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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गंगा नदी बेसिन के पास के ग्रामीण क्षेत्र की स्थानीय अर्थव्यवस्था रेत खनन पर तेज़ी से निर्भर हो गई है। स्थानीय सरकार द्वारा सख्त नियमों के तहत सीमित क्षेत्रों में रेत खनन के लिये परमिट जारी किये है। हालाँकि इस क्षेत्र में अवैध रेत खनन वृहद् पैमाने पर हो रहा है, जिसमें उच्च दर्जे के ठेकेदार स्थानीय संसाधनों का दोहन कर रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। कई ठेकेदार अनुमत सीमा से अधिक और गैर-निर्दिष्ट क्षेत्रों से रेत निकालते हैं, जिससे नदी का प्रवाह, स्थानीय जैवविविधता और आस-पास की कृषि भूमि पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है।

    ज़िला अधिकारी के रूप में निरिक्षण करते समय आप देखते हैं कि नियामक निकायों की मौजूदगी के बावजूद बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन गतिविधियाँ चल रही हैं। पूछताछ करने पर, मज़दूरों का दावा है कि वे सीमा के भीतर काम करने वाले एक पंजीकृत ठेकेदार द्वारा नियोजित हैं। हालाँकि आप देखते हैं कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में भारी मशीनरी का प्रयोग किया जा रहा है। ग्राम निवासियों की शिकायत है कि अवैध खनन उनके खेतों को नुकसान पहुँचा रहा है, कटाव कर रहा है और पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा, आपको ज्ञात होता है कि स्थानीय प्रशासन कथित तौर पर प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों की भागीदारी के कारण इस मुद्दे को नज़रअंदाज़ कर रहा है या अपनी आँखें मूंद रहा है।

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
    2. उपरोक्त मामले में शामिल नैतिक मुद्दों को उजागर कर उन पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
    3. एक ज़िला अधिकारी के रूप में आप इस स्थिति के समाधान हेतु क्या कदम उठाएंगे?

    13 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    गंगा नदी बेसिन के पास के ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय अर्थव्यवस्था रेत खनन पर बहुत अधिक निर्भर हो गई है। स्थानीय सरकार ने सख्त नियमों के तहत रेत निकासी के लिये परमिट जारी की हैं लेकिन अवैध खनन अभी भी बना हुआ है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है।

    • यहाँ ठेकेदार स्वीकृत सीमा से अधिक रेत निकाल रहे हैं, जिससे नदी के प्रवाह, जैवविविधता और आस-पास की कृषि भूमि पर प्रभाव पड़ रहा है।
    • निरीक्षण के दौरान ज़िला अधिकारी को पता चलता है कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में भारी मशीनरी का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा है।
    • ग्रामीणों का कहना है कि इससे उनकी ज़मीनें नष्ट हो रही हैं, जल की उपलब्धता प्रभावित हो रही है और स्थानीय प्रशासन कथित तौर पर राजनीतिक प्रभाव के कारण इस मुद्दे की अनदेखी कर रहा है।

    मुख्य भाग:

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?

    हितधारक

    संबंधित मामले में भूमिका/रुचि

    स्थानीय सरकार

    रेत खनन परमिट जारी करना और विनियामक अनुपालन सुनिश्चित करना।

    ठेकेदार

    लाभ के लिये वैध और अवैध दोनों प्रकार के रेत खनन में लगे हुए हैं, जो प्रायः अनुमत सीमा से अधिक बना हुआ है।

    श्रमिक

    रेत खनन में कार्यरत, पंजीकृत ठेकेदारों के लिये कार्य करने का दावा, लेकिन अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो सकते हैं।

    ग्रामीण/किसान

    अवैध खनन के कारण पर्यावरणीय क्षति, भूमि कटाव और जल उपलब्धता में कमी से प्रभावित।

    ज़िला अधिकारी

    रेत खनन गतिविधियों की देखरेख और विनियमन तथा कानून प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार।

    स्थानीय प्रशासन

    संभवतः राजनीतिक दबाव के कारण अवैध गतिविधियों में शामिल होना।

    पर्यावरण कार्यकर्त्ता

    नदी के प्रवाह और जैवविविधता पर अवैध रेत खनन के कारण पड़ने वाले पारिस्थितिकी प्रभाव के बारे में चिंता।

