भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परिदृश्य पर चर्चा कीजिये। एक स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों एवं अवसरों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारत में अपशिष्ट परिदृश्य का संक्षेप में विवरण दीजिये।
- भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- सतत् अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली प्राप्त करने के अवसरों पर प्रकाश डालिये।
- भारत में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) के अनुसार, भारत नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) उत्पन्न करने वाले विश्व के शीर्ष 10 देशों में से एक है, जो सालाना 62 मिलियन टन से अधिक उत्पादन करता है। इसमें से केवल 43 मिलियन टन एकत्र किया जाता है, केवल 12 मिलियन टन का उपचार किया जाता है, जिससे 31 मिलियन टन अनुचित तरीके से त्याग दिया जाता है। जर्नल ऑफ अर्बन मैनेजमेंट के 2021 के एक अध्ययन में बताया गया है कि इस कचरे में 7.9 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट और 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट शामिल हैं। चूंकि 2030 तक अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 165 मिलियन टन होने का अनुमान है , इसलिये देश को स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य भाग:
सतत् अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली प्राप्त करने में चुनौतियाँ
- बुनियादी ढाँचा और वित्तीय बाधाएं
- भारत को अपशिष्ट संग्रहण, पृथक्करण और प्रसंस्करण के लिये पुराने या अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जहां जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण विकास की गति से अधिक है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर बुनियादी अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की कमी होती है, जिसके कारण खुले में जलाने या डंपिंग जैसे पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता बनी रहती है।
- नगर पालिकाओं में वित्तीय बाधाओं के कारण आधुनिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों में निवेश नहीं हो पाता, जिसके कारण अपशिष्ट संग्रहण और प्रसंस्करण अकुशल हो जाता है।
- जन जागरूकता और भागीदारी
- स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण के महत्त्व के बारे में सीमित सार्वजनिक समझ के परिणामस्वरूप मिश्रित अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका प्रसंस्करण चुनौतीपूर्ण होता है।
- उचित अपशिष्ट निपटान प्रथाओं पर अपर्याप्त शिक्षा, पुनर्चक्रण सुविधाओं तक सीमित पहुँच और प्रोत्साहन की कमी के कारण अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में व्यापक उदासीनता या ज्ञान की कमी होती है।
- तकनीकी सीमाएँ और विविध अपशिष्ट धाराएँ
- खुले में कूड़ा फेंकना और उचित उत्सर्जन नियंत्रण के बिना जला देना जैसी पुरानी अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता, प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों को बढ़ाती है।
- भारत विविध प्रकार के अपशिष्टों से जूझ रहा है, जिनमें घरेलू, औद्योगिक, ई-कचरा और जैव-चिकित्सा अपशिष्ट शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक के प्रभावी प्रबंधन के लिये विशिष्ट दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र और भूमि की कमी से जुड़ी चुनौतियाँ
- भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र, सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों का सामना कर रहा है तथा इसे औपचारिक मान्यता और समर्थन का अभाव है।
- शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट निपटान के लिये भूमि की कमी अपशिष्ट के प्रबंधन और सतत् उपचार को और अधिक जटिल बना देती है, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया में भूमि एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बन जाती है।
सतत् अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली प्राप्त करने के अवसर
- चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं के माध्यम से संसाधनों के रूप में अपशिष्ट का उपयोग
- पुनर्चक्रण, पुनःउपयोग और संसाधन पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देकर अपशिष्ट को एक संसाधन के रूप में महत्त्व देने से अपशिष्ट के बोझ को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, बैंगलोर के शुष्क अपशिष्ट संग्रहण केंद्र (डीडब्ल्यूसीसी) गैर-जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करते हैं, स्रोत पर पृथक्करण में सुधार करते हैं और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देते हैं।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) के कार्यान्वयन से यह सुनिश्चित होता है कि निर्माता अपने उत्पादों के संपूर्ण जीवनचक्र की जिम्मेदारी लें, जिससे सतत् अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा मिले ।
- विनियामक ढाँचे और नीतिगत पहलों को मजबूत करना
- एक मजबूत नियामक प्राधिकरण की स्थापना और स्वच्छ भारत मिशन जैसी नीतियों को बढ़ावा देने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, प्रदर्शन मानकों को लागू किया जा सकता है और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे में सुधार किया जा सकता है।
