भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध आदर्शों के प्रचार में मौर्य कला और स्थापत्य की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म के साथ उसके संबंध का संदर्भ देते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये
- बौद्ध आदर्शों के प्रचार में मौर्य कला और स्थापत्य की भूमिका बताइए।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये
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परिचय :
मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) ने भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मौर्य कला और स्थापत्य, विशेष रूप से सम्राट अशोक के अधीन, बौद्ध आदर्शों और दर्शन के प्रचार के लिये शक्तिशाली उपकरण बन गए।
मुख्य भाग:
बौद्ध आदर्शों के प्रचार में मौर्य कला और स्थापत्य की भूमिका:
- स्तंभ और शासनादेश: राज्य सत्ता के प्रतीक और बौद्ध शिक्षाओं के वाहक के रूप में कार्य करते थे।
- अशोक के स्तंभों में सबसे प्रसिद्ध स्तंभ सारनाथ में स्थित है, जो बुद्ध के प्रथम उपदेश का स्थल है, जहाँ उन्होंने चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया था।
- शिलालेख और स्तंभलेख: बौद्ध सिद्धांतों और अशोक के धम्म को व्यक्त करते हैं।
- गुजरात में गिरनार शिलालेख, जो अहिंसा और सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करता है।
- स्तूप और धार्मिक स्थापत्य: स्तूप बौद्ध उपासना के अवशेष और केंद्र के रूप में कार्य करते थे।
- सांची का महान स्तूप, जिसे मूल रूप से अशोक ने बनवाया था, भविष्य में बौद्ध स्थापत्य कला के विकास के लिये एक आदर्श बन गया।
- गुहा स्थापत्य: बौद्ध भिक्षुओं और उपासना केंद्रों के लिये शैलकर्तित गुहाओं का निर्माण करवाया गया था।
- बिहार में बराबर की गुफाएँ बौद्ध धर्म के आजीविक संप्रदाय के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- प्रतीकात्मक कल्पना: बौद्ध अवधारणाओं को प्रदर्शित करने के लिये धर्म चक्र, बोधि वृक्ष और कमल जैसे प्रतीकों का उपयोग।
- कथात्मक उभार: बौद्ध कथाओं और जातक कथाओं का चित्रण
- जातक कथाओं में में प्रायः छद्दंत जातक, विदुरपंडित जातक, रुरु जातक की कथाएँ उत्कीर्णित हैं।
निष्कर्ष :
मौर्य कला और स्थापत्य ने भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध आदर्शों के प्रचार-प्रसार के लिये एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में कार्य किया। मौर्य बौद्ध कला में शाही भव्यता, आध्यात्मिक प्रतीकवाद तथा तकनीकी नवाचार के संश्लेषण ने उपमहाद्वीप के धार्मिक और सांस्कृतिक संविन्यास पर एक स्थायी प्रभाव डाला।