"विकास-प्रेरित विस्थापन की अवधारणा से राष्ट्रीय प्रगति एवं सामाजिक न्याय के बीच संतुलन के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है।" विस्थापित समुदायों के लिये भारत की पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीतियों का विश्लेषण करते हुए समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक सुधारात्मक तथ्यों को बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- विकास अभिप्रेत विस्थापन की अवधारणा को परिभाषित करके उत्तर की भूमिका लिखिये।
- भारत की पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीतियों का गहन विश्लेषण कीजिये।
- वर्तमान नीति (LARR अधिनियम, 2013) की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
- कार्यान्वयन चुनौतियाँ को प्रस्तुत कीजिये।
- सुधार संबंधी सुझावों पर प्रकाश डालिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
'विकास अभिप्रेत विस्थापन' की अवधारणा का तात्पर्य बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं जैसे बाँध, खदान, औद्योगिक संयंत्र और शहरी नवीकरण पहल के कारण समुदायों के प्रणोदित स्थानांतरण से है।
यद्यपि ये परियोजनाएँ राष्ट्रीय प्रगति के लिये प्रायः महत्त्वपूर्ण होती हैं, परंतु वे सामाजिक न्याय के विषय में महत्त्वपूर्ण चिंताओं को भी प्रकट करती हैं, विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों के लिये, जो असमान रूप से प्रभावित होते हैं।
मुख्य भाग:
भारत की पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीतियाँ:
पुनर्वासन और पुनर्स्थापन (R&R) के प्रति भारत का दृष्टिकोण विगत कुछ वर्षों में काफी विकसित हुआ है:
- वर्ष 1990 के पूर्व: कोई व्यापक राष्ट्रीय नीति नहीं थी; परियोजना-विशिष्ट दृष्टिकोण थे।
- वर्ष 2004: पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन पर राष्ट्रीय नीति।
- वर्ष 2007: राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति।
- वर्ष 2013: भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम (LARR अधिनियम)।
उदाहरण: नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर परियोजना ने प्रारंभिक पुनर्वास नीतियों की अपर्याप्तता को प्रकट किया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध हुआ और अंततः नीतिगत सुधार किये गए।
वर्तमान नीति की मुख्य विशेषताएँ (LARR अधिनियम, 2013):
- व्यापक दृष्टिकोण: इसमें भूमि अर्जन को पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन के साथ जोड़ा गया है।
- सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन: सभी परियोजनाओं के लिये अनिवार्य।
- सहमति की आवश्यकता: निजी परियोजनाओं के लिये प्रभावित परिवारों से 70-80% सहमति।
- प्रतिकर: ग्रामीण क्षेत्रों में बाज़ार मूल्य का 4 गुना; शहरी क्षेत्रों में 2 गुना।
- पुनर्वासन प्रावधान: आवास, रोज़गार और अन्य सामाजिक सुरक्षा उपाय।
कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त कार्यान्वयन: नीति प्रावधानों और वास्तविकता के बीच अंतर।
- प्रतिकर में विलंब: इससे प्रायः विस्थापन की अवधि दीर्घ हो जाती है।
- सीमित आजीविका पुन:स्थापन: दीर्घकालिक आर्थिक पुनर्वास पर अपर्याप्त ध्यान।
- पारदर्शिता का अभाव: मूल्यांकन और संवितरण प्रक्रियाओं में।
उदाहरण: आंध्र प्रदेश में पोलावरम बाँध परियोजना को जनजातीय समुदायों के अपर्याप्त पुनर्वासन के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा, जिससे कार्यान्वयन में कमियाँ उत्पन्न हुईं।
सुधार संबंधी सुझाव:
- सहभागी योजना: प्रभावित समुदायों को शुरू से ही योजना प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
- कौशल विकास और आजीविका सहायता: कौशल प्रशिक्षण और नौकरी के माध्यम से दीर्घकालिक आर्थिक पुनर्वासन पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
- समयबद्ध कार्यान्वयन: प्रतिकर वितरण और पुनर्वासन के लिये सख्त समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है।
- सांस्कृतिक और सामुदायिक संरक्षण: सुनिश्चित किया जा सकता है कि पुनर्वासन योजनाओं में सांस्कृतिक और सामुदायिक संबंधों पर विचार किया जाए।
- स्वतंत्र निगरानी प्रणाली: पुनर्वासन और पुनर्स्थापन नीतियों के कार्यान्वयन की तीसरे पक्ष द्वारा निगरानी की जा सकती है।
- जेंडर संवेदी उपागम: सुनिश्चित किया जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों और आवश्यकताओं को पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन नीतियों में विशेष रूप से संबोधित किया जाए।
- वैकल्पिक विकास मॉडल: ऐसे विकास विकल्पों का पता लगाया जा सकता है जो विस्थापन को न्यूनतम करें।
- व्यापक डेटाबेस: दीर्घकालिक परिणामों पर नज़र रखने के लिये विस्थापित व्यक्तियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
विकास अभिप्रेत विस्थापन के संदर्भ में सामाजिक न्याय के साथ राष्ट्रीय प्रगति को संतुलित करना भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। पुनर्वासन और पुनर्स्थापन के लिये अधिक सहभागी, पारदर्शी तथा समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, भारत अधिक न्यायसंगत विकास की ओर बढ़ सकता है।