"नीतिपरक नेतृत्व के लिये प्रायः कठोर निर्णयन की आवश्यकता होती है जो अल्पावधि में अलोकप्रिय हो सकते हैं लेकिन दीर्घावधि में लाभकारी होते हैं।" प्रासंगिक उदाहरणों के साथ इस कथन पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- दिये गए कथन को उचित ठहराते हुए नीतिपरक नेतृत्व के महत्त्व का उल्लेख करते हुए अपने उत्तर की भूमिका लिखिये
- अल्पकालिक चुनौतियों को दीर्घकालिक सामाजिक लाभ के साथ संतुलित करने से संबंधित प्रमुख तर्क प्रस्तुत कीजिये
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये
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भूमिका:
नीतिपरक नेतृत्व सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सुशासन और ज़िम्मेदार प्रबंधन की आधारशिला है। इसमें नैतिक सिद्धांतों, निष्पक्षता और व्यापक कल्याण के आधार पर निर्णयन शामिल है, भले ही ये विकल्प तुरंत लोकप्रिय या लाभप्रद न हों।
मुख्य भाग:
नीतिपरक नेतृत्व: अल्पकालिक चुनौतियों का दीर्घकालिक सामाजिक लाभ के साथ संतुलन:
- अल्पकालिक लाभों की अपेक्षा दीर्घकालिक लाभों को प्राथमिकता: नीतिपरक नेता अल्पकालिक व्यवधानों के बावजूद दीर्घकालिक विकास पर केंद्रित निर्णय लेते हैं।
- डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में वर्ष 1991 का आर्थिक उदारीकरण शुरू में अलोकप्रिय था, परंतु इसने भारत को वैश्विक बाज़ारों के लिये खोल दिया, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास संवर्द्धित हुआ।
- समानता और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन नैतिक नेतृत्व निष्पक्षता और समानता को अग्रेषित करने के लिये सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देता है।
- वर्ष 2019 में तीन तलाक के उन्मूलन को रूढ़िवादी समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा, परंतु इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हुई तथा लैंगिक न्याय और संवैधानिक समानता को प्रोत्साहन मिला।
- भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरणीय उत्तरदायित्व: नीतिपरक निर्णय अल्पावधि में उद्योगों के लिये असुविधा उत्पन्न कर सकते हैं, परंतु पर्यावरणीय संवहनीयता सुनिश्चित कर सकते हैं।
- वर्ष 2022 में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध को उद्योग जगत द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा, परंतु यह प्रदूषण को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता: नेता राजनीतिक रूप से जोखिम भरे निर्णय ले सकते हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता सुनिश्चित करते हैं।
- वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा सिक्किम के एकीकरण को अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ा, परंतु इससे भारत के सामरिक हितों की सुरक्षा हुई और क्षेत्र के विकास में योगदान मिला।
- दीर्घकालिक दक्षता के लिये स्थापित प्रणालियों में सुधार: नैतिक निर्णयों के लिये प्रायः अधिक निष्पक्षता और दक्षता के लिये दीर्घकालिक प्रणालियों में सुधार की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 2016 की दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) ने, चूककर्त्ताओं और बैंकों के प्रारंभिक प्रतिरोध के बावजूद, ऋण अनुशासन तथा संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के त्वरित समाधान को प्रोत्साहित किया है।
- उद्योग जगत के विरोध के विरुद्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य का रक्षण: नीतिपरक नेतृत्व में ऐसे निर्णय शामिल होते हैं जो सार्वजनिक कल्याण की रक्षा करते हैं, भले ही उन्हें शक्तिशाली लॉबी के विरोध का सामना करना पड़े।
- तंबाकू उद्योग के कड़े प्रतिरोध के बावजूद, तंबाकू उत्पादों पर चित्रात्मक चेतावनियों के कार्यान्वयन का उद्देश्य धूम्रपान से संबंधित बीमारियों को कम करना और भावी पीढ़ियों की रक्षा करना है।
निष्कर्ष:
भारत में सतत् संवृद्धि और विकास के लिये नैतिक नेतृत्व महत्त्वपूर्ण है जो अल्पकालिक लोकप्रियता की तुलना में दीर्घकालिक लाभों को प्राथमिकता देता है। यद्यपि ऐसे निर्णयों को शुरुआती प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, परंतु वे प्रायः पूरे समाज के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम प्रस्तुत करते हैं।