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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों और कृषि विकास को बढ़ावा देने की क्षमता पर विचार कीजिये। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये। (250 शब्द)

    31 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने दृष्टिकोण:

    • भारत के कृषि क्षेत्र के लिये खाद्य प्रसंस्करण के महत्त्व का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
    • भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाओं पर प्रकाश डालिये।
    • क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियों पर गहनता से विचार कीजिये।
    • आगे की राह सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत का कृषि क्षेत्र, जो इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, परिवर्तन के लिये तैयार है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इस परिवर्तन के लिये एक शक्तिशाली उत्प्रेरक के रूप में उभर रहा है।
    • भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का बाज़ार आकार वर्ष 2022 में 866 बिलियन अमरीकी डॉलर से वर्ष 2027 में 1,274 बिलियन अमेरीकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • कच्चे कृषि उत्पादों को मूल्यवर्द्धित उत्पादों में परिवर्तित करके, यह क्षेत्र किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है, रोज़गार के अवसर उत्पन्न कर सकता है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

    मुख्य भाग:

    भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावना:

    • मूल्य संवर्द्धन: कच्चे कृषि उत्पादों के मूल्य में वृद्धि जैसे कच्चे टमाटर को केचप या प्यूरी में बदलना उनके मूल्य को 20-30% तक बढ़ा देता है।
    • कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी: वर्तमान में, भारत में उचित भंडारण और प्रसंस्करण की कमी के कारण लगभग 30-40% फल और सब्ज़ियाँ का नुकसान होता है।
      • खाद्य प्रसंस्करण इन नुकसानों को काफी हद तक कम कर सकता है।
    • कृषि आय में वृद्धि: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की कीमतें अधिक होती हैं, जिससे किसानों को अपनी आय दोगुनी करने में लाभ होता है।
      • उदाहरण: प्रसंस्करण के लिये उपयुक्त विशिष्ट किस्मों (जैसे- लेज़ चिप्स के लिये आलू) के लिये अनुबंध खेती
    • निर्यात क्षमता: वर्ष 2021-22 के दौरान, भारत ने कुल कृषि निर्यात में 49.6 बिलियन अमेरीकी डॉलर दर्ज किये।
      • भारतीय व्यंजनों और स्वस्थ भोजन की बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, निर्यात वृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण गुंजाइश है।
    • प्रत्यक्ष रोज़गार: खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, पैकेजिंग और वितरण में। इस क्षेत्र में लगभग 1.93 मिलियन लोग सीधे तौर पर कार्यरत हैं, जिसे खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में वृद्धि के साथ और बढ़ाया जा सकता है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों में फूड पार्क स्थापित करने से स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते हैं। मेगा फूड पार्क योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोज़गार उत्पन्न किये हैं।
    • नवाचार और उत्पाद विकास: उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं, जैसे कि स्वस्थ, जैविक और सुविधाजनक खाद्य पदार्थों को ध्यान में रखते हुए नए उत्पाद विकसित करने में नवाचार की अपार संभावनाएँ हैं।
      • आधुनिक पैकेजिंग में पारंपरिक भारतीय पेय पदार्थों के साथ पेपर बोट की सफलता, नवोन्मेषी उत्पाद विकास की संभावना को दर्शाती है।
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:
      • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में 10% से भी कम उत्पाद कोल्ड चेन के माध्यम से जाते हैं, जबकि विकसित देशों में यह 85% है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों में खराब सड़क संपर्क के कारण पारगमन समय और उत्पाद खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • विखंडित आपूर्ति शृंखला और भंडारण: प्रत्यक्ष किसान-प्रसंस्करणकर्त्ता संपर्क की कमी से किसानों की आय और प्रसंस्करणकर्त्ताओं का गुणवत्ता पर नियंत्रण कम हो जाता है।
      • इस विखंडन के कारण मूल्य में अस्थिरता, गुणवत्ता में असंगति और मूल्य शृंखला में लाभ मार्जिन में कमी आती है।
      • किसानों और प्रसंस्करणकर्त्ताओं के बीच कई बिचौलिये होने से लागत में 15-20% की वृद्धि होती है।
    • गुणवत्ता और सुरक्षा मानक: भारत में कई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ गुणवत्ता प्रमाणन एजेंसियों के साथ पंजीकृत नहीं हैं, जिसके कारण खाद्य सुरक्षा विनियमों का अपर्याप्त कार्यान्वयन होता है, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में।
      • इससे निर्यात क्षमता और उपभोक्ता विश्वास प्रभावित होता है।
        • यूरोपीय संघ द्वारा 527 भारतीय खाद्य पदार्थों में कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए।
        • इसके अलावा, कारखाने में अस्वास्थ्यकर टमाटर सॉस उत्पादन के विभिन्न वीडियो सोशल मीडिया में प्रसारित हुए।
    • कुशल कार्यबल की कमी: खाद्य प्रसंस्करण में भारत के केवल 3% कार्यबल के पास औपचारिक प्रशिक्षण है। साथ ही खाद्य प्रौद्योगिकीविदों, पैकेजिंग विशेषज्ञों और कोल्ड चेन विशेषज्ञों की भी कमी है।
      • यह कौशल अंतर नवाचार और नई तकनीकों को अपनाने में बाधा डालता है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा कम होती है।
    • जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी: भारत के 54% लोग उच्च से लेकर अत्यंत उच्च जल तनाव का सामना कर रहे हैं। अनियमित मौसम फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
      • इससे कच्चे माल की आपूर्ति को खतरा होता है और प्रसंस्करणकर्त्ताओं के लिये मूल्य अस्थिरता बढ़ जाती है।
    • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन: खाद्य प्रसंस्करण से वार्षिक रूप से 50 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है और कुशल अपशिष्ट उपचार की कमी के कारण, इससे प्रदूषण होता है तथा संभावित उप-उत्पाद राजस्व की हानि होती है।

