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प्रश्न :
भारत के बहुलवादी समाज के संदर्भ में अशोक के धम्म की समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
12 Aug, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
दृष्टिकोण:
- उत्तर को अशोक के धम्म के इतिहास का परिचित दीजिये।
- भारत के बहुलवादी समाज में अशोक के धम्म की समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
अशोक का धम्म उस नैतिक और आचार संहिता को संदर्भित करता है जिसे मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अपने शासनकाल के दौरान प्रचारित किया था । विनाशकारी कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया और अपने पूरे साम्राज्य में अहिंसा, करुणा, सहिष्णुता और सामाजिक कल्याण जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने की कोशिश की।
यह धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक असमानता और नैतिक शासन जैसे मुद्दों के समाधान के लिये शाश्वत सिद्धांत प्रस्तुत करके आधुनिक भारत के विविधतापूर्ण समाज में प्रासंगिक बना हुआ है।
मुख्य भाग:
भारत के बहुलवादी समाज में अशोक के धम्म की समकालीन प्रासंगिकता:
- अहिंसा और संघर्ष समाधान: आधुनिक भारत में सांप्रदायिक तनाव से लेकर क्षेत्रीय विवादों तक विभिन्न संघर्षों को संबोधित करने में धम्म में अहिंसा का सिद्धांत अत्यधिक प्रासंगिक है।
- उदाहरण : अंतर्राज्यीय जल विवादों को सुलझाने में संवाद और शांतिपूर्ण वार्ता का उपयोग, जैसे कि कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल मुद्दा, इस सिद्धांत को मूर्त रूप देता है।
- सामाजिक कल्याण और समावेशी विकास: अशोका का लोक कल्याण पर ध्यान भारत के विकासात्मक लक्ष्यों के अनुरूप है।
- सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों की देखभाल पर जोर विभिन्न सरकारी पहलों में परिलक्षित होता है।
- उदाहरण: आयुष्मान भारत योजना, जिसका उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है, सार्वजनिक कल्याण के प्रति अशोक की चिंता को प्रतिबिंबित करती है।
- पर्यावरण संरक्षण: अशोक के शिलालेखों में पशुओं और पौधों के संरक्षण का उल्लेख है, जो वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों के मद्देनजर विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- उदाहरण: वन क्षेत्र बढ़ाने और जैव विविधता की रक्षा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, जैसा कि प्रोजेक्ट टाइगर जैसी परियोजनाओं में देखा गया है, धम्म के इस पहलू के अनुरूप है ।
- धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता: सभी धर्मों के प्रति सम्मान पर अशोक का जोर भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के अनुरूप है।
- आज के भारत में, जहां कभी-कभी धार्मिक तनाव भड़क उठता है, धम्म के सिद्धांत अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये दिशानिर्देश के रूप में काम कर सकते हैं।
- उदाहरण: भारत भर में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और सरकारी निकायों द्वारा आयोजित अंतर्धार्मिक संवाद पहल, अशोक की धार्मिक सहिष्णुता की भावना को प्रतिबिंबित करती है।
- नैतिक शासन: धम्म के सिद्धांत न्यायपूर्ण और नैतिक शासन पर जोर देते हैं, जो आधुनिक भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिये महत्वपूर्ण है।
- उदाहरण: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, जो शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, अशोक द्वारा समर्थित नैतिक प्रशासन को प्रतिबिंबित करता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति: शांतिपूर्ण तरीकों से धम्म का प्रसार करने के लिये अशोक का दृष्टिकोण भारत की सॉफ्ट पावर कूटनीति को प्रेरित कर सकता है।
- उदाहरण : भारत द्वारा अपने सांस्कृतिक प्रसार के एक भाग के रूप में योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना , विचारों के शांतिपूर्ण प्रचार-प्रसार की अशोक की पद्धति की याद दिलाता है।
निष्कर्ष:
अशोक का धम्म आधुनिक भारत के बहुलवादी समाज में धार्मिक सहिष्णुता, नैतिक शासन, सामाजिक कल्याण और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिये एक रूपरेखा प्रदान करके प्रासंगिक बना हुआ है। इसके सिद्धांत भारत के संवैधानिक मूल्यों के साथ अच्छी तरह से मेल खाते हैं और विविधता में एकता बनाए रखने में समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर सकते हैं।
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