"पारंपरिक ज्ञान का व्यावसायीकरण बौद्धिक संपदा अधिकारों और सांस्कृतिक संरक्षण के विषय में प्रश्न खड़े करता है।" वैज्ञानिक प्रगति को प्रोत्साहित करते हुए स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों की सुरक्षा में नीतिपरक विचारों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- पारंपरिक ज्ञान के व्यावसायीकरण से उत्पन्न जटिल नीतिपरक दुविधा का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की भूमिका लिखिये
- भारत में स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों की सुरक्षा में प्रमुख नीतिपरक विचार प्रस्तुत कीजिये
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये
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भूमिका:
पारंपरिक ज्ञान का व्यावसायीकरण, जो प्रायः स्वदेशी समुदायों के भीतर पीढ़ियों से चला आ रहा है, एक जटिल नीतिपरक दुविधा प्रस्तुत करता है। जबकि यह आर्थिक संवृद्धि और वैज्ञानिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है, यह बौद्धिक संपदा अधिकारों और सांस्कृतिक संरक्षण के विषय में चिंताएँ भी उत्पन्न करता है।
मुख्य भाग:
भारत में स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण में नीतिपरक विचार:
- जैवपूर्वेक्षण और जैवस्वापहरण संबंधी चिंताएँ: यदि स्वदेशी ज्ञान और संसाधनों का बिना सहमति के दोहन किया जाता है, तो जैवपूर्वेक्षण जैवस्वापहरण में परिवर्तित हो सकता है।
- वर्ष 1997 में, राइसटेक इंक को अमेरिका में बासमती चावल की किस्मों पर पेटेंट प्रदान किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत को अपनी पारंपरिक चावल किस्मों की रक्षा के लिये कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी।
- पारंपरिक ज्ञान और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में स्वदेशी ज्ञान का उपयोग नीतिपरक रूप से किया जाना चाहिये, स्थानीय समुदायों के साथ उचित मान्यता और लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करना चाहिये।
- मेघालय में खासी समुदाय सदियों से जीवित जड़ सेतुओं का निर्माण करता रहा है।
- इन संरचनाओं का अब संवहनीय आधारिक संरचना के विकास के लिये अध्ययन किया जा रहा है, विशेष रूप से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में, जिससे समुदाय को श्रेय दिये जाने के विषय में चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन और लाभ-साझाकरण: स्वदेशी ज्ञान से संबंधित आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग करने के लिये उचित मुआवज़े और लाभ-साझाकरण की आवश्यकता होती है।
- नीम के वृक्ष के मामले में, नीम आधारित उत्पादों पर कई पेटेंट दायर किये गए, जिसके कारण कई विधिक मामले दायर किये गए और अंततः यूरोपीय पेटेंट कार्यालय ने अमेरिकी पेटेंट को निरस्त कर दिया, जिससे भारतीय किसानों के पारंपरिक ज्ञान की पुष्टि हुई।
- डिजिटल दस्तावेज़ीकरण और ज्ञान डेटाबेस: डिजिटल भंडार पारंपरिक ज्ञान की रक्षा करने में सहायता करते हैं, परंतु अभिगम्यता और नियंत्रण के संबंध में चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
- भारत की पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) में पारंपरिक चिकित्सा पर प्रचुर ज्ञान मौजूद है।
- यद्यपि इससे ज्ञान के दुरुपयोग को रोका गया है, फिर भी प्रश्न यह है कि अभिगम्यता को कौन नियंत्रित करता है और डेटाबेस को किस प्रकार नियंत्रित किया जाना चाहिये।
- अंतर-पीढ़ीगत ज्ञान हस्तांतरण बनाम औपचारिक शिक्षा: औपचारिक शिक्षा प्रणालियाँ प्रायः पारंपरिक ज्ञान के हस्तांतरण को नष्ट कर देती हैं, जिससे पीढ़ियों के बीच अंतराल उत्पन्न होता है।
- नीलगिरी के टोडा समुदाय में, आधुनिक शिक्षा और शहरीकरण के कारण पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान के साथ युवाओं की भागीदारी में कमी आई है, जिससे सांस्कृतिक प्रथाओं की निरंतरता को खतरा उत्पन्न हो गया है।
- औषधीय पादपों का संरक्षण और संवहनीय उपयोग: पारंपरिक औषधियों के व्यावसायीकरण से मूल्यवान पादपों के संसाधनों का अतिदोहन हो सकता है।
- कैंसर के उपचार में उपयोग किये जाने वाले हिमालयी यू के अत्यधिक दोहन के कारण संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा मिला, जो अब स्थानीय समुदायों के सहयोग से संवहनीय दोहन और खेती पर केंद्रित हैं।
- व्यावसायीकरण में ऐतिहासिक गलत प्रस्तुति: पारंपरिक सांस्कृतिक तत्वों का व्यावसायीकरण करने से गलत प्रस्तुति हो सकती है और ऐतिहासिक महत्त्व की हानि हो सकती है।
- भारतीय ब्रांडिंग में हिटलर की छवि का दुरुपयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि जब ऐतिहासिक तत्वों को महत्त्वहीन या गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, तो व्यावसायीकरण में दुरुपयोग किस प्रकार नुकसान पहुँचा सकता है।
निष्कर्ष:
स्वदेशी ज्ञान का व्यवसायीकरण नीतिपरक हो सकता है यदि यह सांस्कृतिक अधिकारों का सम्मान करता है, साझेदारी को संवर्द्धित करता है और उचित लाभ सुनिश्चित करता है। सरकारों, निगमों और शोधकर्ताओं को एक विधिक ढाँचा निर्मित करने, स्वदेशी समुदायों को शामिल करने और सांस्कृतिक संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये। यह उपागम आर्थिक विकास को सांस्कृतिक संरक्षण के साथ संतुलित कर सकता है।