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प्रश्न :
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) की शुरूआत भारत के आर्थिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। वित्तीय समावेशन पर डिजिटल रूपए के संभावित प्रभावों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
11 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारत में CBDC की शुरुआत का उल्लेख करते हुए उत्तर लिखिये।
- वित्तीय समावेशन पर CBDC के प्रभाव बताइये।
- संभावित चुनौतियों और सीमाओं पर प्रकाश डालिये।
- उन्नत वित्तीय समावेशन के लिये कार्यान्वयन रणनीतियों पर तथ्यात्मक विचार कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2022 में केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) की शुरुआत, जिसे डिजिटल रुपया भी कहा जाता है, भारत की मौद्रिक प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण विकास का प्रतिनिधित्व करता है।
यह पहल मुद्राओं के डिजिटलीकरण की दिशा में वैश्विक रुझानों के अनुरूप है और इसमें देश में वित्तीय समावेशन को नया रूप देने की क्षमता है।
मुख्य भाग:
वित्तीय समावेशन पर CBDC का प्रभाव:
- वित्तीय सेवाओं तक पहुँच में वृद्धि: डिजिटल रुपया संभावित रूप से बैंकिंग सेवाओं से वंचित और अपर्याप्त बैंकिंग सुविधाओं वाले व्यक्तियों (विशेष रूप से ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में) तक पहुँच सकता है।
- वर्ष 2021 तक लगभग 22% भारतीय वयस्क बैंकिंग सेवाओं से वंचित थे (विश्व बैंक ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस)।
- डिजिटल रुपया वित्तीय भागीदारी का एक सरल, डिजिटल माध्यम प्रदान करके इस अंतर को कम करने में मदद कर सकता है।
- लेन-देन लागत में कमी: पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं की तुलना में डिजिटल लेन-देन में आमतौर पर कम लागत आती है।
- डिजिटल रुपया इस लागत को काफी हद तक कम कर सकता है, क्योंकि इसके माध्यम से भौतिक मुद्रा की छपाई और परिवहन की लागत में भी कमी आ सकती है।
- उन्नत सरकारी लाभ वितरण: इससे सरकारी लाभों का प्रत्यक्ष हस्तांतरण अधिक कुशल और पारदर्शी हो जाता है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना की सफलता, जिसने वर्ष 2013 से लाभार्थियों को 24.8 लाख करोड़ रुपए से अधिक हस्तांतरित किये हैं, डिजिटल रुपए के साथ और भी अधिक बढ़ सकती है।
- कर अनुपालन में वृद्धि तथा कालेधन और जालसाजी में कमी: इससे वित्तीय लेन-देन की बेहतर निगरानी संभव हो पाती है।
- उदाहरण के लिये, इससे यह ज्ञात करना सरल हो जाएगा कि व्यावसायी ने पैसा कहाँ से इकट्ठा किया तथा उसने उचित मात्रा में कर का भुगतान किया या नहीं।
- इससे जालसाजी की संभावना भी कम हो जाएगी।
संभावित चुनौतियाँ और सीमाएँ:
- डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की सीमित पहुँच के कारण इसे अपनाने में बाधा हो सकती है। भारत में 56% से अधिक उपयोगकर्त्ताओं को कनेक्शन संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है, जो दर्शाता है कि आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से तक इंटरनेट संबंधी सुविधा उचित मायने में उपलब्ध नहीं है।
- साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: CBDC अभूतपूर्व पैमाने पर संवेदनशील भुगतान और उपयोगकर्त्ता डेटा एकत्र करने में सक्षम होंगे।
- कुछ लोगों द्वारा इंटरनेट का दुरुपयोग नागरिकों के निजी लेन-देन पर जासूसी करने, व्यक्तियों और संगठनों के बारे में सुरक्षा-संवेदनशील विवरण प्राप्त करने तथा यहाँ तक कि धन चोरी करने के लिये भी किया जा सकता है।
- नकदी लचीलेपन का क्षरण: इससे नकदी और जमा के मध्य का अंतर समाप्त हो सकता है।
- भौतिक नकदी के विपरीत, जिस पर ब्याज नहीं मिलता है और जिसका उपयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है, बैंक खाते में डिजिटल मुद्रा पर ब्याज अर्जित होने से यह लचीलापन सीमित हो सकता है लेकिन इससे तत्काल ब्याज मुक्त तरलता में कमी आ सकती है।
- इस बदलाव का व्यापक प्रभाव हो यह सकता है कि व्यक्ति अपने वित्त का प्रबंधन कैसे करते हैं और नियमित व्यय के लिये नकदी कैसे प्राप्त करते हैं।
उन्नत वित्तीय समावेशन के लिये कार्यान्वयन रणनीतियाँ:
- बुनियादी ढाँचे का विकास: सरकार डिजिटल विभाजन को कम करने के लिये (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विस्तार में निवेश कर सकती है।
- वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम: RBI और अन्य वित्तीय संस्थान डिजिटल मुद्रा के लाभों और जोखिमों के बारे में व्यक्तियों को शिक्षित करने के लिये वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को विकसित करने एवं कार्यान्वित करने में सहयोग कर सकते हैं।
- नियामक ढाँचा: डिजिटल रुपए के उपयोग को नियंत्रित करने और उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिये एक स्पष्ट एवं व्यापक नियामक ढाँचा आवश्यक है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार, निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी, डिजिटल रुपए को तीव्रता से अपनाने में सहयोग कर सकती है।
निष्कर्ष:
RBI द्वारा डिजिटल रुपए की शुरुआत भारत में वित्तीय समावेशन के लिये एक परिवर्तनकारी अवसर प्रस्तुत करती है। वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में इस पहल की सफलता काफी हद तक विचारपूर्वक कार्यान्वयन रणनीतियों, मज़बूत बुनियादी ढाँचे के विकास और व्यापक डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों पर निर्भर करेगी, जो भारत को नकदी आधारित से कम नकदी वाली और फिर नकदी रहित अर्थव्यवस्था में बदल देगी।
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