    प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियाँ

    व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिये अवैध गतिविधियों के समर्थन की संभावना।

    न्यायिक निकाय

    यदि मामला कानूनी स्तर पर पहुँच जाता है तो पर्यावरण और कानूनी सुरक्षा को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी।

    स्थानीय समुदाय

    रेत खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित।

    2. संबंधित मामले में शामिल नैतिक मुद्दों को बताते हुए उन पर चर्चा कीजिये।

    • पर्यावरणीय नैतिकता: यहाँ प्राथमिक नैतिक चिंता अवैध रेत खनन के कारण होने वाला पर्यावरणीय क्षरण है।
      • इससे गंगा नदी बेसिन के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँच रहा है, जैवविविधता प्रभावित हो रही है, नदी के प्रवाह में परिवर्तनआ रहा है जो कटाव का कारण बन रहा है।
      • प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना तथा पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना नैतिक अनिवार्यता है, जिसका उल्लंघन अल्पकालिक आर्थिक लाभ हेतु किया जा रहा है।
    • सतत् विकास: यद्यपि रेत खनन आर्थिक अवसर प्रदान करता है लेकिन वर्तमान पद्धतियाँ धारणीय नहीं हैं।
      • नैतिक चुनौती आर्थिक आवश्यकताओं और दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाने में निहित है।
      • स्थानीय अर्थव्यवस्था की इस विनाशकारी प्रथा पर निर्भरता से ज़िम्मेदार संसाधन प्रबंधन और धारणीय आर्थिक विकल्पों की आवश्यकता पर प्रश्न उठते हैं।
    • विधि का शासन और भ्रष्टाचार: खनन नियमों का उल्लंघन और प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों की कथित संलिप्तता भ्रष्टाचार के साथ कानून के शासन की अप्रभावशीलता पर प्रकाश डालती है।
      • इससे सार्वजनिक संस्थाओं की सत्यनिष्ठा और राजनीतिक दबावों की परवाह किये बिना कानून को बनाए रखने के अधिकारियों के उत्तरदायित्व के बारे में नैतिक प्रश्न उठते हैं।
    • सामाजिक न्याय और समानता: यह मामला सामाजिक न्याय के मुद्दे पर प्रकाश डालता है क्योंकि अवैध खनन के नकारात्मक प्रभाव स्थानीय ग्रामीणों (विशेषकर किसानों) पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
      • इससे उनकी आजीविका और जल तक पहुँच से समझौता हो रहा है जिससे संसाधनों के न्यायसंगत वितरण एवं कमज़ोर समुदायों की सुरक्षा के बारे में नैतिक चिंताएँ पैदा हो रही हैं।
    • व्यावसायिक नैतिकता और कर्त्तव्य: इसमें व्यावसायिक ज़िम्मेदारियों को संभावित व्यक्तिगत जोखिमों के साथ संतुलित (विशेष रूप से शक्तिशाली व्यक्तियों की संलिप्तता को देखते हुए) करना शामिल है।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही: अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने में स्थानीय प्रशासन की कथित सहभागिता से सुशासन के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
    • आर्थिक नैतिकता: अवैध खनन में लगे ठेकेदार कानूनी और नैतिक विचारों की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता दे रहे हैं।
      • इससे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व और प्राकृतिक संसाधनों तथा स्थानीय समुदायों के शोषण से संबंधित व्यावसायिक प्रथाओं की नैतिकता पर प्रश्न उठते हैं।
    • श्रम नैतिकता: अवैध खनन कार्यों में श्रमिकों का उपयोग श्रम अधिकारों, सुरक्षा मानकों और संभावित शोषण के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
      • ऐसे में निष्पक्ष और सुरक्षित कार्य स्थितियाँ सुनिश्चित करना एक नैतिक ज़िम्मेदारी है।

    3. एक ज़िला अधिकारी के रूप में आप इस स्थिति से निपटने के लिये कौन-से मार्ग अपनाएंगे?

