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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के औद्योगिक क्षेत्र में अपशिष्ट और संसाधन उपभोग को न्यून करने हेतु 3D प्रिंटिंग तकनीक का लाभ कैसे उठाया जा सकता है? (150 शब्द)

    18 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • 3D प्रिंटिंग को परिभाषित करके उत्तर की भूमिका लिखिये
    • भारत के औद्योगिक क्षेत्र में अपशिष्ट को न्यूनतम करने और संसाधन उपयोग को अनुकूलतम बनाने में 3D प्रिंटिंग की क्षमता का अन्वेषण कीजिये
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये

    परिचय :

    3D प्रिंटिंग, जिसे एडिटिव मैन्यूफैक्चरिंग के नाम से भी जाना जाता है, एक नवीन तकनीक है जो विभिन्न उद्योगों में उत्पादन प्रक्रियाओं में क्रांति लाने की क्षमता रखती है।

    • भारत के औद्योगिक क्षेत्र के संदर्भ में, जो अपशिष्ट उत्पादन और संसाधन अकुशलता से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा है, 3D प्रिंटिंग उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाते हुए पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये आशाजनक समाधान प्रदान करती है।

    मुख्य भाग:

    भारत के औद्योगिक क्षेत्र में अपशिष्ट को न्यूनतम करने और संसाधन उपयोग को अनुकूलतम बनाने में 3D प्रिंटिंग की क्षमता:

    • माँग अनुरूप विनिर्माण: 3D प्रिंटिंग माँग अनुरूप उत्पादन को सक्षम बनाती है, जिससे अति-उत्पादन और संबंधित अपशिष्ट में काफी कमी आती है।
      • यह दृष्टिकोण विशेष रूप से अस्थिर माँग वाले उद्योगों या अनुकूलित उत्पाद बनाने वाले उद्योगों के लिये लाभदायक है।
      • कभी-कभार उपयोग में आने वाले घटकों का बड़ा भंडार संधारित करने के बजाय, वे आवश्यकतानुसार विशिष्ट भागों का मुद्रण कर सकते हैं, जिससे भंडारण लागत कम होगी और अप्रचलन अपशिष्ट न्यूनतम होगा।
    • संसाधन दक्षता के लिये अनुकूलित अभिकल्पना: 3D मुद्रण से जटिल, अनुकूलित अभिकल्पना संभव हो जाता है, जो कम सामग्री का उपयोग करते हुए कार्यक्षमता को संधारित करता है।
      • इससे विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल की खपत में महत्त्वपूर्ण कमी आ सकती है।
      • भारत में एयरोस्पेस उद्योग, जिसका प्रतिनिधित्व हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) जैसी कंपनियाँ करती हैं, हल्के विमान घटकों के निर्माण के लिये 3D प्रिंटिंग का उपयोग कर सकती हैं।
      • बेंगलूरू में भारत का पहला 3D-मुद्रित डाकघर एक मॉडल के रूप में कार्य करता है।
    • विनिर्माण अपशिष्ट में कमी: विनिर्माण विधियों के परिणामस्वरूप प्रायः महत्त्वपूर्ण सामग्री अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
      • 3D मुद्रण एक योगात्मक प्रक्रिया होने के कारण, केवल अंतिम उत्पाद के लिये आवश्यक सामग्री का उपयोग करता है, जिससे अपशिष्ट में भारी कमी आती है।
      • आभूषण विनिर्माण क्षेत्र में, जो भारत में महत्त्वपूर्ण है, कंपनियाँ जटिल अभिकल्पना निर्माण के लिये 3D प्रिंटिंग का कार्यान्वयन कर सकती हैं।
      • इससे पारंपरिक ढलाई विधियों की तुलना में सोने और चांदी के अपशिष्ट को 50% तक कम किया जा सकता है, क्योंकि अतिरिक्त सामग्री को आसानी से पुनर्चक्रित और पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।
    • स्थानीयकृत उत्पादन: 3D मुद्रण विकेंद्रीकृत, स्थानीयकृत उत्पादन को सक्षम बनाता है, जिससे लंबी दूरी के परिवहन और संबंधित पैकेजिंग अपशिष्ट की आवश्यकता कम हो जाती है।
      • चिकित्सा उपकरण उद्योग में, कंपनियाँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे पैमाने पर 3D प्रिंटिंग सुविधाएँ स्थापित कर सकती हैं।
        • इससे अनुकूलित कृत्रिम अंगों या चिकित्सा प्रत्यारोपणों का स्थानीय स्तर पर उत्पादन संभव हो सकेगा, जिससे परिवहन लागत और पैकेजिंग अपशिष्ट में कमी आएगी तथा मरीज़ों के लिये अभिगम्यता में सुधार होगा।
    • पुनःस्थापन और नवीनीकरण: 3D प्रिंटिंग आसान पुनःस्थापन और नवीनीकरण की सुविधा प्रदान करके उत्पादों की निधानी आयु को बढ़ा सकती है, जिससे पूर्ण प्रतिस्थापन की आवश्यकता कम हो जाती है।
      • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, कंपनियाँ उत्पादन से बाहर के मॉडलों के लिये स्पेयर पार्ट्स बनाने हेतु 3D प्रिंटिंग का उपयोग कर सकती हैं।
    • संवहनीय सामग्री उपयोग: 3D मुद्रण प्रौद्योगिकी पुनर्नवीनीकृत और जैवनिम्नीकरणीय विकल्पों सहित सामग्रियों की एक विस्तृत शृंखला के साथ संगत है, जो विनिर्माण में एक परिपत्र अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
      • निर्माण उद्योग में, कंपनियाँ पुनर्चक्रित कंक्रीट या कृषि अपशिष्ट से प्राप्त बायोप्लास्टिक जैसी संवहनीय सामग्रियों के साथ 3D प्रिंटिंग की संभावनाएँ तलाश सकती हैं।

    निष्कर्ष:

    भारत के औद्योगिक क्षेत्र में 3D प्रिंटिंग तकनीक का एकीकरण अपशिष्ट में कमी और संसाधन दक्षता चुनौतियों का समाधान करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। यद्यपि, सफल कार्यान्वयन के लिये प्रारंभिक बाधाओं को दूर करने और विभिन्न उद्योगों में संभावित लाभों को अधिकतम करने के लिये प्रौद्योगिकी, कौशल विकास और सहायक नीतियों में भारी निवेश की आवश्यकता होगी।

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