प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव के प्रमुख उद्देश्यों एवं अभिलक्षणों की चर्चा करें। भारत के जनजातीय समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक समावेशन में इसकी भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में जनजातियों का महत्त्व बताते हुए राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव को संक्षेप में लिखें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव के उद्देश्यों को बताते हुए महोत्सव के विभिन्न अभिलक्षणों की चर्चा करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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जनजाति एक राष्ट्र की धरोहर होती है। यह प्राचीन ज्ञान व संस्कृति को अपने जीवंत रूप में परिरक्षित करने और उसे निरंतरता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण है। इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अक्तूबर 2016 में प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव का आयोजन किया।
प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव के आयोजन के उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से इंगित किया जा सकता हैः
- जनजातियों में समावेशिता की भावना का विकास करना।
- जनजातीय समूहों के सांस्कृतिक विशेषणों तथा विभिन्न पहलुओं को वृहद् स्तर पर प्रदर्शित करना।
- जनजातियों की परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा कौशल को बढ़ावा देना तथा उनका परिरक्षण करना।
- इसके अतिरिक्त आम जनता और जनजातीय समुदायों के मध्य संपर्क को बढ़ाना भी महोत्सव का लक्ष्य था।
- जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान का देश के समग्र विकास, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण आदि क्षेत्रों में इस्तेमाल करना।
राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव के अभिलक्षण निम्नलिखित हैं-
- महोत्सव में 1600 जनजातीय कलाकारों तथा लगभग 8000 जनजातीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- इसके अतिरिक्त कला, साहित्य, खेल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में प्रख्यात जनजातीय व्यक्तित्वों ने भी भाग लिया।
- महोत्सव में जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं से संबंधित दस्तावेज़, कलाकृतियाँ तथा अन्य प्रदर्शनियाँ आयोजित की गईं।
महोत्सव की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें जनजातियों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 तथा पेसा अधिनियम, 1996 की जानकारी देने के लिये कार्यशालाओं का आयोजन किया गया।
इस प्रकार प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव ने देश की जनजातियों के विशिष्ट लक्षण तथा विरासत की अभिवृद्धि के लिये अद्वितीय और अभूतपूर्व भूमिका निभाई है।