, सरकार, निगमों और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग आवश्यक है, साथ ही अनुसंधान एवं ज्ञान साझाकरण को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है। एक सक्षम वातावरण के साथ, सामाजिक उद्यमिता भारत में समावेशी विकास और सतत् विकास को अग्रेषित कर सकती है।