निजता का अधिकार, न्यायिक व्याख्या के माध्यम से विकसित हुआ है। इस विकासक्रम पर प्रकाश डालते हुए डेटा संरक्षण एवं निगरानी जैसे समकालीन मुद्दों के संदर्भ में इसके निहितार्थों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- निजता का अधिकार की संवैधानिकता का उल्लेख करते हुए परिचय दें
- निजता का अधिकार के विकास पर गहन विचार करें
- डेटा संरक्षण और निगरानी से संबंधित समकालीन मुद्दों पर इसके निहितार्थों पर प्रकाश डालें
- उचित निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
भारत में निजता का अधिकार न्यायिक व्याख्या के माध्यम से महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है। शुरू में, संविधान में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन अब इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है । इस विकास का डेटा संरक्षण और राज्य निगरानी जैसे समकालीन मुद्दों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
मुख्य भाग:
निजता/गोपनीयता का अधिकार का विकास:
- प्रारंभिक व्याख्याएँ (1950-1960):
- एमपी शर्मा बनाम सतीश चंद्र (1954): सर्वोच्च न्यायालय ने तलाशी और जब्ती की प्रथा को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया कि गोपनीयता मौलिक अधिकार नहीं है ।
- खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1962) : न्यायालय ने पुलिस निगरानी की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि गोपनीयता एक गारंटीकृत संवैधानिक अधिकार नहीं है, हालांकि इसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा को स्वीकार किया।
- गोपनीयता अधिकारों का विस्तार (1970 का दशक):
- गोविंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1975): सर्वोच्च न्यायालय ने अमेरिकी न्यायशास्त्र से उधार लेते हुए " अनिवार्य राज्य हित" परीक्षण पेश किया।
- इसने गोपनीयता को मौलिक अधिकार माना , लेकिन व्यापक राज्य हितों के लिये इस पर उचित प्रतिबंध भी लगाए।
- सूचनात्मक गोपनीयता की मान्यता (1990 का दशक):
- पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1997): टेलीफोन टैपिंग के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के एक हिस्से के रूप में संचार की गोपनीयता को मान्यता दी।
- ऐतिहासिक निर्णय (2010):
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (2017): सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया।
- न्यायालय ने कहा कि गोपनीयता जीवन और स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है तथा इसमें व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा और सूचनात्मक आत्मनिर्णय शामिल है।
डेटा संरक्षण और निगरानी से संबंधित समकालीन मुद्दों पर निहितार्थ:
- बढ़ी हुई कॉर्पोरेट जिम्मेदारी: निजता के अधिकार के विकास ने कंपनियों को सख्त डेटा सुरक्षा उपाय अपनाने के लिये मजबूर किया है। अब डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के माध्यम से उन्हें अपने डेटा व्यवहारों के लिये जवाबदेह ठहराया जाता है , जिसमें उपयोगकर्ता और अदालतें गोपनीयता नीतियों की अधिक बारीकी से जांच करती हैं।
- सीमा-पार डेटा प्रवाह: गोपनीयता संबंधी विचार सीमा-पार डेटा स्थानांतरण के नियमों को नया रूप दे रहे हैं।
- 2022 में , भारत की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-In) ने निर्देश जारी किए, जिसमें VPN प्रदाताओं को उपयोगकर्ता डेटा संग्रहीत करने की आवश्यकता थी।
- सहमति और डेटा न्यूनीकरण: हाल की गोपनीयता व्याख्याएं सूचित सहमति और डेटा न्यूनीकरण पर जोर देती हैं।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023, इसे प्रतिबिंबित करता है, तथा डेटा संग्रह के लिये सख्त सहमति आवश्यकताओं और उद्देश्य सीमा का प्रस्ताव करता है।
- यह बदलाव हाल की प्रथाओं में स्पष्ट है, जैसे कि ऐप्स द्वारा अधिक विस्तृत गोपनीयता सेटिंग प्रदान करना और वेबसाइटों द्वारा कुकी नीतियों को अपडेट करना, जो उपयोगकर्ता-केंद्रित डेटा प्रथाओं की ओर बढ़ने का संकेत देता है।
- खुफिया जानकारी जुटाने पर निगरानी: निजता का अधिकारों ने खुफिया जानकारी जुटाने पर निगरानी पर बहस को बढ़ावा दिया है।
- 2021 के पेगासस स्पाइवेयर विवाद के कारण कथित अवैध निगरानी की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक समिति नियुक्त की गई।
- यह घटना राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं और व्यक्तिगत गोपनीयता के बीच बढ़ते तनाव को रेखांकित करती है, तथा खुफिया जानकारी जुटाने की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने पर जोर देती है।
निष्कर्ष:
भारत में निजता के अधिकार की न्यायिक व्याख्या एक अपरिचित अवधारणा से विकसित होकर एक मज़बूत मौलिक अधिकार बन गई है। इस विकास ने डेटा संरक्षण, निगरानी और तकनीकी प्रगति जैसे समकालीन मुद्दों पर दूरगामी प्रभाव डाला है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि डिजिटल युग में व्यक्तिगत गोपनीयता सुरक्षित रहे।