प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में क्षेत्रीय राज्यों के विकास ने विशिष्ट स्थापत्य एवं कलात्मक परंपराओं के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विस्तार से समझाइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में विशिष्ट स्थापत्य और कलात्मक परंपराओं के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- प्रमुख स्थापत्य परंपराओं के विषय में बताइये।
- क्षेत्रीय कलात्मक परंपराओं पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में क्षेत्रीय राज्यों के विकास, गुप्त साम्राज्य के पतन और विभिन्न राजवंशों के उदय के कारण सांस्कृतिक विविधता का आधार तैयार हुआ।
- इस अवधि में विशिष्ट स्थापत्य और कलात्मक परंपराओं का उदय हुआ, जिनमें से प्रत्येक अपने-अपने क्षेत्र के अद्वितीय सांस्कृतिक, धार्मिक तथा राजनीतिक प्रभावों को प्रतिबिंबित करती थी।
मुख्य भाग:
स्थापत्य परंपराएँ:
- नागर शैली:
- विशेषताएँ:
- घुमावदार छतें: प्रायः इसमें शिखर होते हैं जो आधार से ऊपर की ओर उठते हैं।
- अलंकृत नक्काशी: इसकी जटिल मूर्तियाँ और सजावटी आकृतियाँ बाहरी दीवारों की शोभा बढ़ाती हैं।
- मंडप: वर्गाकार या वृत्ताकार योजना वाले सभा कक्ष।
- उदाहरण:
- खजुराहो मंदिर: इनमें से अधिकांश का निर्माण चंदेल राजवंश द्वारा किया गया था।
- कोणार्क सूर्य मंदिर: गंग राजवंश के शासक राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा निर्मित।
- द्रविड़ शैली:
- विशेषताएँ:
- पिरामिडनुमा संरचनाएँ: इन्हें गोपुरम के नाम से जाना जाता है।
- विशाल हॉल: जटिल नक्काशी और मूर्तियों वाला विशाल मंडप।
- रेखीय योजना: मंदिर आमतौर पर रेखीय या आयताकार लेआउट पर आधारित हैं।
- उदाहरण:
- बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर: चोल सम्राट राजराज प्रथम द्वारा 1010 ई. में निर्मित।
- मीनाक्षी अम्मन मंदिर, मदुरै: पांड्य सम्राट सदायवर्मन कुलशेखरन प्रथम द्वारा निर्मित।
- वेसर शैली:
- विशेषताएँ:
- मिश्रित शैली: इसमें नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के तत्त्वों का मिश्रण मिलता है।
- घुमावदार छतें: नागर शैली के समान, लेकिन अक्सर अधिक विस्तृत वक्रता वाली।
- अलंकृत नक्काशी: जटिल मूर्तियाँ और सजावटी आकृतियाँ।
- उदाहरण:
- कैलाश मंदिर, एलोरा: राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण प्रथम द्वारा निर्मित।
क्षेत्रीय कलात्मक परंपराएँ:
- पाल शैली (पूर्वी भारत)
- बौद्ध और हिंदू धर्म से संबंधित पत्थर तथा कांस्य मूर्तियाँ
- ताड़ के पत्तों पर जटिल लघु चित्रकारी (पाल पांडुलिपि चित्रकारी)
- उदाहरण: बिहार के कुर्किहार से मिली कांस्य बुद्ध प्रतिमाएँ
- चोल कला (दक्षिण भारत)
- कांस्य मूर्तियों की मोम ढलाई तकनीक
- लयवद्ध आकृतियाँ और उत्कृष्ट विवरण
- उदाहरण: नटराज (नृत्य करते शिव) की कांस्य प्रतिमाएँ
- चालुक्य कला (दक्कन)
- अलंकृत मंदिर वास्तुकला
- विस्तृत आकृतियों वाली मूर्तिकला की विशिष्ट शैली
- उदाहरण: बादामी गुफा मंदिर, कर्नाटक की मूर्तियाँ
निष्कर्ष:
प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में क्षेत्रीय राज्यों के उदय से वास्तुकला और कलात्मक अभिव्यक्तियों में समृद्ध विविधता को जन्म मिला। इस अवधि में बाद की शताब्दियों में भारतीय कला और वास्तुकला के निरंतर विकास का आधार तैयार हुआ, जिससे एक स्थायी विरासत का निर्माण हुआ जो आज भी प्रेरणा और विस्मय का कारण बनी हुई है।