    आगे की राह

    • फार्म-टू-फोर्क एक्सप्रेस-वे: प्रमुख उत्पादन केंद्रों को उपभोग केंद्रों से जोड़ते हुए, खराब होने वाली वस्तुओं के लिये समर्पित लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर विकसित करना।
      • शिपमेंट के लिये वास्तविक समय ट्रैकिंग सिस्टम लागू करना, ताकि पारगमन समय कम हो और क्षमता में सुधार हो।
      • उत्पादों की कुशल आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रमुख कृषि क्षेत्रों में मल्टी-मॉडल परिवहन केंद्र स्थापित करना।
    • कोल्ड चैन क्रांति: कर छूट और सब्सिडी के माध्यम से शीत भंडारण सुविधाओं में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
      • विद्युत की कमी को दूर करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा से चलने वाली शीत भंडारण इकाइयों को बढ़ावा देना।
      • प्रमुख उत्पादन और उपभोग केंद्रों को जोड़ने वाली राष्ट्रीय शीत शृंखला केंद्र विकसित करना।
    • स्किल इंडिया, फीड इंडिया: उद्योग जगत के नेताओं के साथ साझेदारी में खाद्य प्रसंस्करण-विशिष्ट व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
      • देश भर में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में प्रशिक्षुता के अवसर उत्पन्न करना।
      • प्रारंभिक जागरूकता पैदा करने के लिये माध्यमिक विद्यालयों में खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम शुरू करना।
    • खाद्य सुरक्षा मानकों को बढ़ाना: विभिन्न स्तरों वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के लिये राष्ट्रव्यापी अनिवार्य गुणवत्ता प्रमाणन कार्यक्रम को बढ़ाना
      • SMEs को ISO 22,000 और HACCP जैसे अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त करने के लिये सब्सिडी प्रदान करना। खाद्य सुरक्षा मानकों और प्रामाणित उत्पादों के महत्त्व पर एक जन जागरूकता अभियान शुरू करना।
    • हरित प्रसंस्करण पहल: खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिए उनके पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर हरित रेटिंग प्रणाली लागू करना।
    • किसान-प्रसंस्करणकर्त्ता पुल: बिचौलियों को खत्म करने के लिये किसानों को सीधे प्रसंस्करणकर्त्ताओं से जोड़ने वाला ऐप-आधारित प्लेटफॉर्म विकसित करना।
      • अंतर्निहित गुणवत्ता नियंत्रण उपायों और उचित मूल्य निर्धारण तंत्रों के साथ अनुबंध कृषि को प्रोत्साहित करना।
      • सामूहिक सौदेबाज़ी और बेहतर बाज़ार पहुँच के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को बढ़ावा देना।
      • खाद्य प्रसंस्करण में उपयोग की जाने वाली फसलों के लिये विशेष रूप से कृषि विस्तार सेवाएँ स्थापित करना।
    • पैकेजिंग पावरहाउस: वित्तीय लाभों के माध्यम से खाद्य-ग्रेड पैकेजिंग सामग्री के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
      • बायोडिग्रेडेबल और सक्रिय पैकेजिंग समाधानों में अनुसंधान को बढ़ावा देना।
      • प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों में पैकेजिंग गुणवत्ता के लिये परीक्षण सुविधाएँ स्थापित करना।
      • ट्रेसेबिलिटी के लिये QR कोड जैसी स्मार्ट पैकेजिंग तकनीकों के लिये मानक विकसित करना।
    • खाद्य अपशिष्ट से धन: खाद्य अपशिष्ट पुनर्चक्रण और पुनर्चक्रण पहलों के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करना।
      • ऊर्जा उत्पादन के लिये खाद्य प्रसंस्करण अपशिष्ट का उपयोग करके बायोगैस संयंत्रों को बढ़ावा देना।
      • फलों के अपशिष्ट से प्राप्त पेक्टिन जैसे खाद्य विनिर्माण उपोत्पादों के लिये बाज़ार स्थापित करना।

    निष्कर्ष:

    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की पूरी क्षमता का उपयोग करना भारत की सतत् और समावेशी विकास की यात्रा के लिये महत्त्वपूर्ण है। भारत खाद्य अपव्यय को कम करने (SDG 12), कृषि उत्पादकता बढ़ाने (SGD 2), अच्छे रोज़गार के अवसर पैदा करने (SDG 8) और पोषण मानकों में सुधार (SDG 2 और 3) में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकता है।

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