'किसी राष्ट्र की महानता और उसकी नैतिक प्रगति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ पशुओं के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है।'- महात्मा गांधी
भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक वास्तविकताओं के संदर्भ में पशु कल्याण के नैतिक आयामों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- महात्मा गांधी के कथन पर बल देते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- पशु कल्याण के नैतिक आयाम बताइये।
- सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक वास्तविकताएँ प्रस्तुत कीजिये।
- आगे बढ़ने का रास्ता सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
किसी सभ्यता का मापदंड केवल उसकी तकनीकी उन्नति या आर्थिक समृद्धि नहीं है, बल्कि हमारे बीच सबसे कमज़ोर लोगों के साथ उसका व्यवहार है।
महात्मा गांधी का यह कथन कि किसी राष्ट्र की नैतिक प्रगति उसके पशु कल्याण से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है, इस सत्य पर एक गहन प्रतिबिंब है।
भारत, आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं से परिपूर्ण देश है जो जीवन के सभी रूपों का सम्मान करता है किंतु पशु कल्याण के क्षेत्र में नैतिक प्रथाओं एवं चुनौतियों का एक जटिल जाल प्रस्तुत करता है।
मुख्य भाग:
पशु कल्याण के नैतिक आयाम
- अहिंसा और करुणा: भारत की अहिंसा की समृद्ध दार्शनिक परंपरा ने सभी सजीवों के प्रति करुणा के मूल्य को गहनता से समाहित किया है।
- गौ माता (गाय माता) की अवधारणा के रूप में गायों के प्रति श्रद्धा, इस लोकाचार का एक प्रमाण है।
- जैन समुदाय द्वारा छोटे से छोटे जीव को भी नुकसान पहुँचाने से बचने के लिये 'अपराग्रह' (अपरिग्रह) का अभ्यास इसका उदाहरण है।
- परस्पर जुड़ाव और पारिस्थितिक संतुलन: हिंदू और बौद्ध दर्शन सभी जीवन रूपों के परस्पर जुड़ाव पर ज़ोर देते हैं।
- पशुओं को पारिस्थितिक संतुलन का अभिन्न अंग माना जाता है और उनका कल्याण मानव समृद्धि के लिये आवश्यक है।
- उदाहरण: पवित्र उपवन और वन, जहाँ प्रायः विविध वन्यजीव रहते हैं, देवताओं के निवास के रूप में पूजनीय हैं।
- कर्त्तव्य और ज़िम्मेदारी: 'धर्म' (कर्त्तव्य) की अवधारणा सभी प्राणियों के प्रति नैतिक आचरण को अनिवार्य बनाती है।
- मनुष्यों को पृथ्वी और उसपर रहने वाले सभी सजीव-निर्जीवों का रक्षक माना जाता है।
- उदाहरण: कुछ क्षेत्रों में 'पशु-हत्या निवारण' (पशु वध की रोकथाम) की प्रथा पशुओं के प्रति कर्त्तव्य की भावना को दर्शाती है।
- सामाजिक न्याय और समानता: 'वसुधैव कुटुंबकम्' (समस्त संसार एक परिवार है) का सिद्धांत सभी जीवित प्राणियों तक व्याप्त हुआ है।
- पशु कल्याण स्वाभाविक रूप से सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह कमज़ोर/दुर्बल प्राणियों के शोषण को चुनौती देता है।
सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक वास्तविकताएँ
- सांस्कृतिक चुनौतियाँ: गहरी जड़ें जमाए हुए सांस्कृतिक प्रथाएँ जैसे: बैलों की लड़ाई और पशु बलि पशु कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं।
- कुछ पशुओं के संदर्भ में पारंपरिक मान्यताएँ, जैसे कि कुत्तों को अशुद्ध मानना, उनकी सुरक्षा में बाधा डालती हैं।
- उदाहरण: जल्लीकट्टू जैसे अनुष्ठानों में पशुओं का प्रयोग करने की प्रथा, पीड़ा का कारण बनते हुए भी, कुछ क्षेत्रों में जारी है।
- आर्थिक बाधाएँ: गरीबी और आर्थिक असमानताएँ प्रायः जीविका या लाभ के लिये पशुओं के शोषण का कारण बनती हैं।
- पशुओं की देखभाल के लिये संसाधनों की कमी और पशु कल्याण कानूनों का प्रवर्तन एक गंभीर मुद्दा है।
- उदाहरण: आर्थिक दबावों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बोझा ढोने वाले पशुओं से अत्यधिक काम लिया जाता है।
- कानूनी तंत्र और प्रवर्तन: हालाँकि भारत ने पशुओं की सुरक्षा के लिये कानून बनाए हैं, लेकिन प्रायः उनका पालन नहीं किया जाता है।
- भ्रष्टाचार और जनता में जागरूकता की कमी प्रभावी प्रवर्तन में बाधा डालती है।
- उदाहरण: हालाँकि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, मौजूद है लेकिन देश के कई हिस्सों में इसका सख्ती से क्रियान्वयन नहीं किया जाता है।
आगे की राह
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: कठोर दंड के साथ पशु कल्याण कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण है।
- जागरूकता बढ़ाना: पशु कल्याण के नैतिक आयामों और कानूनी ढाँचे के बारे में जनता को शिक्षित करना आवश्यक है।
- मानवीय विकल्पों को बढ़ावा देना: मनोरंजन, कृषि और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में मानवीय विकल्पों के विकास एवं इन्हें अपनाने को प्रोत्साहित करना।
- पशु कल्याण संगठनों को सशक्त बनाना: पशु कल्याण के लिये कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों का समर्थन करना और प्रभावी हस्तक्षेप के लिये उनके साथ सहयोग करना।
- विकास में पशु कल्याण को एकीकृत करना: विकास नीतियों और कार्यक्रमों में पशु कल्याण विचारों को शामिल करना।
निष्कर्ष:
वास्तव में करुण और प्रगतिशील राष्ट्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा पशुओं के साथ उसके व्यवहार से जुड़ी हुई है। अहिंसा, परस्पर जुड़ाव, कर्त्तव्य एवं सामाजिक न्याय के नैतिक सिद्धांतों को कायम रखते हुए, भारत एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकता है जहाँ पशु कल्याण को प्राथमिकता दी जाती है।