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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय समाज और संस्कृति पर उपभोक्तावाद के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। इसने उपभोग प्रतिरूप, जीवन शैली और सामाजिक आकांक्षाओं को किस प्रकार से नया रूप प्रदान किया? (150 शब्द)

    29 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में उपभोक्तावाद के आगमन का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • उल्लेख कीजिये कि उपभोक्तावाद किस प्रकार उपभोग पैटर्न को नया आकार दे रहा है।
    • इस बात पर गहराई से विचार कीजिये कि उपभोक्तावाद किस प्रकार जीवनशैली को बदल रहा है।
    • इस बात पर प्रकाश डालिये कि उपभोक्तावाद किस प्रकार सामाजिक आकांक्षाओं को बदल रहा है।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारत में वर्ष 1991 के आर्थिक उदारीकरण से तीव्र उपभोक्तावाद के आगमन ने राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को मौलिक रूप से बदल दिया है।

    यह बदलाव वैश्विक बाज़ार शक्तियों, बदलती आर्थिक नीतियों और विकसित होते सांस्कृतिक मानदंडों के बीच जटिल अंतसंबंध को दर्शाता है।

    मुख्य भाग:

    उपभोक्तावाद उपभोग पैटर्न को नया आकार दे रहा है:

    • मितव्ययिता से भोग-विलासिता की ओर: खर्च और संतुष्टि की संस्कृति मितव्ययिता और बचत के पारंपरिक सिद्धांतों की जगह ले रही है।
      • भारत की घरेलू बचत दर 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद के 22.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में 18.4% हो गई है, जो उपभोग की ओर बदलाव का संकेत है।
    • आकांक्षात्मक उपभोग में वृद्धि: उपभोग अब केवल आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि सामाजिक स्थिति और पहचान को प्रदर्शित करने तक सीमित रह गया है।
      • अनुमान है कि भारत में लक्जरी सामान बाज़ार का राजस्व वर्ष 2024 तक 7.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो कई विकसित बाज़ारों से आगे होगा।
    • विलासिता का लोकतंत्रीकरण: पहले विशिष्ट उत्पाद अब EMI और किफायती विलासिता खंडों के माध्यम से मध्यम वर्ग के लिये सुलभ हैं।
      • इससे उपभोग पैटर्न के आधार पर वर्ग भेद अस्पष्ट हो गया है।
    • डिजिटल उपभोग क्रांति: ई-कॉमर्स ने विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में खरीदारी व्यवहार को बदल दिया है।
      • भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार वर्ष 2026 तक 200 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो वर्ष 2017 में 38.5 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
    • भोजन की खपत में बदलाव: घर में पकाए गए भोजन की जगह पैकेज्ड और रेस्तरां के भोजन की ओर बढ़ना।
      • इसने जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों में वृद्धि में योगदान दिया है, भारत में मधुमेह का प्रसार वर्ष 2009 में 7.1% से बढ़कर वर्ष 2019 में 8.9% हो गया है।

    जीवनशैली में परिवर्तन:

    • बदलती पारिवारिक संरचना: एकल परिवार आदर्श बनते जा रहे हैं, जिससे घरेलू उपभोग की गतिशीलता में बदलाव आ रहा है।
      • इसके परिणामस्वरूप घरेलू उपकरणों और सुविधाजनक उत्पादों के बाज़ार में तेज़ी आई है।
    • समय एक वस्तु के रूप में: अवकाश के समय के बढ़ते मूल्य ने सेवा अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है। इसके कारण सेवा क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान देता है।
    • दैनिक जीवन में प्रौद्योगिकी एकीकरण: स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुँच ने भारतीयों के संवाद, कार्य एवं मनोरंजन के तरीके को बदल दिया है।
      • 2023 में भारत में इंटरनेट की पहुँच वर्ष-दर-वर्ष 8% बढ़ेगी।
    • स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान: स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता ने जैविक खाद्य पदार्थों, फिटनेस उपकरणों तथा कल्याण सेवाओं के लिये नए बाज़ार उत्पन्न किये हैं।
      • IMARC की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जैविक खाद्य बाज़ार में वर्ष 2022-2027 के दौरान 25.25% की CAGR प्रदर्शित होने की उम्मीद है।

    सामाजिक आकांक्षाओं में बदलाव:

    • कॅरियर विकल्प और उद्यमिता: नौकरी की सुरक्षा से उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाले कॅरियर विकल्पों की ओर बदलाव।
      • भारत 1.25 लाख से अधिक स्टार्टअप और 110 यूनिकॉर्न के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बनकर उभरा है, जो बदलती आकांक्षाओं को दर्शाता है।
    • सफलता की पुनर्परिभाषा: सफलता को अब आध्यात्मिक या बौद्धिक उपलब्धियों के बजाय भौतिक दृष्टि से मापा जाने लगा है।
      • इससे तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि हुई हैं तथा भारत में 60 से 70 मिलियन से अधिक लोग मानसिक विकार से ग्रस्त हैं।
    • वैश्विक नागरिकता आकांक्षाएँ: अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों और अनुभवों के उपभोग के माध्यम से वैश्विक नागरिक के रूप में देखे जाने की इच्छा।
      • इससे भारतीय संस्कृति का संकरीकरण हुआ है तथा वैश्विक प्रवृत्तियों और स्थानीय परंपराओं का सम्मिश्रण हुआ है।

    निष्कर्ष:

    उपभोक्तावाद ने निस्संदेह भारतीय समाज और संस्कृति को बदल दिया है। हालाँकि इसने आर्थिक विकास में योगदान दिया है तथा कुछ लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया है, लेकिन इसने चुनौतियाँ भी पैदा की हैं। ज़िम्मेदार उपभोग एवं टिकाऊ जीवनशैली की संस्कृति को बढ़ावा देना व्यक्तियों व समाज की दीर्घकालिक भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण है।

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