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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वैश्विक दक्षिण में भारत की भूमिका का परीक्षण कर दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मज़बूत करने की संभावनाओं एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    23 Jul, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ग्लोबल साउथ में भारत की विशिष्ट स्थिति का परिचय दीजिये।
    • ग्लोबल साउथ में भारत के अग्रणी बनने के लिये प्रेरित करने वाले कारकों पर गहनता से विचार कीजिये।
    • इससे जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इस संबंध में भारत के पास मौजूद अवसरों का उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ग्लोबल साउथ में एक अद्वितीय स्थान रखता है। इसकी भूमिका प्रारंभ में एक प्राप्तकर्त्ता से लेकर वर्तमान में साउथ-साउथ सहयोग में एक प्रमुख अग्रणी के रूप में स्थापित होने तक विकसित हुई है।

    • यह परिवर्तन विकासशील देशों के बीच एकजुटता, इसकी आर्थिक प्रगति और अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था के लिये इसकी आकांक्षाओं के प्रति भारत की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता में निहित है।

    मुख्य भाग:

    ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका:

    • नेतृत्व और समर्थन: भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विकासशील देशों के लिये एक प्रमुख नेतृत्वकर्त्ता है, जो जलवायु कार्रवाई और संसाधनों तक समान अभिगम का समर्थन करता है।
      • यह संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, IMF और विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार के लिये सक्रिय रूप से प्रयास करता है।
      • अफ्रीकी संघ वर्ष 2023 में भारत की अध्यक्षता के दौरान G-20 का पूर्ण सदस्य बन गया, जिसका विषय “One Earth, One Family, One Future.” अर्थात् ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है।
      • भारत संयुक्त राष्ट्र में साउथ-साउथ सहयोग का भी समर्थन करता है, जिसे वर्ष 2017 में भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष की स्थापना द्वारा उजागर किया गया है।
    • विकास साझेदारी: भारत का भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम IT, ग्रामीण विकास, संसदीय मामलों तथा अन्य क्षेत्रों में क्षमता निर्माण पहलों के माध्यम से 160 से अधिक भागीदार देशों को लाभान्वित करता है।
      • इसने अफ्रीका और एशिया में बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के लिये 30 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की ऋण सहायता देने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसमें भूटान में पारे जलविद्युत संयंत्र (Pare Hydroelectric Plant) जैसी उल्लेखनीय परियोजनाएँ शामिल हैं।
      • भारत परियोजना-विशिष्ट सहायता भी प्रदान करता है, जैसे कि तेल रिफाइनरी निर्माण के लिये मंगोलिया को 1 बिलियन अमरीकी डॉलर की ऋण सहायता।
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत: भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत में सक्रिय रहा है, जैसा कि वैक्सीन मैत्री पहल द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
      • भारत ने वर्ष 2023 में तुर्की और सीरिया में भूकंप राहत के लिये ऑपरेशन दोस्त भी चलाया तथा तुरंत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की टीमों को तैनात किया।
      • चक्रवात राहत प्रयासों में वर्ष 2019 में चक्रवात ईदाई के बाद मोज़ाम्बिक में ऑपरेशन सहायता शामिल है।
    • आर्थिक सहयोग और व्यापार सुविधा: भारत ग्लोबल साउथ के भीतर व्यापार और निवेश को बढ़ावा देता है, पूरकताओं एवं पारस्परिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • जापान के साथ साझेदारी में एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर कनेक्टिविटी को बढ़ावा देता है और सतत् विकास को बढ़ावा देता है।
      • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के भीतर, भारत SAARC खाद्य बैंक और SAARC बीज बैंक जैसी पहलों का समर्थन करता है।

    साउथ-साउथ सहयोग को सुदृढ़ करने में चुनौतियाँ

    • विविध हित: ग्लोबल साउथ विभिन्न राष्ट्रों का एक समूह है जिसकी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थितियाँ विविध हैं।
      • सहयोग के लिये उनके हितों और प्राथमिकताओं को संरेखित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • राजनीतिक अस्थिरता और शासन संबंधी मुद्दे: दीर्घकालिक सहयोग को प्रभावित करने वाले लगातार शासन परिवर्तन
      • उदाहरण: नाइजर में हाल ही में हुए तख्तापलट ने क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित किया
    • संसाधन की कमी: कई ग्लोबल साउथ देशों को संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे साउथ-साउथ सहयोग में प्रभावी रूप से भाग लेने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • ग्लोबल नॉर्थ पर निर्भरता: ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्थाएँ अभी भी ग्लोबल नॉर्थ पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिससे पारंपरिक विकास भागीदारों पर निर्भरता कम करना मुश्किल हो जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, विशेष रूप से कनेक्टिविटी और डिजिटल क्षेत्रों में प्रभावी साउथ-साउथ सहयोग में बाधा डालता है।
    • संस्थागत तंत्रों का अभाव: साउथ-साउथ सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये मज़बूत संस्थागत ढाँचे अभी भी विकास के अधीन हैं।

    साउथ-साउथ सहयोग को मज़बूत करने के अवसर

    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और डिजिटल सहयोग: भारत अपनी तकनीकी प्रक्रिया को ग्लोबल साउथ के साथ साझा कर सकता है।
      • इसमें UPI, Aadhaar और CoWIN जैसी डिजिटल सार्वजनिक वस्तुएँ शामिल हैं।
      • देश AI, ब्लॉकचेन और क्वांटम कंप्यूटिंग पर संयुक्त अनुसंधान के माध्यम से उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करता है।
    • जलवायु परिवर्तन शमन और पर्यावरण सहयोग: भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन शमन में प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है।
      • भारत सतत् विकास में सर्वोत्तम प्रथाओं को भी साझा कर सकता है, जैसे कि LED बल्ब वितरण कार्यक्रम (UJALA)।
    • स्वास्थ्य सहयोग और फार्मास्युटिकल सहयोग: स्वास्थ्य सहयोग में भारत भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य विज्ञान मंच के माध्यम से उष्णकटिबंधीय और उपेक्षित रोग-उपचार पर संयुक्त अनुसंधान में संलग्न हो सकता है।
      • भारत अपनी टेलीमेडिसिन और ई-स्वास्थ्य पहलों, जैसे ई-संजीवनी को भी साझा कर सकता है।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सॉफ्ट पावर प्रक्षेपण: भारत प्रवासी युवाओं के लिये ‘नो इंडिया प्रोग्राम’ जैसी पहलों के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क एवं सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा दे सकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत साउथ-साउथ सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण नेतृत्वकर्त्ता हो सकता है। वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट जैसे मंच बेहतर सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं, चुनौतियों पर नियंत्रण पा सकते हैं और अवसरों का लाभ उठा सकते हैं, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार होगा तथा पूरे ग्लोबल साउथ को लाभ होगा।

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