आर्थिक उदारीकरण ने भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति को किस हद तक प्रभावित किया है? उभरती वर्ग संरचनाओं और उपभोग प्रारूप के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (250 शब्द )
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में आर्थिक उदारीकरण पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की भूमिका लिखिये
- पारंपरिक सामाजिक स्तरीकरण पर इसका प्रभाव बताइए
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार इसने नई वर्ग संरचनाओं के उद्भव को जन्म दिया है
- बताइए कि यह परिवर्तित होते उपभोग प्रारूप को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये
|
परिचय:
भारत में वर्ष 1991 में शुरू किये गए आर्थिक उदारीकरण ने देश के सामाजिक संविन्यास, विशेषकर इसके सामाजिक स्तरीकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
- बड़े पैमाने पर नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अधिक बाज़ार-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर इस स्थानांतरण ने वर्ग संरचनाओं और उपभोग प्रारूप को नया रूप प्रदान किया है।
मुख्य भाग:
पारंपरिक सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव:
- जाति-आधारित व्यवसायों का शिथिलन: आर्थिक उदारीकरण ने पारंपरिक जाति-आधारित व्यवसायों से परे अवसर प्रदान किये हैं।
- परिवर्तित होती ग्रामीण सामाजिक गतिशीलता: नौकरियों के लिये शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन ने ग्रामीण सामाजिक संरचनाओं को परिवर्तित कर दिया है।
- वर्ष 2001 और वर्ष 2011 की जनगणना के बीच भारत का शहरीकरण 27.8% से बढ़कर 31.1% हो गया।
- उपभोक्ता-आधारित अस्मिता: ब्रांड चेतना और उपभोग प्रारूप उत्तरोत्तर सामाजिक स्थिति को परिभाषित करते हैं।
- नये मध्यम वर्ग में "विशिष्ट उपभोग" का उदय
नई वर्ग संरचनाओं का उदय:
- मध्यम वर्ग का उदय: आर्थिक उदारीकरण के कारण मध्यम वर्ग का विस्तार और विविधीकरण हुआ है, जो वर्ष 1995 और वर्ष 2021 के बीच प्रति वर्ष 6.3% की दर से बढ़ रहा है।
- वर्तमान में यह जनसंख्या का 31% है और वर्ष 2047 तक इसके 60% हो जाने की उम्मीद है।
- आईटी क्षेत्र में अप्रत्याशित वृद्धि ने समृद्ध शहरी पेशेवरों का एक नया समूह निर्मित किया।
- "नए अमीर" वर्ग का उदय: उद्यमियों और व्यापार मालिकों का एक वर्ग उभरा, जो कम विनियमन और वर्द्धित विदेशी निवेश से लाभांवित हुआ।
- वर्ष 2021 में भारत में 7.96 लाख करोड़पति थे।
- आय असमानता में वृद्धि: उदारीकरण ने नए अवसर सृजित करने के साथ-साथ अमीर और गरीब के बीच की खाई को भी चौड़ा कर दिया है।
- भारत के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 40% संपत्ति है। भारत के लिये गिनी गुणांक वर्ष 1993 में 0.32 से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 0.4197 हो गया है, जो वर्द्धित असमानता को प्रदर्शित करता है।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन: आर्थिक सुधारों से शहरी क्षेत्रों को अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचा है, जिससे ग्रामीण-शहरी विभाजन और अधिक स्पष्ट हो गया है।
- उदाहरण के लिये, डिजिटल आर्थिक विकास के संदर्भ में, NSSO के आँकड़ों के अनुसार, केवल 24% ग्रामीण भारतीय परिवारों के पास इंटरनेट तक पहुँच है, जबकि शहरों में यह 66% है।
परिवर्तित होते उपभोग प्रारूप:
- उपभोक्ता व्यय में वृद्धि: उदारीकरण के कारण विभिन्न वर्गों की प्रयोज्य आय में वृद्धि हुई है तथा उपभोक्ता व्यय में भी वृद्धि हुई है।
- भारत का निजी उपभोग व्यय आँकड़ा वर्ष 1996 से वर्ष 2024 तक औसतन 220.318 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहेगा।
- विलासिता और ब्रांडेड वस्तुओं की ओर रुझान: उभरता हुआ मध्यम और उच्च वर्ग विलासिता और ब्रांडेड उत्पादों के प्रति रूचि प्रदर्शित कर रहा है।
- भारत का लक्ज़री बाज़ार वर्ष 2030 तक अपने वर्तमान आकार से 3.5 गुना बढ़कर 85-90 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- पश्चिमी उपभोग मॉडल का अंगीकरण: वैश्विक प्रवृत्तियों के प्रति बढ़ते रुझान के कारण पश्चिमी उपभोग प्रारूप को अंगीकृत किया गया है।
- भारत के फास्ट फूड बाज़ार का आकार वर्ष 2024-2032 के दौरान 9.72% की वृद्धि दर (CAGR) प्रदर्शित करने का अनुमान है।
निष्कर्ष:
जबकि आर्थिक उदारीकरण ने उर्ध्वगामी गतिशीलता के अवसर उत्पन्न किये हैं और मध्यम वर्ग का विस्तार किया है, इसने असमानताओं को भी विस्तृत किया है और नए सामाजिक विभाजन सृजित किये हैं। यह सुनिश्चित करने के लिये कि आर्थिक विकास के लाभ अधिक समान रूप से वितरित किये जाएँ, देश के समक्ष मौजूद अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।