- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
हाल के दशकों में पारंपरिक भारतीय पारिवारिक संरचना में प्रमुख परिवर्तन हुए हैं। शहरीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभाव पर विशेष बल देते हुए भारतीय परिवार की बदलती प्रकृति का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
09 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय पारिवारिक संरचना में प्रमुख परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- शहरीकरण और वैश्वीकरण के कारण भारतीय परिवारों की बदलती प्रकृति पर गहनता से विचार कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय परिवार प्रणाली, जो पारंपरिक रूप से संयुक्त परिवारों और मज़बूत संबंधों की विशेषता रखती है, में हाल के दशकों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
शहरीकरण और वैश्वीकरण इन परिवर्तनों के प्रमुख चालक रहे हैं, जिन्होंने पारिवारिक संरचनाओं, रिश्तों तथा मूल्यों को नया आकार दिया है।
मुख्य बिंदु:
भारतीय परिवारों का बदलता स्वरूप:
- शहरीकरण के कारण:
- संयुक्त से एकल परिवारों की ओर बदलाव: एकल परिवारों का प्रचलन, खासतौर पर शहरी इलाकों में बढ़ रहा है। मुंबई और बंगलुरु जैसे महानगरों में अब ज़्यादातर संख्या एकल परिवारों की है।
- कारण: शहरीकरण के कारण रोज़गार के अवसरों हेतु लोगों का गाँव से शहर की ओर पलायन, जिससे प्रायः परिवार के सदस्य भौगोलिक दृष्टि से अलग हो रहे हैं और संयुक्त परिवार एकल परिवारों में विघटित हो रहे हैं।
- पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों में आईटी क्षेत्र का विस्तार होने से भारत के युवा पेशेवरों के पलायन में वृद्धि के परिणामस्वरूप एकल परिवार का निर्माण हो रहा है।
- कारण: शहरीकरण के कारण रोज़गार के अवसरों हेतु लोगों का गाँव से शहर की ओर पलायन, जिससे प्रायः परिवार के सदस्य भौगोलिक दृष्टि से अलग हो रहे हैं और संयुक्त परिवार एकल परिवारों में विघटित हो रहे हैं।
- परिवार के आकार में परिवर्तन: परिवार का आकार संक्षिप्त हो रहा है तथा प्रति परिवार बच्चों की औसत संख्या में भी कमी आ रही है।
- भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1992-93 में 3.4 से घटकर वर्ष 2019-21 में 2.0 हो गई है, जो एकल परिवारों की ओर बदलाव का संकेत है।
- कारण: परिवार नियोजन के बारे में बढ़ती जागरूकता, उच्च शिक्षा स्तर और कॅरियर हेतु आकांक्षाएँ इस प्रवृत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- एकल-अभिभावक परिवारों का उदय: एकल-अभिभावक परिवारों में वृद्धि।
- संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा जारी 'विश्व की महिलाओं की प्रगति 2019-2020' रिपोर्ट के अनुसार सभी भारतीय परिवारों में से 4.5% परिवार केवल माता द्वारा संचालित हैं।
- कारण: तलाक की उच्च दर, व्यक्तिगत पसंद तथा एकल अभिभावकत्व।
- सुष्मिता सेन और तुषार कपूर जैसी बॉलीवुड हस्तियों द्वारा एकल अभिभावकत्व का चयन करने से इस पारिवारिक संरचना को सामान्य बनाने में मदद मिली है।
- बदलते रीति-रिवाज़ और परंपराएँ: पारंपरिक पारिवारिक रीति-रिवाज़ों और परंपराओं का अनुकूलन और कमज़ोर पड़ना।
- भारत में बड़े स्तर पर आयोजित शादियों के बजाय छोटे पैमाने पर, अंतरंग शादियाँ युवाओं के लिये पसंदीदा विकल्प बन गई हैं।
- कारण: समय की कमी, शहरीकरण और सांस्कृतिक प्रभावों का सम्मिश्रण।
- दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान व्यस्त शहरी परिवारों के लिये "लघु प्रारूप (Short-Format)" पूजा की पेशकश करने वाले पेशेवर पुजारियों का उदय।
- संयुक्त से एकल परिवारों की ओर बदलाव: एकल परिवारों का प्रचलन, खासतौर पर शहरी इलाकों में बढ़ रहा है। मुंबई और बंगलुरु जैसे महानगरों में अब ज़्यादातर संख्या एकल परिवारों की है।
- वैश्वीकरण के कारण:
- लिंग भूमिका का विकास: परिवारों में अधिक समतावादी लिंग भूमिकाओं की ओर धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है। वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2021-22 में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में 9.5% अंकों की वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि अधिक महिलाएँ कॅरियर के विकल्प चुन रही हैं।
- कारण: शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और वैश्विक विचारों से परिचय ने महिलाओं को सशक्त बनाया है तथा पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती दी है।
- इसके अलावा, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2018 के फैसले से LGBTQ+ रिश्तों की सादृश्यता और स्वीकृति बढ़ी है, जिससे पारंपरिक पारिवारिक मानदंडों को चुनौती मिली है।
- विवाह के बदलते स्वरूप: विलंब से विवाह करने की प्रवृत्ति में बदलाव, तलाक की दर में वृद्धि हुई तथा अंतर्जातीय एवं अंतर्धार्मिक विवाहों को अधिक स्वीकृति मिली है।
- भारत में महिलाओं की शादी की औसत आयु 2011 की जनगणना के अनुसार 21.2 वर्ष थी, जो वर्ष 2017 में 22.1 वर्ष हो गई।
- कारण: उच्च शिक्षा स्तर, कॅरियर संबंधी प्राथमिकताएँ और बदलते सामाजिक मानदंड इन बदलावों में योगदान करते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य के प्रति बदलते दृष्टिकोण: परिवारों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के प्रति जागरूकता और स्वीकृति बढ़ रही है।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत की 15% आबादी को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य संबंधी संवाद की आवश्यकता है। जिससे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में परिवार में स्पष्ट तौर पर संवाद होने लगा है।
- कारण: मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा, मीडिया कवरेज और सेलिब्रिटी समर्थन में वृद्धि।
- लिंग भूमिका का विकास: परिवारों में अधिक समतावादी लिंग भूमिकाओं की ओर धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है। वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2021-22 में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में 9.5% अंकों की वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि अधिक महिलाएँ कॅरियर के विकल्प चुन रही हैं।
निष्कर्ष:
शहरीकरण और वैश्वीकरण के कारण भारतीय परिवारों की रूपरेखा में काफी बदलाव आया है, पारंपरिक संयुक्त परिवारों से एकल परिवारों की ओर बदलाव हुआ है तथा महिलाओं को सशक्त बनाया गया है। हालाँकि इन बदलावों ने अधिक व्यक्तिवाद और वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं की स्वीकार्यता को जन्म दिया है, लेकिन परिवार, भारत में समर्थन एवं पहचान का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print