भारत में मरुस्थलीय क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं की चर्चा करें और इन समस्याओं के समाधान के लिये उपाय बताएँ।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- भारत में मरुस्थल के वितरण को बताएँ।
- इन क्षेत्रों से संबद्ध समस्याओं की चर्चा करें।
- इनके निदान के लिये उपाय सुझाएँ।
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भारत के उत्तर एवं पश्चिमोत्तर भाग में मरुस्थल का विस्तार है। मरुस्थलीय क्षेत्रों को दो भागों- उष्ण (राजस्थान का थार का इलाका व कच्छ का रन) एवं शीत (लद्दाख क्षेत्र व हिमाचल में स्पीति घाटी) में विभाजित किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में घटित होने वाली समस्याएँ समय, अवस्थिति व भूवैज्ञानिक गतिविधियों के कारण परिवर्तित होती रहती हैं। चूँकि भारत में मरुस्थलों की अवस्थिति सीमावर्ती क्षेत्रों में है, अतः यहाँ पड़ोसी देशों से चल रहे मुद्दे संबद्ध हो जाते हैं। भूवैज्ञानिक कारकों से होने वाली समस्याओं में भूकंप, ज्वालामुखी आदि हो सकते हैं।
भारत के मरुस्थलीय क्षेत्रों से संबंधित खतरे निम्नलिखित हैं-
- भारत के मरुस्थलीय क्षेत्रों में उष्ण व शुष्क जलवायु की दशाएँ पाई जाती हैं। लद्दाख क्षेत्र एक वृष्टिछाया प्रदेश है इसलिये यहाँ वर्षा अत्यंत कम होती है। अतः स्पष्ट है कि इन क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक वर्ष सूखे की स्थिति बनी रहती है।
- भूकंप भी मरुस्थलीय क्षेत्रों में आने वाली प्रमुख समस्या है। वर्ष 2001 में कच्छ क्षेत्र में आये भूकंप से राजस्थान के बाड़मेर व जैसलमेर जैसे इलाके भी प्रभावित हुए थे। लेह व स्पीति घाटी भी भारतीय भूकंप ज़ोन-4 में अवस्थित है।
- हाल ही में बदलते मौसमीय दशाओं से मरुस्थलों में भी बाढ़ की स्थितियाँ देखने को मिल रही हैं। वर्ष 2006 और 2017 में बाड़मेर के कवास क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति से जनजीवन काफी अस्त-व्यस्त हो गया था। वर्ष 2010 में लेह क्षेत्र में भी बादल फटने से बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो गई थी।
- भारत के उष्ण मरुस्थलों में रेतीली आँधियों की समस्या बनी रहती है जो इन क्षेत्रों में सामान्य जन-जीवन को कठिन बना देती है।
उपर्युक्त समस्याओं के आलोक में निम्न कदम उठाए जा सकते हैं-
- सूखे की आवृति इन क्षेत्रों में सामान्य रूप से देखी जाती है। अतः व्यवस्थित रूप से सिंचाई सुविधाओं के विकास के साथ वर्षा का प्रबंधन भी अनिवार्य है। इनके माध्यम से सूखे और बाढ़ जैसी स्थितियों से निपटा जा सकता है।
- भूकंप से सुरक्षा के लिये यहाँ के निवासियों को रेट्रोफिटिंग और भूकंप रोधी निर्माण के बारे में जागरुक करना अनिवार्य है।
- रेतीली आँधियो से बचाव के लिये वनस्पतियों का आवरण महत्त्वपूर्ण हो सकता है। साथ ही मकान बनाते समय एयर फिल्ट्रेशन तकनीक के माध्यम से भी इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- साथ ही विभिन्न प्रकार की आपदाओं से निपटने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के सहयोग से जिला और ग्रामीण स्तर पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।