भारत की शहरी बाढ़ हेतु उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिये। सतत् शहरी नियोजन बाढ़ के प्रति अनुकूलन में किस प्रकार योगदान दे सकता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- शहरी बाढ़ को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में शहरी बाढ़ के कारण बताइये।
- बाढ़ के प्रति अनुकूलता हेतु धारणीय शहरी नियोजन पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
शहरी बाढ़ एक निर्मित परिवेश में, विशेष रूप से शहरों जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में, भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने की स्थिति है जो प्रायः तब उत्पन्न होती है जब वर्षा के कारण जलजमाव वहाँ की जल निकासी प्रणालियों की क्षमता पर भारी पड़ता है।
मुख्य भाग:
भारत में शहरी बाढ़ के कारण:
- जल निकासी प्रणालियों पर दबाव: भूमि की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता के कारण निचले शहरी इलाकों में झीलों, आर्द्रभूमि तथा नदी तलों के दबाव के परिणामस्वरूप इस समस्या में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन: इसके कारण निम्न अवधि में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च जल अपवाह की स्थिति बनती है।
- जब भी वर्षा-युक्त बादल अर्बन हीट आइलैंड के ऊपर से गुज़रते हैं तो वहाँ की गर्म हवा उन्हें ऊपर धकेल देती है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा होती है जो कभी-कभी उच्च तीव्रता के साथ भी हो सकती है।
- अनियोजित पर्यटन गतिविधियाँ: पर्यटन विकास के लिये आकर्षण के रूप में जल निकायों का उपयोग लंबे समय से किया जाता रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान नदियों तथा झीलों में गैर-जैव अपघटनीय पदार्थ फेंके जाने से जल की गुणवत्ता कम हो जाती है।
- बाढ़ की स्थिति में ये निलंबित कण और प्रदूषक शहरों में स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
- उदाहरण के लिये, केरल के कोल्लम में अष्टमुडी झील नावों से होने वाले तेल रिसाव से प्रदूषित हो गई है।
- बिना पूर्व चेतावनी बाँधों से जल छोड़ना: बाँधों और झीलों से अनियोजित तरीके से और अचानक जल छोड़े जाने से भी शहरी क्षेत्र में बाढ़ आती है, जहाँ लोगों को बचाव उपाय के लिये पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाता है।
- उदाहरण के लिये, चेंबरमबक्कम झील से जल छोड़े जाने के कारण वर्ष 2015 में चेन्नई में बाढ़ आई थी।
- हथनीकुंड बैराज से यमुना नदी में छोड़े गए 2 लाख क्यूसेक जल के कारण जुलाई 2023 में दिल्ली में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई थी।
- अवैध खनन: भवन निर्माण में उपयोग के लिये नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन के कारण नदियों एवं झीलों का प्राकृतिक तल नष्ट हो जाता है।
- इस कारण मृदा अपरदन होता है और यह जल प्रवाह की गति एवं पैमाने में वृद्धि करते हुए जलाशय की जलधारण क्षमता को कम करता है।
- उदाहरणत: जयसमंद झील- जोधपुर, कावेरी नदी- तमिलनाडु।
बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता हेतु धारणीय नियोजन:
- नील-हरित अवसंरचना का विकास करना: नील-हरित अवसंरचना (Blue Green Infrastructure) शहरी और जलवायु संबंधी चुनौतियों के लिये एक संवहनीय प्राकृतिक समाधान प्रदान करने का एक प्रभावी तरीका है।
- अधिक सुखद, कम तनावपूर्ण परिवेश के सृजन के लिये जल प्रबंधन और सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे के विकास पर एकसमान रूप से बल दिया जाना चाहिये।
- बाढ़ संवेदनशीलता मानचित्रण (Flood vulnerability Mapping): शहरी स्तर पर स्थलाकृति और बाढ़ के ऐतिहासिक आँकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है।
- शहर और ग्राम के स्तर पर सभी जल निकायों तथा आर्द्रभूमि का रिकॉर्ड बनाए रखना बाढ़ से बचने, उसका सामना कर सकने एवं लचीलापन पाने के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण होगा।
- प्रभावी वाटर-शेड प्रबंधन: फ्लड-वाल का निर्माण, बाढ़ प्रवण नदी घाटियों के किनारे ऊँचे प्लेटफॉर्म बनाना, जल निकासी चैनलों की समय-समय पर सफाई और उन्हें गहरा करना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें केवल शहरी क्षेत्रों के बजाय समग्र नदी बेसिन में अपनाया जाना चाहिये।
- सड़कों के किनारे बायोस्वेल (Bioswales) बनाए जा सकते हैं ताकि सड़कों से बारिश का जल उनकी ओर बहे और नीचे चला जाए।
- आपदा प्रत्यास्थी सार्वजनिक प्रतिष्ठान (Disaster Resilient Public Utility): अस्पतालों और स्कूलों जैसे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा भोजन, जल, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं को आपदा प्रत्यास्थी बनाया जाना चाहिये।
- उन्हें इस तरह स्थापित या पुनर्स्थापित किया जाना चाहिये कि वे बाढ़ के दौरान बिना किसी बाधा के कार्य करने में सक्षम बने रहें।
- संवेदीकरण और पुनर्वास: प्रतिक्रिया अभ्यासों (Response Drills) के साथ ही बाढ़ हेतु पूर्व-तैयारी और शमन उपायों के बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिये।
- अपवाहिकाओं और जल निकायों के किनारे अवैध निर्माण से संलग्न जोखिमों के बारे में निवासियों को जागरूक किया जाना आवश्यक है। सरकार को गरीबों को अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित करने पर भी विचार करना चाहिये।
- संस्थागत व्यवस्थाएँ: शहर स्तर पर एक एकीकृत बाढ़ नियंत्रण कार्यान्वयन एजेंसी का निर्माण करना आवश्यक है, जिसमें शहर के प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, पुलिस, अग्निशामक, गैर-सरकारी संगठन और अन्य आपातकालीन सेवा प्रदाता शामिल हों।
निष्कर्ष:
भारत में शहरी बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए सतत्, प्रकृति-आधारित शहरी नियोजन की आवश्यकता है, जो सतत् विकास लक्ष्य संख्या 6, 11 और 13 के अनुरूप हो। अनुकूली बुनियादी ढाँचे को अपनाने तथा सामुदायिक अनुकूलन को बढ़ावा देने के माध्यम से भारतीय शहर, बाढ़ अनुकूलन और सतत् विकास के मॉडल बन सकते हैं।