    • साक्ष्य का दस्तावेज़ीकरण: सबसे पहले मैं सभी उल्लंघनों का विस्तृत दस्तावेज़ीकरण करूँगा, जिसमें फोटोग्राफिक साक्ष्य, जीपीएस निर्देशांक तथा अवैध गतिविधियों, पर्यावरणीय क्षति तथा सामुदायिक प्रभावों पर विस्तृत नोट्स शामिल होंगे।
      • यह दस्तावेज़ीकरण भविष्य में किसी भी कानूनी या प्रशासनिक कार्रवाई के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
    • कथित अवैध खनन गतिविधियों पर अस्थायी रोक: मैं संभावित उल्लंघनों की व्यापक जाँच की आवश्यकता का हवाला देते हुए, इस क्षेत्र में कथित अवैध खनन गतिविधियों पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश दूँगा।
      • इसमें स्थलों को सुरक्षित करने तथा अवैध खनन को रोकने के लिये स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करना शामिल होगा।
    • औपचारिक जाँच शुरू करना: मैं अवैध खनन गतिविधियों की औपचारिक, निष्पक्ष जाँच शुरू करूँगा, जिसमें संबंधित विभागों (जैसे- भूविज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, कानून प्रवर्तन) के विशेषज्ञों की एक टीम शामिल होगी। इस जाँच के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे:
      • अवैध खनन की सीमा का निर्धारण
      • पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का आकलन
      • ठेकेदारों और किसी भी दोषी अधिकारी सहित सभी शामिल पक्षों की पहचान
      • विनियामक विफलताओं का मूल्यांकन, जिनके कारण ये गतिविधियाँ जारी हैं
    • अवैध गतिविधियों से निपटना: नियमों का उल्लंघन करने वाले सभी ऑपरेटरों को औपचारिक चेतावनी जारी करूँगा।
      • इन ऑपरेटरों को अपनी गतिविधियों को अनुपालन में लाने के लिये 30 दिन की छूट अवधि प्रदान करूँगा।
      • इस अवधि के बाद गैर-अनुपालन करने वाले ऑपरेटरों के विरुद्ध ज़ुर्माना और परमिट निरस्तीकरण सहित सख्त कार्रवाई करूँगा।
    • राजनीतिक संलिप्तता पर टिप्पणी: प्रत्यक्ष आरोप के बिना मैं जाँच के पूर्ण निष्कर्षों की औपचारिक रूप से रिपोर्ट राज्य स्तरीय प्राधिकारियों को दूँगा।
      • खनन विनियमों के संबंध में स्थानीय प्रशासन के कार्य की स्वतंत्र ऑडिट का अनुरोध करूँगा।
    • आर्थिक परिवर्तन: अल्प से मध्यम अवधि में विनियमित रेत खनन को बनाए रखते हुए मैं इसके साथ ही आर्थिक विविधीकरण और सतत् विकास के लिये कार्यक्रम शुरू करूँगा।
    • पर्यावरणीय पुनर्स्थापना: क्षतिग्रस्त क्षेत्रों को बहाल करने के लिये तत्काल प्रयास शुरू करूँगा, जिसका वित्तपोषण आंशिक रूप से रेत खनन कार्यों पर नए शुल्क से किया जाएगा।
    • पारदर्शिता और जवाबदेहिता: खनन गतिविधियों, परमिट की स्थिति और पर्यावरण संकेतकों पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने वाला एक सार्वजनिक डैशबोर्ड स्थापित करूँगा।

    निष्कर्ष:

    गंगा नदी बेसिन में अवैध रेत खनन के समाधान हेतु प्रस्तावित दृष्टिकोण का उद्देश्य आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सुशासन के बीच संतुलन हासिल करना है। इस संदर्भ में चरणबद्ध दृष्टिकोण को लागू करके हम क्रमिक रूप से अधिक टिकाऊ प्रथाओं की ओर बढ़ते हुए आर्थिक व्यवधान को कम कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण इस क्षेत्र की वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं को महत्त्व देने के साथ ही अधिक न्यायसंगत एवं धारणीय भविष्य हेतु एक स्पष्ट मार्ग निर्धारित करता है।

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