- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभव ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देने के साथ स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण को किस प्रकार प्रभावित किया? (150 शब्द)
16 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
दृष्टिकोण:
- द्वितीय विश्व युद्ध के कारण भारत पर पड़े समग्र प्रभावों का वर्णन कीजिये।
- भारत पर पड़े द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख प्रभाव एवं उनके निहितार्थों का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) का भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा और इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया।
- युद्ध के दौरान भारत और ब्रिटेन के बीच संबंधों में काफी बदलाव आए, भारत के अंदर राजनीतिक घटनाक्रम में तेज़ी आई तथा अंततः वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता के लिये एक मंच तैयार हुआ।
मुख्य भाग:
प्रमुख प्रभाव:
- भारतीय राजनीतिक परिदृश्य का ध्रुवीकरण: द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने से भारतीय राजनीतिक दृष्टिकोण में विभाजन हो गया:
- महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने युद्ध में भारत की अनैच्छिक भागीदारी का विरोध किया।
- वर्धा में आयोजित कॉन्ग्रेस कार्यसमिति (सितंबर 1939) ने संकल्प लिया कि भारत अपनी स्वतंत्रता से वंचित होकर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिये युद्ध का समर्थन नहीं कर सकता है।
- मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने राजनीतिक रियायतों के बदले में ब्रिटिश युद्ध प्रयासों का समर्थन किया।
- महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने युद्ध में भारत की अनैच्छिक भागीदारी का विरोध किया।
- अगस्त प्रस्ताव (1940) और इसके परिणाम:
- ब्रिटिश सरकार ने अगस्त प्रस्ताव रखा, जिसमें युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस देने का वादा किया गया।
- इस प्रस्ताव को कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अस्वीकार कर दिया, जिससे राजनीतिक तनाव और बढ़ गया।
- क्रिप्स मिशन (1942)
- सर स्टैफोर्ड क्रिप्स ने युद्ध के पश्चात् भारत के स्वशासन हेतु एक योजना प्रस्तावित की।
- इस योजना की विफलता ने ब्रिटिश उद्देश्यों और भारतीय राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के मध्य बढ़ते अंतराल को उजागर किया।
- ब्रिटिश सरकार ने अगस्त प्रस्ताव रखा, जिसमें युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस देने का वादा किया गया।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- क्रिप्स मिशन की विफलता के परिणामस्वरूप कॉन्ग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
- इस व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन ने तत्काल स्वतंत्रता की मांग की दिशा में एक निर्णायक परिवर्तन को चिह्नित किया।
- ब्रिटिश शक्ति का क्षीण होना:
- इस युद्ध ने ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य दृष्टि से काफी कमज़ोर कर दिया, जिससे भारत पर औपनिवेशिक नियंत्रण बनाए रखने की उसकी क्षमता में कमी आई।
- युद्ध प्रयासों में भारतीयों की भागीदारी से आत्मविश्वास बढ़ा और अपनी मांगों को मनवाने की इनकी शक्ति मज़बूत हुई।
- आर्थिक प्रभाव और सामाजिक परिवर्तन
- युद्ध के कारण मुद्रास्फीति और खाद्यान्न की कमी सहित आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं, जिससे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष को बढ़ावा मिला।
- इसके कारण सामाजिक परिवर्तन भी हुए, जिनमें शहरीकरण और औद्योगीकरण में वृद्धि प्रमुख है।
- उदाहरण: वर्ष 1943 का बंगाल अकाल युद्धकालीन नीतियों के कारण और भी गंभीर हो गया, जिससे लाखों लोगों की मृत्यु हुई तथा ब्रिटिश विरोधी भावना में तीव्रता आई।
निष्कर्ष:
द्वितीय विश्व युद्ध ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उत्प्रेरक का कार्य किया। इसने ब्रिटिश शासन की कमज़ोरियों को उजागर किया, राष्ट्रवादी भावनाओं को तीव्र किया और राजनीतिक घटनाक्रमों को गति दी। भारत पर युद्ध का प्रभाव इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार से वैश्विक घटनाएँ राष्ट्रीय आंदोलनों को गहराई से प्रभावित करने के साथ राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकती हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print