नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय विधायी प्रक्रिया में संसदीय समितियों के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। सरकारी नीतियों की जाँच में उन्हें और अधिक कुशल किस प्रकार बनाया जा सकता है, उपाए सुझाइये। (250 शब्द)

    03 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    परिचय:

    संसदीय समितियाँ जिन्हें " लोकतंत्र के प्रहरी " कहा जाता है, भारतीय विधायी प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे सरकार और विधायिका के बीच महत्त्वपूर्ण मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं, तथा पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रभावी शासन सुनिश्चित करती हैं।

    • हालाँकि, 16वीं लोक सभा के दौरान प्रस्तुत विधेयकों में से मात्र 25% विधेयक ही समिति के पास भेजे गए, जबकि 15वीं और 14वीं लोक सभा में यह दर क्रमशः 71% और 60% थी ।

    मुख्य भाग:

    संसदीय समितियों का महत्त्व:

    • विधेयकों की विस्तृत जाँच : संसदीय समितियां संसद सत्रों की समय-सीमा के बाहर प्रस्तावित विधेयकों की गहन जाँच की अनुमति देती हैं।
      • उदाहरण : लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 की कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा गहन जाँच की गई।
    • विशेषज्ञता और विशेषज्ञता: समितियों में प्रासंगिक क्षेत्रों में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले सदस्य शामिल होते हैं, जिससे अधिक सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
      • उदाहरण: वित्त संबंधी स्थायी समिति, जिसका नेतृत्व अक्सर अनुभवी अर्थशास्त्री या पूर्व वित्त मंत्री करते हैं, जटिल वित्तीय मामलों पर विशेषज्ञ विश्लेषण प्रदान करती है।
        • 2016 में, इस समिति ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के अधिनियमन से पहले इसकी जाँच में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • द्विदलीय सहयोग : समितियाँ मुख्य कक्षों के प्रतिकूल माहौल से दूर एक अधिक सहयोगात्मक वातावरण को बढ़ावा देती हैं।
      • उदाहरण: गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति, जिसमें विभिन्न दलों के सदस्य शामिल हैं, आंतरिक सुरक्षा और संघवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अक्सर आम सहमति पर पहुंचती रही है।
    • सरकारी जवाबदेही : समितियाँ सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को पूछताछ के लिये बुलाती हैं, जिससे कार्यकारी जवाबदेही बढ़ती है।
      • उदाहरण: 2020 में, सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति द्वारा डेटा गोपनीयता चिंताओं और सामग्री मॉडरेशन नीतियों पर चर्चा करने के लिये फेसबुक के अधिकारियों को बुलाया गया।
    • सार्वजनिक भागीदारी : समितियां अक्सर विशेषज्ञों की गवाही और सार्वजनिक इनपुट आमंत्रित करती हैं, जिससे परामर्श का आधार व्यापक हो जाता है।
      • उदाहरण: व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर संयुक्त संसदीय समिति ने जनता से टिप्पणियां आमंत्रित कीं और तकनीकी कंपनियों, नागरिक समाज संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों की गवाही सुनी।

    संसदीय समितियों से संबंधित चुनौतियाँ:

    • सीमित शक्तियां: भारत में संसदीय समितियों की भूमिका सलाहकारी होती है तथा उनकी सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं होती हैं।
    • इससे नीति और कानून को प्रभावित करने में उनकी प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
    • कम उपस्थिति और भागीदारी: 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति लगभग 50% थी, जो संसद की बैठकों के दौरान देखी गई 84% उपस्थिति से कम है , जिससे विचार-विमर्श और जाँच की गुणवत्ता कम हो गई है।
    • विषय-वस्तु में विशेषज्ञता और अनुवर्ती कार्रवाई का अभाव: सदस्यों को हमेशा उन क्षेत्रों में विशेष ज्ञान नहीं हो सकता है जिनकी वे देखरेख कर रहे हैं, जिससे जाँच की गहराई पर असर पड़ सकता है।
    • इसके अलावा, समिति की सिफारिशों पर अनुवर्ती कार्रवाई करने तथा उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये अक्सर मज़बूत तंत्र का अभाव रहता है।
    • राजनीतिक पक्षपात: कभी-कभी, राजनीतिक संबद्धता समिति की कार्यवाही को प्रभावित कर सकती है, जिससे वस्तुनिष्ठ विश्लेषण पर असर पड़ सकता है।
      • 2023 में, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक की जाँच करने वाली संयुक्त समिति से विपक्षी सदस्यों का समिति की कार्यप्रणाली पर असहमति के कारण बहिर्गमन।
    • समितियों के गठन में देरी: लोकसभा चुनाव 2024 के लगभग 3 महीने बीत जाने के बाद भी स्थायी समितियों का गठन नहीं किया गया है।

    संसदीय समितियों की प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय:

    • समिति की रिपोर्टों पर अनिवार्य विचार: संसद के लिये समिति की रिपोर्टों की प्रमुख सिफारिशों पर चर्चा और मतदान करना अनिवार्य बनाया जाए।
      • उदाहरण : ब्रिटेन में, कई समिति रिपोर्टों पर हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस की जाती है , ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके निष्कर्षों पर उचित ध्यान दिया जाए।
    • सार्वजनिक सहभागिता बढ़ाएँ: समिति की कार्यवाही का प्रसारण करें और सार्वजनिक इनपुट के लिये उपयोगकर्ता-अनुकूल मंच बनाएँ।
    • अनुसंधान सहायता को सुदृढ़ बनाना: स्वतंत्र विश्लेषण करने के लिये समितियों को समर्पित अनुसंधान स्टाफ और संसाधन उपलब्ध कराना।
    • आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: संसद की संरचना को बेहतर ढंग से प्रतिबिम्बित करने के लिये समिति नियुक्ति प्रक्रियाओं को संशोधित तथा नेतृत्व की भूमिकाओं में विपक्षी सदस्यों को शामिल करना।
    • अधिक जाँच शक्तियाँ प्रदान करना : सूचना तक पहुंचने और गवाही देने के लिये समितियों को अतिरिक्त उपकरण प्रदान करना।
    • विषय-विशिष्ट समितियों की संख्या बढ़ाएँ : उभरते नीति क्षेत्रों को कवर करने के लिये अधिक विशिष्ट समितियाँ बनाएँ।
      • उदाहरण : भारत समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिये जलवायु परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता या साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों पर समर्पित समितियों की स्थापना पर विचार कर सकता है।

    निष्कर्ष: संसदीय समितियाँ भारतीय विधायी प्रक्रिया के लिये अपरिहार्य हैं । उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपायों को लागू करके, जैसे कि समिति की रिपोर्टों पर अनिवार्य विचार करना, भारत एक अधिक सूचित, उत्तरदायी और सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा दे सकता है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow