"जलवायु परिवर्तन कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में उभरी है।" वैश्विक जलवायु वार्ता के संदर्भ में भारत की स्थिति एवं योगदान का मूल्यांकन करते हुए इससे संबंधित चुनौतियों तथा अवसरों पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जलवायु परिवर्तन कूटनीति को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की आधारशिला बताते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये
- वैश्विक जलवायु वार्ता में भारत की स्थिति और योगदान बताइये।
- इससे संबंधित चुनौतियों और अवसरों पर गहराई से विचार कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जलवायु परिवर्तन कूटनीति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की आधारशिला बन गई है, जिसमें भारत एक प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था और विकासशील देशों की आवाज के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- विश्व में ग्रीनहाउस गैसों के तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में, भारत का रुख वैश्विक जलवायु कार्रवाई को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, तथा इसकी विकासात्मक आवश्यकताओं को पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करता है।
मुख्य भाग:
वैश्विक जलवायु वार्ता में भारत की स्थिति और योगदान:
- समानता और जलवायु न्याय:
- भारत जलवायु कार्रवाई में समानता आधारित भार-साझाकरण की निरंतर वकालत करता रहा है।
- COP26 (2021) में, भारतीय प्रधान मंत्री ने टिकाऊ जीवन शैली पर जोर देते हुए "पर्यावरण के लिये जीवन शैली" (LiFE) की अवधारणा पेश की ।
- भारत विकसित देशों पर दबाव डाल रहा है कि वे शुद्ध-शून्य लक्ष्य से आगे बढ़कर " शुद्ध-नकारात्मक " उत्सर्जन प्राप्त करें ।
- महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य:
- ग्लासगो में आयोजित COP26 में भारत की पांच प्रतिबद्धताओं को पेरिस समझौते और दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास रणनीतियों के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में एकीकृत किया गया है , जिसका उद्देश्य 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है।
- वैश्विक पहल में नेतृत्व:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)
- आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई)
- प्रौद्योगिकी और नवाचार:
- ग्रीन ग्रिड पहल - एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड (GGI-OSOWOG): एक अंतरराष्ट्रीय बिजली ग्रिड बनाने के लिये COP26 में लॉन्च किया गया
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन: इसका उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना है
- हानि एवं क्षति कोष: COP27 में भारत ने कमजोर देशों के लिये "हानि एवं क्षति" कोष की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- केवल कोयला ही नहीं, बल्कि सभी जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने की आवश्यकता को बढ़ावा दिया
- जी20 प्रेसीडेंसी (2023): जलवायु कार्रवाई और सतत विकास को प्राथमिकता दी जाएगी
- टिकाऊ जैव ईंधन को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत की गई
- वैश्विक दक्षिण की आवाज़: भारत जलवायु वार्ता में विकासशील देशों के नेता के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है
- विकासशील देशों के परिवर्तनों का समर्थन करने के लिये जलवायु वित्त (अनुकूलन उपायों के लिये) और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की वकालत करना
चुनौतियाँ:
- वित्तीय बाधाएँ: जलवायु अनुकूलन और शमन उपायों को लागू करने के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- भारत विकसित देशों से जलवायु वित्त पोषण बढ़ाने की मांग कर रहा है, जो वार्ता में विवाद का विषय रहा है।
- तकनीकी सीमाएं: हरित प्रौद्योगिकियों तक पहुंच और उनकी सामर्थ्य अभी भी महत्वपूर्ण बाधाएं बनी हुई हैं।
- बौद्धिक संपदा अधिकार के मुद्दे अक्सर विकसित देशों से विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में बाधा डालते हैं।
- ऊर्जा परिवर्तन की जटिलताएं: ऊर्जा के लिये कोयले पर भारत की भारी निर्भरता, स्वच्छ स्रोतों पर परिवर्तन में चुनौतियां उत्पन्न करती है।
- कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के सामाजिक -आर्थिक प्रभाव, जिसमें नौकरियां खत्म होना भी शामिल है, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं।
- जलवायु प्रभावों के प्रति अनुकूलन: भारत का विविध भूगोल इसे विभिन्न जलवायु परिवर्तन प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाता है, जिसके लिये क्षेत्र-विशिष्ट अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
- सीमित संसाधनों के भीतर अनुकूलन और शमन प्रयासों में संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।
अवसर:
- नवीकरणीय ऊर्जा नेतृत्व: भारत के महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक नेता बनने का अवसर प्रस्तुत करते हैं।
- एक मजबूत घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग बनाने की क्षमता आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा दे सकती है।
- हरित प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन: हरित प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करके भारत को जलवायु समाधानों के नवप्रवर्तक और निर्यातक के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स और उद्यमियों के लिये अवसर आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
- जलवायु कूटनीति और सॉफ्ट पावर: आईएसए जैसी पहलों में भारत का नेतृत्व इसकी सॉफ्ट पावर और कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ाता है।
- जलवायु वार्ता में उत्तर-दक्षिण विभाजन को पाटने की क्षमता , जिससे भारत एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में स्थापित हो सकेगा।
- जलवायु-अनुकूल कृषि: जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों का विकास और कार्यान्वयन खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को बढ़ा सकता है।
- उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिये उपयुक्त टिकाऊ कृषि तकनीकों में वैश्विक नेता बनने की क्षमता ।
- कार्बन बाज़ार के अवसर: उत्सर्जन में कमी लाने की भारत की बड़ी क्षमता वैश्विक कार्बन बाज़ारों में अवसर प्रस्तुत करती है।
- एक मजबूत घरेलू कार्बन बाजार विकसित करने से अंतर्राष्ट्रीय निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आकर्षित हो सकता है।
निष्कर्ष:
जलवायु कूटनीति के प्रति भारत का दृष्टिकोण राष्ट्रीय विकास और वैश्विक पर्यावरण प्रबंधन के बीच जटिल संतुलन को दर्शाता है। कम कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करते हुए, भारत के पास सतत विकास में नेतृत्व करने के लिये अद्वितीय अवसर भी हैं। जैसे-जैसे जलवायु वार्ता विकसित होती है, एक न्यायसंगत और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु व्यवस्था बनाने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है।