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प्रश्न :
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिये व्यापक विधायी उपायों के बावजूद, भारत में इन समुदायों के विरुद्ध अत्याचार जारी हैं। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
24 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिये विधायी उपायों का उल्लेख कीजिये
- समुदायों के विरुद्ध अत्याचार जारी रहने के कारणों पर प्रकाश डालिये
- इस समस्या के समाधान के लिये उपाय बताइए
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये
परिचय:
भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिये समानता, न्याय और सम्मान सुनिश्चित करता है, जिसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिये विशिष्ट प्रावधान हैं, जैसे उनकी उन्नति के लिये अनुच्छेद 15(4) , रोज़गार में आरक्षण के लिये अनुच्छेद 16(4) और अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये अनुच्छेद 17 शामिल हैं।
- इन सुरक्षा उपायों के बावजूद, इन समुदायों के विरुद्ध अत्याचार जारी हैं, जो समाज के गहन व्याप्त भेदभाव और विधि प्रवर्तन में चुनौतियों को प्रदर्शित करता हैं।
मुख्य भाग:
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिये विधायी उपाय:
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955: अस्पृश्यता के उन्मूलन को कार्यान्वित करने और इससे उत्पन्न अपराधों को दंडित करने के लिये अधिनियमित किया गया।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: इसका उद्देश्य अत्याचारों को रोकना, पीड़ितों को राहत प्रदान करना और पुनर्वास करना है।
- वर्ष 2022 में उस अधिनियम के तहत अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचार के 52,866 मामले और अनुसूचित जनजातियों (ST) के 9,725 मामले दर्ज किये जाएँगे।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 : अपराधों के दायरे का विस्तार किया गया और त्वरित सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006: वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है।
- ओडिशा 4.56 लाख व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) अधिकारों के वितरण के साथ FRA के कार्यान्वयन में अग्रणी राज्यों में से एक है।
समुदायों के विरुद्ध अत्याचार के सातत्य का कारण
- समाज के बद्धमूल सामाजिक पूर्वाग्रह: सदियों पुराना जाति-आधारित भेदभाव सामाजिक अंतःक्रियाओं को प्रभावित करता रहता है।
- उत्तर प्रदेश में वर्ष 2020 के हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जातिगत पूर्वाग्रह किस प्रकार आपराधिक जाँच और न्याय वितरण को भी प्रभावित कर सकते हैं।
- आर्थिक असमानताएँ: सातत्य निर्धनता और आर्थिक अवसरों की कमी के कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI) के अनुमान के अनुसार, भारत में बहुआयामी रूप से निर्धन हर छह में से पाँच लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) परिवारों से हैं।
- ST में बहुआयामी रूप से 50% से अधिक निर्धन, उसके बाद SC में 33.3% लोग निर्धन हैं।
- वैश्विक बहुआयामी निर्धनता सूचकांक (MPI) के अनुमान के अनुसार, भारत में बहुआयामी रूप से निर्धन हर छह में से पाँच लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) परिवारों से हैं।
- शिक्षा तक सीमित अभिगम्यता: आरक्षण के बावजूद, शैक्षिक उपलब्धि कम बनी हुई है, जिससे वंचितता का चक्र जारी है।
- उच्च शिक्षा में अनुसूचित जनजातियों के लिये सकल नामांकन अनुपात 2021-22 में केवल 21.2% था।
- विधि का अप्रभावी कार्यान्वयन : विधि प्रवर्तन एजेंसियों में जागरूकता, संसाधनों और कभी-कभी इच्छा की कमी सुरक्षात्मक विधि की प्रभावशीलता में बाधा डालती है।
- वर्ष 2018 में भीमा कोरेगाँव हिंसा में अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई में विलंब हुआ, जिससे कार्यान्वयन संबंधी दोष प्रकट हुए।
समस्या के समाधान के उपाय:
- शिक्षा और जागरूकता का सुदृढ़ीकरण: एकलव्य मॉडल स्कूलों जैसे संवैधानिक मूल्यों और भेदभाव-विरोधी पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक शिक्षा कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया जा सकता है।
- आर्थिक सशक्तीकरण: कौशल विकास कार्यक्रमों को संवर्द्धित तथा ऋण एवं उद्यमिता के अवसरों तक बेहतर अभिगम्यता प्रदान किया जा सकता है।
- स्टैंड -अप इंडिया योजना को और अधिक विस्तारित एवं सुदृढ़ किया जा सकता है।
- बेहतर विधि प्रवर्तन : पुलिस बलों को संवेदनशील बनया जा सकता है तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सुरक्षा के लिये समर्पित विशेष इकाईयाँ स्थापित की जा सकती है।
- आधार स्तर पर शासन का सुदृढ़ीकरण: अत्याचारों को रोकने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिये ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाया जा सकता है।
- केरल के कुदुम्बश्री मिशन ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को स्थानीय शासन संरचनाओं में सफलतापूर्वक एकीकृत किया है।
- प्रौद्योगिकी का उद्यामन: अत्याचार के मामलों की त्वरित रिपोर्टिंग, पदांकन और समाधान के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा सकता है।
- अत्याचार ट्रैकिंग और निगरानी प्रणाली (ATM) ने मामले की निगरानी और पीड़ित मुआवज़ा वितरण में सुधार किया है और इसे AI और ML का उपयोग करके और भी संवर्द्धित किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
जबकि भारत ने अनुसूचित जाति और संसूचित जनजाति समुदायों के लिये विधायी सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, अत्याचारों का सातत्य एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इस दृष्टिकोण में सख्त विधि प्रवर्तन, सामाजिक जागरूकता और आर्थिक सशक्तीकरण को सम्मिलित किया जाना चाहिये।
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