“विवादास्पद कानून पारित करने के लिये धन विधेयक का उपयोग भारत की संसदीय प्रणाली की द्विसदनीय प्रकृति को कमज़ोर करता है”। हाल की विधायी प्रथाओं और राज्यसभा की भूमिका पर उनके प्रभाव के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- धन विधेयक से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
- धन विधेयकों से संबंधित हाल की विधायी परंपराओं पर तथ्यात्मक रूप से विचार कीजिये।
- राज्यसभा की भूमिका पर इसके प्रभाव को समझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
धन विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित विधान की एक विशेष श्रेणी है।
- अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं। राज्यसभा में नहीं, राज्यसभा केवल सिफारिश प्रस्तुत कर सकती है, जिन्हें लोकसभा द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है।
- यद्यपि इस तंत्र का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है, आलोचकों का तर्क है कि विवादास्पद विधेयक की जाँच में राज्यसभा की भूमिका को दरकिनार करने के लिये इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
मुख्य भाग:
हालिया विधायी संबंधी परंपराओं:
- हाल के वर्षों में सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण विधेयक पारित करने हेतु धन विधेयक का अधिकाधिक प्रयोग किया गया है:
- आधार अधिनियम, 2016 : यह अधिनियम, जिसने आधार पहचान प्रणाली के लिये कानूनी ढाँचा स्थापित किया, को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया, जबकि इसमें वित्तीय मामलों से परे प्रावधान शामिल थे।
- आधार संबंधी मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम को वैध रूप से धन विधेयक के रूप में बरकरार रखा। हालाँकि न्यायाधीशों की असहमतिपूर्ण राय ने इस मामले में धन विधेयक के उपयोग को "संवैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग" बताया।
- धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 में संशोधन: प्रवर्तन एजेंसियों की शक्तियों का विस्तार करने वाले ये संशोधन वित्त अधिनियम के माध्यम से प्रस्तुत किये गए थे।
- धन विधेयक के माध्यम से प्रस्तुत PMLA संशोधन और चुनावी बॉण्ड योजना को चुनौती देने वाले मामले वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।
- विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA), 2010 में परिवर्तन: इस अधिनियम में संशोधन, जो भारतीय संगठनों को विदेशी दान को विनियमित करता है, को भी वित्त विधेयक के भाग के रूप में पारित किया गया।
- वित्त अधिनियम, 2017: इस अधिनियम में विभिन्न कानूनों में संशोधन शामिल थे, जिनमें न्यायाधिकरणों की संरचना और कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने वाले कानून भी शामिल थे, जिनके बारे में अनेक लोगों का तर्क था कि वे धन विधेयक के दायरे से बाहर थे।
राज्यसभा की भूमिका पर प्रभाव:
- जाँच में कमी: जब किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में नामित किया जाता है, तो राज्यसभा की भूमिका 14 दिनों की अवधि के भीतर गैर-बाध्यकारी सिफारिशें करने तक सीमित हो जाती है।
- लोकसभा इन सुझावों को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये स्वतंत्र है, जिससे विधायी प्रक्रिया में उच्च सदन को प्रभावी रूप से दरकिनार कर दिया जाता है।
- सीमित बहस: 14 दिन की समय-सीमा के कारण राज्यसभा में जटिल मुद्दों पर गहन चर्चा नहीं हो पाती, जिससे महत्त्वपूर्ण विधेयकों की अपर्याप्त जाँच हो पाती है।
- विपक्ष को दरकिनार करना: यह सरकार को ऊपरी सदन में संभावित विपक्ष को दरकिनार करने की अनुमति देती है, जहाँ उसके पास बहुमत की कमी हो सकती है।
- द्विसदनीय भावना का क्षरण: यह भारत के संसदीय लोकतंत्र में विधायी नियंत्रण और संतुलन के आधारभूत सिद्धांत को संभावित रूप से कमज़ोर करता है।
इस परंपरा के पक्ष में तर्क:
- दक्षता: यह मार्ग सरकारी नीतियों के त्वरित कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है तथा विधायी प्रक्रिया में संभावित गतिरोधों से बचाता है।
- सत्तारूढ़ गठबंधन के पास अक्सर ऊपरी सदन में बहुमत नहीं होता, जिससे सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से विवादास्पद विधेयक पारित करना कठिन हो जाता है।
- जनादेश का उपयोग: यह सरकार को, जिसके पास लोकप्रिय रूप से निर्वाचित लोकसभा में बहुमत है, अपने एजेंडे को प्रभावी ढंग से लागू करने की अनुमति प्रदान करता है।
संभावित समाधान और सुधार
- धन विधेयक को पुनः परिभाषित करना: धन विधेयक की अधिक सटीक और संकीर्ण परिभाषा प्रदान करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 110 में संशोधन आवश्यक है, जिससे उनका दायरा वित्त से सीधे संबंधित मामलों तक सीमित हो जाएगा।
- इससे गैर-वित्तीय विधानों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत होने से रोका जा सकेगा।
- संयुक्त बैठकें: गैर-धन विधेयकों पर असहमति के समाधान हेतु संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के प्रावधान किये जाए।
- इससे विधि निर्माण में राज्यसभा के प्रतिनिधित्त्व में महत्त्वपूर्ण भूमिका में वृद्धि होगी।
- सरकार द्वारा आत्म-संयम: सरकार को विधेयकों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने में आत्म-संयम बरतने तथा वास्तविक वित्तीय मामलों को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष:
विवादास्पद कानून पारित करने के लिये धन विधेयक का उपयोग एक चिंताजनक प्रवृत्ति है जो भारत की संसदीय प्रणाली की द्विसदनीय प्रकृति को कमज़ोर करती है। जबकि संविधान में धन विधेयक के प्रयोग का प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इस तंत्र का दुरुपयोग राज्यसभा की निगरानी को दरकिनार करने तथा अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी विधायी प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिये न किया जाए।