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प्रश्न :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व का आकलन कीजिये। इसकी मुख्य विशेषताएँ और परिणाम क्या थे? (250 शब्द)
07 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व का उल्लेख करते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणामों पर प्रकाश डालिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण परिघटना थी। वर्ष 1930 में शुरू किये गए इस अहिंसक प्रतिरोध अभियान का उद्देश्य अन्यायपूर्ण कानूनों की शांतिपूर्ण अवहेलना के माध्यम से ब्रिटिश शासन को चुनौती देना था।
मुख्य भाग:
सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्त्व:
- राष्ट्रीय राजनीतिक संस्कृति का निर्माण: इस आंदोलन ने सविनय अवज्ञा की संस्कृति को संवर्द्धित किया, अहिंसक प्रतिरोध को संस्थागत रूप प्रदान किया और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के लिये वैचारिक आधार निर्मित किया।
- भविष्य के आंदोलनों के लिये मंच का निर्माण: इस आंदोलन ने भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आगामी अभियानों के लिये आधारशिला रखी।
- इसने ब्रिटिश सत्ता को बड़े पैमाने पर चुनौती देने के लिये भारत के दृढ़ संकल्प और इच्छा को प्रदर्शित किया।
- अंतर्राष्ट्रीय संकेंद्र: इसने भारत की स्वतंत्रता के लिये विश्व का ध्यान आकर्षित किया तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी इसका महत्त्वपूर्ण कवरेज किया गया, जिससे ब्रिटिश सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी तथा औपनिवेशिक अन्याय प्रकट हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की मुख्य विशेषताएँ:
- जन भागीदारी: इस आंदोलन ने भारतीय समाज के व्यापक वर्ग को सम्मिलित करके पहले के अभियानों से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित किया। इसने महिलाओं, छात्रों और ग्रामीण आबादी सहित विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक संयुक्त मंच प्रदान किया।
- दांडी मार्च, जिसने इस आंदोलन की शुरुआत की, में हज़ारों लोगों ने नमक कानून तोड़ने के लिये गांधीजी के साथ 240 मील की पदयात्रा की।
- अहिंसा: गांधीजी का अहिंसक प्रतिरोध का सिद्धांत इस आंदोलन की आधारशिला थी।
- धरसना सत्याग्रह के दौरान क्रूर पुलिस दमन का सामना करने के बावजूद, जहाँ नमक डिपो पर छापा मारने का प्रयास करते समय प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज की गई थी, सत्याग्रही सामान्य तौर पर अहिंसक बने रहे।
- अन्यायपूर्ण कानूनों का उल्लंघन: इस आंदोलन ने अन्यायपूर्ण माने जाने वाले विशिष्ट कानूनों का जानबूझकर और खुले तौर पर उल्लंघन करने के लिये प्रोत्साहित किया।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रांतों में वन कानूनों की अवहेलना की गई।
- उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खान ने औपनिवेशिक कानूनों के विरुद्ध अहिंसक खुदाई खिदमतगारों का नेतृत्व किया।
- खादी और स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहन: इस आंदोलन ने स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं के उपयोग के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता पर बल दिया।
- भारतीय घरों में चरखा चलाना एक सामान्य बात हो गई है तथा कई प्रमुख नेताओं सहित कई लोगों ने स्वदेशी आंदोलन को समर्थन देने के लिये इसे दैनिक कार्यकलाप के रूप में अपना लिया।
- कॉन्ग्रेस की प्रकृति में परिवर्तन: कॉन्ग्रेस का अधिक उग्रवाद की ओर झुकाव, पूर्ण स्वराज प्रस्ताव और कराची प्रस्ताव जैसे सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि में स्पष्ट है, जिसमें मूल अधिकार, समाजवादी आर्थिक नीतियाँ और ज़मींदारी उन्मूलन जैसे विचार प्रस्तुत किये गए।
- वर्ष 1934 में, कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना भी हुई, जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव और राम मनोहर लोहिया जैसे फैबियन समाजवादियों ने किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम:
- गांधी-इरविन समझौता: इस आंदोलन के कारण गांधीजी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच बातचीत हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1931 में एक समझौता हुआ।
- समझौते के एक भाग के रूप में, सरकार राजनीतिक कैदियों को रिहा करने तथा तटीय गाँवों में घरेलू उपयोग के लिये नमक उत्पादन की अनुमति देने पर सहमत हुई।
- अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: इस आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
- अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर के धरासन सत्याग्रह के प्रत्यक्षदर्शी विवरण विश्वभर के 1,350 समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए, जिससे ब्रिटिश सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बना।
- राष्ट्रवादी आंदोलन का सुदृढ़ीकरण: इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम के आधार को व्यापक बनाया और भविष्य के अभियानों के लिये आधारशिला निर्मित की।
- बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी ने स्वतंत्रता आंदोलन के बाद के चरणों में उनकी बढ़ती भागीदारी के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत किया।
- सरोजिनी नायडू जैसी महिलाएँ प्रमुख नेता के रूप में उभरीं।
- सुधारों में आंशिक सफलता: यद्यपि तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हुई, परंतु आंदोलन ने क्रमिक संवैधानिक सुधारों में योगदान दिया।
- इस आंदोलन ने गोलमेज सम्मेलनों में विचार-विमर्श को प्रभावित किया और अंततः भारत सरकार अधिनियम 1935 के निर्माण में योगदान दिया, जिसने प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत की।
निष्कर्ष:
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सविनय अवज्ञा आंदोलन का व्यापक महत्त्व था। इसने राष्ट्रवादी आंदोलन के परिप्रेक्ष्य और सीमा को विस्तारित किया, कई मोर्चों पर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी और भविष्य के संघर्षों के लिये आधार निर्मित किया, जो अंततः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता का कारण बने।
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