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प्रश्न :
चोल साम्राज्य की समुद्री शक्ति का दक्षिण-पूर्व एशिया पर व्यापक प्रभाव था। चोल साम्राज्य के समुद्री प्रभुत्व में योगदान देने वाले कारकों को बताते हुए क्षेत्रीय व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
02 Sep, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
दृष्टिकोण:
- चोल राजवंश के शासन का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिए।
- समुद्री प्रभुत्व में योगदान देने वाले कारक बताइए
- क्षेत्रीय व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर पड़ने वाले प्रभाव का गहन अध्ययन
- उचित निष्कर्ष निकालें।
परिचय:
दक्षिण भारत के सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक चोल वंश 9वीं शताब्दी में पल्लवों को पराजित करने के बाद सत्ता में आया और 13 वीं शताब्दी तक अपना शासन जारी रखा ।
- इस अवधि के दौरान, आदित्य प्रथम और परंतक प्रथम जैसे राजाओं ने अपने शासन को मज़बूत किया, जबकि राजराजा चोल और राजेंद्र चोल ने साम्राज्य का विस्तार तमिल क्षेत्र में किया, बाद में कुलोथुंगा चोल ने कलिंग पर विजय प्राप्त की।
मुख्य भाग:
समुद्री प्रभुत्व में योगदान देने वाले कारक
- सामरिक भौगोलिक स्थिति: चोल साम्राज्य का कोरोमंडल तट और मालाबार तट के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण था।
- इससे उन्हें बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों तक पहुँच प्राप्त हो गयी।
- उदाहरण : कावेरीपूमपट्टिनम (पुहार) जैसे बंदरगाहों पर नियंत्रण से समुद्री मार्गों तक आसान पहुंच संभव हो गई।
- उन्नत जहाज निर्माण प्रौद्योगिकी: चोलों ने परिष्कृत जहाज निर्माण तकनीक विकसित की।
- उन्होंने विभिन्न प्रकार के जहाज़ों का निर्माण किया, जिनमें लम्बी दूरी की यात्रा करने में सक्षम बड़े जहाज़ भी शामिल थे।
- मज़बूत नौसैनिक बेड़ा: चोलों के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी, जो व्यापार मार्गों की सुरक्षा और शक्ति प्रदर्शन के लिये आवश्यक थी।
- राजराजा प्रथम और राजेंद्र प्रथम जैसे शासकों के अधीन नौसैनिक अभियान चलाए गए।
- उदाहरण : 1025 ई. में राजेंद्र प्रथम के दक्षिण-पूर्व एशिया के नौसैनिक अभियान ने उनकी समुद्री ताकत का प्रदर्शन किया।
- आर्थिक नीतियाँ: चोलों ने अनुकूल नीतियों के माध्यम से समुद्री व्यापार को प्रोत्साहित किया। उन्होंने व्यापार संघों की स्थापना की और व्यापारियों को सुरक्षा प्रदान की।
- राजनयिक संबंध: चोलों ने विभिन्न दक्षिण-पूर्व एशियाई राज्यों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखे। इन संबंधों से व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सुविधा हुई।
- उदाहरण : वर्तमान इंडोनेशिया में श्रीविजय साम्राज्य में राजनयिक मिशन भेजे गए थे ।
क्षेत्रीय व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रभाव
- व्यापार नेटवर्क का विस्तार: चोलों ने दक्षिण भारत को दक्षिण-पूर्व एशियाई बाजारों से जोड़ा। मसालों, वस्त्रों, बहुमूल्य पत्थरों और धातुओं का व्यापार फला-फूला।
- उदाहरण : इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में चोल सिक्कों की खोज व्यापक व्यापार नेटवर्क का संकेत देती है।
- सांस्कृतिक प्रसार: चोल प्रभाव के कारण दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति, धर्म और कला का प्रसार हुआ।
- इसने दक्षिण-पूर्व एशियाई समाजों के "भारतीयकरण" में योगदान दिया।
- वास्तुकला प्रभाव: चोल स्थापत्य शैली ने दक्षिण पूर्व एशियाई मंदिर वास्तुकला को प्रभावित किया।
- यह बात विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध मंदिरों के डिजाइन में स्पष्ट है ।
- उदाहरण : कंबोडिया में अंगकोरवाट के मंदिरों में चोल वास्तुकला का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।
- भाषाई प्रभाव: तमिल भाषा और साहित्य दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों में फैल गया। विभिन्न दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में तमिल भाषा में शिलालेख पाए गए हैं।
- उदाहरण : सुमात्रा में खोजे गए तमिल शिलालेख 11वीं शताब्दी के हैं।
निष्कर्ष:
चोल साम्राज्य का समुद्री प्रभुत्व रणनीतिक भौगोलिक लाभ, उन्नत नौसैनिक प्रौद्योगिकी, मज़बूत आर्थिक नीतियों और कूटनीतिक कौशल का परिणाम था। इस प्रभुत्व का क्षेत्रीय व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर दूरगामी प्रभाव पड़ा, जिसने दक्षिण पूर्व एशिया में एक स्थायी विरासत छोड़ी जो आज भी क्षेत्र की कला, वास्तुकला, धर्म और सांस्कृतिक प्रथाओं में दिखाई देती है।
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