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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वैश्विक बाज़ार में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। प्रतिस्पर्द्धा के स्तर में वृद्धि के लिये कौन-सी युक्तियाँ अपनाई जा सकती हैं? (250 शब्द)

    24 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति के संबंध में संक्षेप में बताकर उत्तर दीजिये।
    • वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर गहनता से विचार कीजिये।
    • प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों का सुझाव दीजिये।
    • सकारात्मक निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, विनिर्माण भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में सबसे आगे रहा, जिसने पिछले दशक में 5.2% की औसत वार्षिक वृद्धि दर हासिल की, जिसमें भारत के कुल कार्यबल का 11.4% कार्यरत था।

    • हालाँकि इस क्षेत्र को बहुमुखी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो वैश्विक बाज़ार में इसकी पूरी क्षमता को बाधित करती हैं।

    मुख्य भाग:

    वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ:

    • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
      • अपर्याप्त विद्युत आपूर्ति और बार-बार बिजली कटौती: कई विनिर्माण इकाइयों को नियमित रूप से बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उत्पादन में देरी होती है और डीजल जनरेटर के कारण लागत बढ़ जाती है।
      • खराब परिवहन नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत (GDP का 14%) विकसित देशों (8-10%) की तुलना में काफी अधिक है।
        • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022 का उद्देश्य इस समस्या का समाधान करना है, लेकिन कार्यान्वयन एक चुनौती बनी हुई है।
      • आधुनिक बंदरगाहों और हवाई अड्डों तक सीमित पहुँच: सुधारों के बावजूद, भारत का बंदरगाह बुनियादी ढाँचा वैश्विक मानकों से पीछे है।
        • भारतीय बंदरगाहों पर जहाज़ों का औसत टर्नअराउंड समय 2.1 दिन है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित हो रही है।
    • कौशल अंतर:
      • कुशल कार्यबल की कमी: भारत के केवल 4.7% कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि दक्षिण कोरिया में यह आँकड़ा 96% है।
        • इससे विनिर्माण में उत्पादकता कम होती है और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ पैदा होती हैं।
      • उद्योग की आवश्यकताओं और उपलब्ध कौशल के बीच बेमेल: तेज़ी से विकसित हो रहे विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों के साथ, रोबोटिक्स, AI तथा डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रासंगिक कौशल वाले श्रमिकों की कमी का सामना कर रहा है।
      • व्यावसायिक प्रशिक्षण पर अपर्याप्त ध्यान: कौशल भारत जैसी पहल के बावजूद, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (Industrial Training Institutes- ITI) में नामांकन उद्योग की मांग के अनुरूप नहीं रहा है।
    • विनियामक बाधाएँ:
      • जटिल श्रम कानून: चार श्रम संहिताओं (मज़दूरी संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता) के कार्यान्वयन में उनके जारी होने के बाद से देरी हो रही है, जिससे व्यवसायों के लिये अनिश्चितता पैदा हो रही है।
      • भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 ने किसानों के अधिकारों की रक्षा करते हुए, औद्योगिक उद्देश्यों के लिये भूमि अधिग्रहण को अधिक समय लेने वाला और महँगा बना दिया है।
    • वित्त और प्रौद्योगिकी अपनाने तक सीमित पहुँच:
      • MSME के लिये ऋण तक पहुँच में चुनौतियाँ: केवल 16% MSME के पास औपचारिक ऋण तक पहुँच है, जिससे उनकी वृद्धि और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा आ रही है।
      • कम अनुसंधान एवं विकास निवेश: सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय लगभग 0.7% है, जो चीन (2.4%) और अमेरिका (3.1%) की तुलना में काफी कम है।
        • इससे उच्च तकनीक विनिर्माण में नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
      • नवाचार पर अपर्याप्त ध्यान: वैश्विक नवाचार सूचकांक 2023 में भारत 40वें स्थान पर है, जो विनिर्माण प्रक्रियाओं और उत्पादों में नवाचार को बढ़ावा देने पर अधिक ज़ोर देने की आवश्यकता को दर्शाता है।

    प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने की रणनीतियाँ:

    • एक व्यापक राष्ट्रीय विनिर्माण रणनीति विकसित करना: आयरलैंड की तरह भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण (20-30 वर्ष) बनाना, जिसमें उभरती प्रौद्योगिकियों और भविष्य की वैश्विक मांगों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
      • एकीकृत 5G नेटवर्क, IoT पारिस्थितिकी तंत्र और उन्नत लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के साथ स्मार्ट विनिर्माण केंद्र विकसित करना।
      • विनिर्माण में AI और मशीन लर्निंग अनुप्रयोगों का समर्थन करने के लिये एक राष्ट्रीय डेटा अवसंरचना का निर्माण करना।
    • कौशल विकास में क्रांतिकारी बदलाव: उद्योग की ज़रूरतों को वास्तविक समय में उपलब्ध प्रतिभा के साथ मिलान करने के लिये एक राष्ट्रीय कौशल डेटाबेस विकसित करना।
      • लचीले, परियोजना-आधारित कुशल श्रम परिनियोजन की अनुमति देने के लिये गिग इकॉनमी प्लेटफार्मों को विनिर्माण के साथ एकीकृत कीजिये।
    • नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना: महत्त्वपूर्ण विनिर्माण समस्याओं को हल करने के लिये पर्याप्त पुरस्कारों के साथ क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार चुनौतियाँ स्थापित करना।
      • विनिर्माण में नवाचारों के व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये पेटेंट बॉक्स व्यवस्था विकसित करना।
    • वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: उच्च जोखिम, उच्च क्षमता वाले विनिर्माण स्टार्टअप को समर्थन देने के लिये विनिर्माण-केंद्रित उद्यम पूंजी कोष विकसित करना।
      • पूंजी-प्रधान परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक, स्थिर वित्तपोषण उपलब्ध कराने हेतु एक समर्पित विनिर्माण बॉण्ड बाज़ार का निर्माण करना।
    • वैश्विक एकीकरण को मज़बूत करना: विशिष्ट वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (जैसे- अर्द्धचालक, इलेक्ट्रिक वाहन) के साथ एकीकरण पर केंद्रित विशेषीकृत उभरती प्रौद्योगिकी क्षेत्रों का विकास करना।
      • गुणवत्ता और नवाचार पर ज़ोर देते हुए 'वोकल फॉर लोकल-लोकल टू ग्लोबल' बॉण्ड रणनीति बनाएं।
    • सतत् विनिर्माण को बढ़ावा देना: हरित प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने के लिये विनिर्माण क्षेत्र हेतु एक व्यापक कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र विकसित करना।
      • औद्योगिक सहजीवन और अपशिष्ट विनिमय को सुविधाजनक बनाने के लिये एक राष्ट्रीय वृत्ताकार अर्थव्यवस्था मंच का निर्माण करना।
      • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप हरित विनिर्माण मानक और प्रमाणन प्रक्रियाएँ स्थापित करना।

    निष्कर्ष:

    विनिर्माण उत्कृष्टता के लिये भारत का मार्ग भविष्य को समझने के साथ-साथ वर्तमान में आने वाली बाधाओं पर विजय पाने के बारे में है। बल्कि भविष्य पर अपनी पकड़ बनाने के संबंध में भी है। प्रस्तावित रणनीतियाँ, पीछे छूट जाने से लेकर नेतृत्व में छलांग (Leapfrogging) लगाने तक के प्रतिमान बदलाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह परिवर्तन केवल एक आर्थिक अनिवार्यता नहीं है, यह तकनीकी संप्रभुता, रोज़गार सृजन और सतत् विकास का मार्ग है।

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