भारत-फ्राँस संबंधों के महत्त्व तथा संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इनके बीच सहयोग बढ़ाने हेतु उपाय बताइए। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत-फ्राँस संबंधों के हालिया विकास का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत-फ्राँस संबंधों में महत्त्व और बाधाओं पर चर्चा कीजिये।
- उनके सहयोग को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।
- उचित निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
हाल ही में पेरिस में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत और फ्राँस ने ‘इंडिया-फ्राँस होराइज़न 2047 रोडमैप’ हेतु ‘ग्रह के लिये साझेदारी’ (Partnership for the Planet) को महत्त्वपूर्ण बताया तथा जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर परस्पर बढ़ते सहयोग को उजागर किया।
मुख्य भाग:
भारत-फ्राँस संबंधों का महत्त्व:
- हिंद-प्रशांत सुरक्षा: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने और इस क्षेत्र में चीनी आक्रामकता का मुकाबला करने में भारत के लिये फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण है। हिंद महासागर सहयोग के लिये भारत-फ्राँस संयुक्त रणनीतिक विज़न (2018) से इसकी पुष्टि होती है।
- पारस्परिक रणनीतिक स्वायत्तता: यह संबंध अद्वितीय रूप से संतुलित है, जो फ्राँस में एंग्लो-सैक्सन प्रभाव और भारत में पश्चिम-विरोधी भावनाओं से मुक्त है। इसके अलावा, मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद जब भारत ने स्वयं को परमाणु-हथियार संपन्न देश घोषित किया तो फ्राँस भारत के साथ बातचीत शुरू करने वाला पहला प्रमुख देश था।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में प्रवेश के लिये समर्थन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) जैसी प्रमुख संस्थाओं में शामिल होने की भारत की आकांक्षाओं के लिये फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण है।
- वैश्विक शक्ति संतुलन: भारत-फ्राँस साझेदारी यूरोप में रूसी प्रभाव और एशिया में चीनी प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा वैश्विक स्थिरता एवं संतुलित विश्व व्यवस्था में योगदान देती है।
- रक्षा सहयोग: प्रबल रणनीतिक साझेदारी एवं सहयोग के माध्यम से फ्राँस भारत के रक्षा क्षेत्र के लिये व्यापक महत्त्व रखता है। फ्राँस से राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के साथ ही फ्राँस और भारत संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सहयोग में संलग्न हैं।
- भविष्योन्मुखी सहयोग: होराइज़न 2047 समझौता द्विपक्षीय सहयोग के लिये 25 वर्ष का रोडमैप प्रस्तुत करता है। यह सुपरकंप्यूटिंग, AI और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उन्नत तकनीकों में सहयोग पर बल देता है, जो भारत के भविष्य के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत-फ्राँस संबंधों से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ:
- आर्थिक सीमाएँ:
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का अभाव गहरे आर्थिक संबंधों में बाधा उत्पन्न करता है तथा भारत-यूरोपीय संघ व्यापक व्यापार एवं निवेश समझौते (India-EU Broad-based Trade and Investment Agreement- BTIA) पर प्रगति रुक गई है, जिससे आगे और आर्थिक एकीकरण की संभावना सीमित हो गई है।
- व्यापार और बौद्धिक संपदा संबंधी मुद्दे:
- व्यापार असंतुलन फ्राँस के पक्ष में झुका हुआ है, जहाँ भारत को अधिक निर्यात किया जाता है। इसके अलावा, फ्राँस ने भारत में फ्राँसीसी व्यवसायों के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रायः अपर्याप्त संरक्षण के बारे में चिंता व्यक्त की है।
- कुछ वार्तागत परियोजनाओं को परिचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे- जैतापुर परमाणु परियोजना।
- भिन्न भू-राजनीतिक रुख:
- वैश्विक मुद्दों पर दोनों देश के दृष्टिकोण भिन्न हैं। उदाहरण के लिये, फ्राँस ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की मुखर आलोचना की है, जबकि भारत ने अधिक तटस्थ रुख बनाए रखा है।
भारत-फ्राँस संबंधों में गति लाने हेतु आवश्यक कदम:
- आर्थिक सहभागिता:
- फ्राँस को यूरोपीय संघ के भीतर एक प्रमुख समर्थक के रूप में शामिल करते हुए भारत-यूरोपीय संघ BTIA पर वार्ता में गति लाई जाए। एक अंतरिम उपाय के रूप में द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी समझौते की संभावना तलाश की जाए। इंडो-फ्रेंच सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (CEFIPRA) जैसे मॉडल का विस्तार अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता है।
- जापान-भारत व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।
- व्यापार और बौद्धिक संपदा पर वार्ता:
- IP संरक्षण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना की जाए। क्षेत्र-विशिष्ट व्यापार सुविधा तंत्रों का निर्माण किया जाए।
- तकनीकी और वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिये निजी क्षेत्र विशेषज्ञता को संलग्न किया जाए। राफेल जेट सौदे की सफलता से पुष्टि होती है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति बाधाओं को दूर कर सकती है।
- भू-राजनीतिक स्थितियों का प्रबंधन:
- वैश्विक मुद्दों पर दृष्टिकोणों को संरेखित करने तथा भारत-प्रशांत सुरक्षा जैसे पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर सहयोग करने के लिये रणनीतिक वार्ताओं को बढ़ाना।
- भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय पहल समन्वित हितों की क्षमता को प्रदर्शित करती है।
- उभरते वैश्विक तनावों पर विचार:
- खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त रणनीतिक आकलन को बढ़ावा देना, तथा संयुक्त संकट प्रतिक्रिया तंत्र विकसित करना। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) ढाँचे का विस्तार करके विशिष्ट क्षेत्रों में फ्राँस को शामिल किया जा सकता है।
- मानवीय सहायता और संघर्ष समाधान पहल पर सहयोग करना।
- चीन की आक्रामकता के खिलाफ हिंद महासागर में नौसैनिक सहयोग को मज़बूत करना।
- उदाहरण: वरुण जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों का विस्तार कर अन्य क्षेत्रीय साझेदारों को भी इसमें शामिल करना।
निष्कर्ष:
वैश्विक गतिशीलता में बदलाव के साथ, भारत-फ्राँस साझेदारी एक संतुलित और स्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार है। अपनी पूरक शक्तियों का लाभ उठाकर और मौजूदा चुनौतियों का समाधान करके, भारत और फ्राँस अपनी साझेदारी को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं, जिससे न केवल दोनों देशों को लाभ होगा बल्कि वैश्विक शांति, सुरक्षा और समृद्धि में भी योगदान मिलेगा।