जयपुर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 7 अक्तूबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    चरमपंथी समूहों द्वारा भर्ती और प्रचार हेतु सोशल मीडिया का एक उपकरण के रूप में उपयोग से आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा है। भारत लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता किये बिना डिजिटल चरमपंथ से निपटने के लिये एक मज़बूत रणनीति किस प्रकार विकसित कर सकता है? (250 शब्द)

    11 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • डिजिटल अतिवाद के प्रसार का उल्लेख करते हुए उत्तर लिखिये।
    • डिजिटल अतिवाद द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर विचार कीजिये।
    • डिजिटल अतिवाद से निपटने के लिये रणनीतियाँ बताइये।
    • डिजिटल अतिवाद से निपटने और लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखने के मध्य संतुलन बनाने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    डिजिटल युग में अभूतपूर्व कनेक्टिविटी और सूचना तक पहुँच मिली है, लेकिन इसने चरमपंथी समूहों के लिये दुष्प्रचार फैलाने तथा अनुयायियों की भर्ती करने के नए रास्ते भी खोल दिये हैं।

    विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और तेज़ी से डिजिटलीकरण की ओर अग्रसर राष्ट्र के रूप में भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखते हुए डिजिटल अतिवाद से निपटने में एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

    मुख्य भाग:

    डिजिटल अतिवाद द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ:

    • घृणास्पद भाषण का तीव्र प्रसार: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चरमपंथी समूहों को घृणास्पद सामग्री तीव्रता से प्रसारित करने की अनुमति देते हैं, जो व्यापक दर्शकों तक पहुँचती है जिससे समाज में विभाजन को बढ़ावा मिलता है।
      • उदाहरण: वर्ष 2019 में क्राइस्टचर्च मस्जिद पर हमला, जहाँ अपराधी ने फेसबुक पर अपने जघन्य कृत्यों का लाइव-स्ट्रीम किया, जो ऑनलाइन चरमपंथी सामग्री के तेज़ी से प्रसार को दर्शाता है।
    • भर्ती और कट्टरपंथ: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म चरमपंथी समूहों के लिये कमज़ोर व्यक्तियों की भर्ती करने और उन्हें कट्टरपंथी अनुयायी बनाने के लिये अनुकूल स्थिति प्रदान करते हैं।
      • उदाहरण: आईएसआईएस ने भर्ती करने और दुष्प्रचार फैलाने के लिये टेलीग्राम तथा अन्य मैसेजिंग ऐप का प्रयोग किया।
    • डीपफेक और फेक न्यूज़: डीपफेक और फेक न्यूज़ के अन्य रूपों के प्रसार का उपयोग लोगों के विचारों में हेरफेर करने तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास को कम करने के लिये किया जा सकता है।
      • वर्ष 2024 के भारतीय आम चुनाव में एआई-आधारित प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से डीपफेक और फेक न्यूज़ अभियानों के उपयोग में वृद्धि देखी गई।
    • हनी ट्रैपिंग: चरमपंथी समूह रक्षा या सरकारी एजेंसियों जैसे संवेदनशील पदों पर कार्यरत व्यक्तियों को खतरे में डालने के लिये सोशल मीडिया के माध्यम से हनी ट्रैपिंग की रणनीति अपना सकते हैं।
      • वर्ष 2023 में एक DRDO वैज्ञानिक को एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटिव के साथ संवेदनशील जानकारी साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिसने उसे रोमांटिक रिश्ते में फँसाया था।

    डिजिटल अतिवाद के समाधान हेतु रणनीतियाँ:

    • बहु-हितधारक सहयोग: डिजिटल अतिवाद के समाधान हेतु सरकारी एजेंसियों, प्रौद्योगिकी कंपनियों, नागरिक समाज संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण आवश्यक है।
    • सामग्री मॉडरेशन और तथ्य-जाँच: प्रौद्योगिकी कंपनियों को मज़बूत सामग्री मॉडरेशन नीतियों को लागू करना चाहिये और हानिकारक सामग्री के प्रसार को कम करने के लिये तथ्य-जाँच पहल में निवेश करना चाहिये।
      • भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया मध्यस्थों को फेक न्यूज़ और डीपफेक की पहचान करने तथा रिपोर्ट किये जाने के 36 घंटे के भीतर ऐसी किसी भी सामग्री को हटाने के लिये जारी किया गया परामर्श इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • प्रति-आख्यान और सकारात्मक संदेश: सरकार और नागरिक समाज संगठनों को चरमपंथी विचारधारा को चुनौती देने के लिये प्रति-आख्यान विकसित करना चाहिये तथा सकारात्मक संदेश को बढ़ावा देना चाहिये।
    • साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता: साइबर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने और कानून प्रवर्तन क्षमताओं को बढ़ाने से ऑनलाइन चरमपंथी समूहों की गतिविधियों को बाधित करने में सहायता मिल सकती है।
      • इसके अलावा लोगों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने से लोगों को चरमपंथी दुष्प्रचार की पहचान करने और उसका सामना करने में मदद मिल सकती है।

    डिजिटल अतिवाद का सामना करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के मध्य संतुलन बनाना:

    डिजिटल अतिवाद से निपटना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। इस संदर्भ में कुछ मुख्य बिंदु:

    • आनुपातिकता: ऑनलाइन सामग्री को प्रतिबंधित करने के लिये अपनाए गए उपाय उत्पन्न खतरे के अनुपात में होने चाहिये।
    • स्पष्टता और पारदर्शिता: ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने वाले कानून और नियम स्पष्ट और पारदर्शी होने चाहिये जिससे निराधार सेंसरशिप को रोका जा सके।
    • स्वतंत्र निरीक्षण: ऑनलाइन सामग्री मॉडरेशन से संबंधित सरकारी कार्यों की निगरानी और समीक्षा के लिये एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना की जानी चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करते हुए डिजिटल चरमपंथ की वैश्विक प्रकृति से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

    निष्कर्ष

    भारत में डिजिटल चरमपंथ से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा की आवश्यकता को लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के साथ संतुलित करे। सहयोग को बढ़ावा देने, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, साइबर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने और प्रभावी प्रतिक्रिया को विकसित करने के माध्यम से भारत, ऑनलाइन कार्य करने वाले चरमपंथी समूहों द्वारा उत्पन्न खतरे को कम कर सकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2