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प्रश्न :
"आपदा प्रतिरोधी आजीविका" की अवधारणा का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में इसे कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
24 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आपदा प्रतिरोधी आजीविका को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- आपदा प्रतिरोधी आजीविका की ताकत और सीमाओं पर प्रकाश डालिये।
- भारत के आपदा-प्रवण क्षेत्रों में आपदा प्रतिरोधी आजीविका को बढ़ावा देने के उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
"आपदा-रोधी आजीविका" की अवधारणा से तात्पर्य व्यक्तियों और समुदायों की आपदाओं के सामने अपनी आजीविका को बनाए रखने या शीघ्रता से पुनः प्राप्त करने की क्षमता से है।
- अनुकूलन क्षमता: संभावित क्षति के प्रति समायोजन करने और परिणामों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता।
- अवशोषण क्षमता: संघर्ष और दबावों को अवशोषित करने की क्षमता।
- परिवर्तनकारी क्षमता: जब मौजूदा स्थितियाँ असहनीय हों तो नई प्रणालियाँ बनाने की क्षमता।
मुख्य भाग:
आपदा-प्रतिरोधी आजीविका की शक्ति और सीमाएँ:
- शक्ति:
- समग्र दृष्टिकोण: सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय आयामों को एकीकृत करता है।
- सक्रिय रुख: आपदा के बाद की प्रतिक्रिया के बजाय आपदा-पूर्व तैयारी पर ध्यान केंद्रित करता है।
- सतत् विकास: सतत् विकास लक्ष्यों, विशेषकर लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन) और लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) के साथ संरेखित है।
- सामुदायिक सशक्तिकरण: स्थानीय ज्ञान और भागीदारी पर ज़ोर दिया जाता है।
- सीमाएँ:
- जटिलता: इसके लिये अनेक क्षेत्रों और हितधारकों के बीच जटिल समन्वय की आवश्यकता होती है।
- संसाधन-गहन: महत्त्वपूर्ण वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधनों की मांग करता है।
- संदर्भ-विशिष्टता: समाधान विविध भौगोलिक क्षेत्रों में सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं हो सकते हैं।
- मापन चुनौतियाँ: लचीलेपन और प्रगति को मापने में कठिनाई।
- दुरनुकूलन (Maladaptation) की संभावना: खराब तरीके से क्रियान्वित की गई रणनीतियाँ अनजाने में भेद्यता को बढ़ा सकती हैं।
भारत के आपदा-प्रवण क्षेत्रों में आपदा-रोधी आजीविका को बढ़ावा देना:
- वित्तीय सेवाओं तक पहुँच:
- आपदा-प्रवण समुदायों की आवश्यकताओं के अनुरूप माइक्रोफाइनेंस और बीमा उत्पाद उपलब्ध कराना।
- आपदा के बाद समुदायों की सहायता के लिये आपातकालीन निधि और बचत योजनाएँ स्थापित करना।
- पुनर्निर्माण और आजीविका बहाली के लिये कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना।
- जोखिम मूल्यांकन और मानचित्रण:
- वास्तविक समय आपदा जोखिम निगरानी के लिये आपातकालीन प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय डेटाबेस (NDEM) को कार्यान्वित करना।
- विस्तृत भेद्यता मानचित्रण (उदाहरणतः बाढ़ के खतरे वाले क्षेत्रीकरण हेतु इसरो का भुवन प्लेटफॉर्म) के लिये उपग्रह इमेजरी और GIS का उपयोग करना ।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि:
- सूखा-प्रतिरोधी फसल किस्मों (उदाहरण के लिये ICAR की सूखा-सहिष्णु चना किस्में) को बढ़ावा देना।
- कृषि वानिकी (उदाहरण के लिये बुंदेलखंड क्षेत्र में ICRAF का कार्य) को प्रोत्साहित करना।
- आजीविका विविधीकरण:
- संवेदनशील क्षेत्रों में इको-पर्यटन (जैसे- लद्दाख में हिमालयन होमस्टे कार्यक्रम) को प्रोत्साहित करना।
- वित्तीय समावेशन और जोखिम हस्तांतरण:
- तेज़ी से दावा निपटान (उदाहरण के लिये महाराष्ट्र में बीड मॉडल) के साथ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का कवरेज बढ़ाना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- बाढ़ प्रबंधन (उदाहरणतः केरल में रूम फॉर रिवर परियोजना) के लिये प्रकृति-आधारित समाधान लागू करना ।
- तकनीकी एकीकरण:
- आपदा पूर्वानुमान (उदाहरणतः पटना में गूगल की बाढ़ पूर्वानुमान पहल) के लिये AI और बड़े डेटा का उपयोग करना।
- आपदा संचार (जैसे- NDMA का सेफ्टीपिन ऐप) के लिये मोबाइल ऐप्स को बढ़ावा देना।
- स्थानीय शासन को सुदृढ़ बनाना:
- शहरों में शहरी जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रमों (उदाहरणतः भारत के 56 शहरों में UNDP की शहरी जोखिम न्यूनीकरण परियोजना) को लागू करना।
निष्कर्ष:
भारत के संवेदनशील क्षेत्रों के लिये आपदा-प्रतिरोधी आजीविका को बढ़ावा देना आवश्यक है। नीति, आजीविका विविधीकरण, सामाजिक सुरक्षा, संसाधन पहुँच, बुनियादी ढाँचे के विकास और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को शामिल करने वाला एक व्यापक दृष्टिकोण लचीले समुदायों के निर्माण तथा आजीविका की सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण है।
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