- इंदौर के स्वच्छतम शहर अभियान की सफलता, जिसमें 100% डोर-टू-डोर संग्रहण और अपशिष्ट पृथक्करण का सख्त प्रवर्तन शामिल है, स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के उच्च मानकों को प्राप्त करने में मजबूत नीतिगत ढाँचे की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करती है।
- सतत वित्तपोषण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी)
- धन जुटाने के लिये अपशिष्ट कर लागू करने और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करने से कुशल अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक विशेषज्ञता, प्रौद्योगिकी और निवेश लाया जा सकता है।
- पुणे की स्वच्छ सहकारी संस्था, जो कचरा बीनने वालों की भागीदारी वाली एक संस्था है, यह दर्शाती है कि किस प्रकार वित्तीय सहायता के साथ समुदाय-संचालित मॉडल के माध्यम से लैंडफिल में भेजे जाने वाले कचरे में महत्त्वपूर्ण कमी लाई जा सकती है तथा पुनर्चक्रण दर में सुधार लाया जा सकता है।
- अपशिष्ट से ऊर्जा में तकनीकी प्रगति
- अपशिष्ट से ऊर्जा बनाने वाली प्रौद्योगिकियों में निवेश करने से गैर-पुनर्चक्रणीय अपशिष्ट को मूल्यवान ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे लैंडफिल का उपयोग कम हो सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
- अलप्पुझा की शून्य अपशिष्ट पहल, जिसका फोकस कम्पोस्ट बनाने और विकेन्द्रित अपशिष्ट प्रबंधन पर है, इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी और स्थानीय पद्धतियां पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देते हुए लैंडफिल पर निर्भरता को काफी हद तक कम कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, बायो-बीन, एक यूके-आधारित स्टार्टअप है जो कॉफी के अवशेषों को जैव-ईंधन में परिवर्तित करता है। उन्होंने सफलतापूर्वक एक अपशिष्ट उत्पाद को एक मूल्यवान ऊर्जा स्रोत में बदल दिया है, जो अपशिष्ट को धन में बदलने की क्षमता को दर्शाता है।
- सामुदायिक सहभागिता, शिक्षा और क्षमता निर्माण
- जागरूकता अभियानों और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने से अपशिष्ट का बेहतर पृथक्करण हो सकता है और अपशिष्ट उत्पादन में कमी आ सकती है।
- दीर्घकालिक स्थिरता के लिये अलप्पुझा के विकेन्द्रीकृत कम्पोस्ट कार्यक्रम जैसी जमीनी पहलों सहित सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण आवश्यक है।
- जैसा कि इंदौर में देखा गया, जन जागरूकता अभियान भी स्वच्छता बनाए रखने और प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में अपशिष्ट प्रणाली में सुधार के लिये सुझाव
- जन जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी को मजबूत करें निरंतर संवेदीकरण कार्यक्रमों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से जनता को शामिल करें। स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण को प्रोत्साहित करना और कूड़ा-कचरा कम करना अपशिष्ट प्रबंधन में काफी सुधार कर सकता है।
- पश्चिम बंगाल के एक विरासत शहर में यह आंदोलन इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार जन भागीदारी से अपशिष्ट प्रबंधन में बदलाव लाया जा सकता है तथा स्वच्छ शहरों का निर्माण किया जा सकता है।
- क्षेत्र-विशिष्ट और निचले स्तर की योजना अपनाएँ भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विविध भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुरूप अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों को लागू करें। स्थानीय समुदायों, स्वयं सहायता समूहों और छोटे उद्यमियों को शामिल करके जमीनी स्तर की योजना बनाकर सतत् समाधान तैयार किए जा सकते हैं।
- केरल का विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल प्रभावी रूप से क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूरा करता है, तथा लैंडफिल पर निर्भरता को कम करता है।
- विनियामक ढाँचे और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना अपशिष्ट प्रबंधन विनियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये कानून और प्रवर्तन को मजबूत करना, तथा स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- मध्य प्रदेश के इंदौर में यह दर्शाया गया है कि किस प्रकार मजबूत विनियमन और निजी क्षेत्र के सहयोग से कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और सतत स्वच्छता को बढ़ावा मिल सकता है।
- सतत् वित्तपोषण और विकेन्द्रीकृत योजनाओं को बढ़ावा देना , स्थानीय आर्थिक स्थितियों के आधार पर अपशिष्ट संग्रहण शुल्क जैसे राजस्व सृजन तंत्र विकसित करना।
- बैंगलोर की "स्वच्छ बैंगलोर" जैसी विकेन्द्रीकृत योजनाएं अपशिष्ट प्रबंधन के लिये वित्तीय संसाधनों को बढ़ाती हैं, केंद्रीकृत प्रणालियों पर बोझ कम करती हैं और समग्र सेवा वितरण में सुधार करती हैं।
निष्कर्ष:
प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिये भारत का मार्ग चुनौतीपूर्ण है, लेकिन अभिनव समाधानों और दृढ़ प्रयासों से समृद्ध है। उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना और सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना एक स्वच्छ और अधिक सतत् भविष्य बनाने की कुंजी है। सफलता अपशिष्ट प्रबंधन संकट से निपटने और भविष्य की पीढ़ियों के लिये एक स्वस्थ वातावरण सुरक्षित करने के लिये सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिकों के सहयोगी प्रयासों पर निर्भर करती है।