जयपुर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 7 अक्तूबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद मैनुअल स्कैवेंजिंग जारी है, जो कानून और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच अंतर को उजागर करता है।" मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 की प्रभावशीलता का परीक्षण कीजिये तथा इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिये उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    10 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मैनुअल स्कैवेंजिंग की निरंतरता पर प्रकाश डालते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • वर्ष 2013 के अधिनियम के सकारात्मक पहलुओं और कार्यान्वयन सहित इसके व्यापक अवलोकन पर तथ्यात्मक रूप से विचार कीजिये।
    • इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिये उपाय बताइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद भारत में हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) की प्रथा जारी रहना, विधायिक मंशा और सामाजिक वास्तविकता के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013” इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने और उसमे फँसे लोगों के पुनर्वास के लिये नवीनतम विधायी प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है। हालाँकि इसका कार्यान्वयन एक चिंता का विषय बना हुआ है।

    मुख्य भाग:

    मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 का व्यापक अवलोकन:

    सकारात्मक पहलू:

    • विस्तारित परिभाषा: इसमें मैनुअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए न केवल शुष्क शौचालयों की सफाई को शामिल किया गया है, बल्कि बिना सुरक्षात्मक उपकरणों के सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई को भी इसमें शामिल किया गया है।
    • प्रतिषेध और दंड: अधिनियम में मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन और अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण पर प्रतिषेध किया गया है।
    • पुनर्वास प्रावधान: यह नकद सहायता, उनके बच्चों के लिये छात्रवृत्ति, आवास, वैकल्पिक रोज़गार और अन्य कानूनी तथा कार्यक्रम संबंधी उपायों के माध्यम से पहचाने गए मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास को अनिवार्य बनाता है।
    • सतर्कता एवं निगरानी समितियाँ: अधिनियम में इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर सतर्कता एवं निगरानी समितियों की स्थापना का प्रावधान है।
    • राज्य के दायित्त्व: यह राज्य सरकारों पर अपने अधिकार क्षेत्र में मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान करने और उनका पुनर्वास करने का दायित्व डालता है।
    • सर्वेक्षण और पहचान: अधिनियम में मैनुअल स्कैवेंजर्स और अस्वच्छ शौचालयों की पहचान करने के लिये समयबद्ध सर्वेक्षण का प्रावधान किया गया है।

    सीमाएँ और चुनौतियाँ:

    • कार्यान्वयन में कमी: अपने व्यापक प्रावधानों के बावजूद, अधिनियम का कार्यान्वयन अत्यंत अपर्याप्त है।
      • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (NSKA) ने कर्नाटक के 30 ज़िलों में से 6 में 1,720 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की तथा अनुमान लगाया कि यदि पूरे राज्य में सर्वेक्षण किया जाए तो यह संख्या 10,000 से अधिक हो सकती है।
    • रिपोर्टिंग में कमी: बहुत सी राज्य और स्थानीय सरकारें हाथ से मैला ढोने के उपयोग का खुलासा करने या उसे कम महत्त्व देने में विफल रहती हैं, जिससे इसे व्यवहार में लाना मुश्किल हो जाता है।
      • वर्ष 2018 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 18 राज्यों के 170 ज़िलों में केवल 54,130 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की, एक आँकड़ा जिसे कार्यकर्त्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा व्यापक रूप से कम आंका गया है।
    • सीवर में मृत्यु: यह अधिनियम सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मृत्यु को रोकने में काफी हद तक अप्रभावी रहा है।
      • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, वर्ष 2010 से 2020 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 631 लोगों की मौत हुई।

    बेहतर कार्यान्वयन के उपाय:

    • पहचान और रिपोर्टिंग को सुदृढ़ बनाना: मैनुअल स्कैवेंजर्स और अस्वच्छ शौचालयों की पहचान करने के लिये व्यापक, प्रौद्योगिकी-सहायता प्राप्त सर्वेक्षण आयोजित करना।
      • सटीक डेटा संग्रह सुनिश्चित करने के लिये, संभवतः मोबाइल ऐप का उपयोग करके, एक मज़बूत, वास्तविक समय रिपोर्टिंग तंत्र को लागू करना।
      • स्वच्छ सर्वेक्षण पहल का विस्तार करके इसमें मैनुअल स्कैवेंजिंग की पहचान और रिपोर्टिंग के लिये विशिष्ट मापदंड शामिल किये जाना चाहिये।
    • पुनर्वास प्रयासों को बढ़ाना: स्थानीय नौकरी बाज़ार और व्यक्तिगत योग्यता के अनुरूप कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना।
      • पुनर्वास निधि का समय पर वितरण सुनिश्चित करना तथा पारदर्शी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उनके उपयोग की निगरानी करना।
      • महाराष्ट्र में हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज जैसे सफल मॉडलों को आगे बढ़ाना और उनका अनुकरण करना, जिसने 6,000 से अधिक सफाई कर्मचारियों को मशीनीकृत सफाई का प्रशिक्षण दिया है।
    • तकनीकी हस्तक्षेप: सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को बढ़ावा देना तथा सब्सिडी प्रदान करना।
      • लागत प्रभावी, स्थानीय रूप से अनुकूलनीय स्वच्छता प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
        • स्वच्छता प्रौद्योगिकी में नवाचार के लिये एक समर्पित कोष की स्थापना करना।
      • केरल में बैंडिकूट रोबोट की सफलता की जाँच करना और शायद इसका राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना फायदेमंद होगा, जहाँ यह मानव संपर्क की आवश्यकता के बिना मैनहोल को साफ करता है।
    • जागरूकता और शिक्षा: स्वच्छ भारत मिशन के समान एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू करना, जिसमें मैनुअल स्कैवेंजिंग की अवैधता और अमानवीयता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
      • मैनुअल स्कैवेंजिंग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सिनेमा और टेलीविज़न सहित लोकप्रिय मीडिया को शामिल करना।

    निष्कर्ष:

    भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने से संबंधित कानून और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच के अंतर को कम करने हेतु बहुआयामी, सतत् तथा गहन दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम (नमस्ते) योजना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो यह सुनिश्चित करके सरकार के मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाता है कि किसी भी सफाई कर्मचारी को हाथ से सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जैसे खतरनाक कार्य करने के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2